बुआ संग खेली होली-1

(Bua Sang Kheli Holi-1)

टी पी एल 2012-04-10 Comments

This story is part of a series:

लेखक: अमित कुमार

प्रेषक: टी पी एल

मेरे प्रिये अन्तर्वासना के पाठको, कृपया इस नाचीज़ टी पी एल का सादर प्रणाम स्वीकार करें। मैं अपने उन सभी प्रशंसकों का बहुत ही धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने मेरी कहानियों को पढ़ कर मुझे असंख्य मेल भेजी और जिनका मैं उत्तर अलग–अलग से नहीं दे पाई !

आज मैं आप के लिए मेरे ही एक प्रशंसक अमित कुमार द्वारा लिखित एक कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ ! अमित कुमार ने मुझे बताया है कि अन्तर्वासना की कहानियों और उसके कुछ उत्कृष्ट लेखकों से प्रेरित होकर उसने अपनी यह पहली कहानी लिखी है पर यह उसकी पहली कहानी थी इसलिए जब उसे अपनी कहानी में कुछ कमी महसूस हुई तो उसने मुझ से कहानी में शुद्धि के लिए सहायता मांगी। अमित कुमार ने इस कहानी को मुझे भेजते समय उसमें सम्पादन, संशोधन और शुद्धि करने तथा अन्तर्वासना में प्रकाशित करवाने का आग्रह भी किया था। मैंने उसकी इस कहानी के मूल रूप में कोई भी परिवर्तन नहीं किया है, सिर्फ कुछ छोटे छोटे सुधार तथा भाषा में शुद्धि ही की है ! इसलिए अगर आप को अभी भी इस कहानी में कोई त्रुटि नज़र आए तो उसे नज़रंदाज़ कर दें और अपनी प्रतिक्रिया में उसके बारे में टिप्पणी ज़रूर लिख कर भेजें।

अमित कुमार द्वारा लिखी कहानी कुछ इस प्रकार है:

मैं अमित कुमार एक अठरह वर्ष का हृष्ट-पुष्ट युवक हूँ और अपनी तैंतीस वर्षीय बुआ के साथ, मुंबई में एक दो कमरे वाले फ्लैट में रहता हूँ। मेरे जन्म के समय ही मेरी माँ का निधन हो गया था और तब से आज तक मेरी बुआ ने ही मेरी परवरिश की और मुझे पालपोस कर बड़ा भी किया। जब मैं दस वर्ष का था तब मेरे पापा दुबई में नौकरी करने चले गए थे और आज तक वापिस नहीं आये ! लेकिन वह हर माह बुआ को मेरी पढ़ाई और घर खर्च के लिए पैसे ज़रूर भेजते हैं और आज भी वह हर माह खर्चा भेजना नहीं भूलते !

मेरी बुआ एक बाल-विधवा है, जब वह चौदह वर्ष की थी तब उनका विवाह कर दिया गया था, लेकिन शादी के एक माह के बाद ही उनके पति की सांप के काटने से मृत्यु हो गई थी। उनके पति की अकाल मृत्यु के बाद, जिसमें उनका कोई दोष नहीं था, हमारे निर्दई समाज की कुरीतियों ने उन्हें अकारण ही शापित घोषित कर दिया। क्योंकि पति की मृत्यु के समय तक उनका गौना नहीं हुआ था इसलिए वह ससुराल ना जाकर अपने पीहर में ही रहने लगी। लेकिन उनके दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके पति की मृत्यु के छह माह के बाद ही मेरे दादाजी भी गुज़र गए और वह बिल्कुल असहाय तथा अकेली हो गई। समाज से शापित कहलाने के कारण उनके लिए कोई और रिश्ता भी नहीं आया और उनका पुनर्विवाह नहीं हो सका था। इसलिए तब मेरे पिता ने अपनी बहन को सहारा दिया और उन्हें हमारे घर का एक सदस्य बना लिया।

उन्ही पारिवारिक दुखद दिनों में, मेरा जन्म भी हुआ था और दुर्भाग्य से मेरी माँ का स्वर्गवास भी हुआ। बुआ बताती है कि मेरी माँ ने अंतिम साँस लेने से पहले मुझे उनकी गोद में डाल कर मेरी देखभाल और परवरिश की ज़िम्मेदारी दे दी थी। पहले के दस वर्ष तो बुआ मुझे पालने के लिए घर पर ही रही, लेकिन पापा के दुबई जाने के बाद उन्होंने घर की आमदनी बढ़ाने के लिए अथवा अपने को व्यस्त रखने के लिए एक गैर सरकारी संगठन में नौकरी भी कर ली।

अब जिस घटना का मैं विवरण करने जा रहा वह इस वर्ष मार्च के तीसरे रविवार की है जब मैं नहाने के बाद बाथरूम से बाहर अपने कमरे में आ कर अपना बदन पोंछ रहा था। तभी बुआ बाथरूम में लगे गीज़र से रसोई के लिए गरम पानी लेने के लिए मेरे कमरे में आ गई और मुझे बिल्कुल नंगा देख कर एक बार तो रुकी, मुझे निहारा और फिर मुस्कराती हुई बाथरूम से पानी लेने चली गई।

मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि रसोई में काम कर रही बुआ, रसोई के उस दरवाज़े से, जो मेरे कमरे में खुलता है, मेरे कमरे में भी आ सकती हैं। जब मैं कपड़े पहन कर बुआ से रसोई में जाकर इस बारे में खेद प्रकट किया तो बुआ ने कहा कि इसमें खेद करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उन्होंने तो मुझे जन्म से ही नंगा देखा है तथा दस वर्षों तक मुझे नग्न अवस्था में स्नान भी कराया है। अगर आज आठ वर्षों के बाद उसने मेरे को एक बार फिर से नग्न देख लिया है तो इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है, कभी कभी छोटे से घर में ऐसी घटना हो ही जाती है।

फिर बुआ ने मुझे अपने गले से लगा कर प्यार किया और कहा कि मैं इस बात को भूल जाऊँ। मैं रसोई से बाहर तो आ गया लेकिन बुआ का इस तरह गले से लगा कर प्यार करना और उनकी आँखों में जो चमक थी उसका कारण मुझे समझ में नहीं आया। अगले आठ दिन सामान्य रूप से निकल गए और मंगलवार को होली की छुट्टी थी। क्योंकि बुआ तो होली खेलती नहीं थी इसलिए मैंने अकेले ही पड़ोसियों के साथ खूब होली खेली तथा दोपहर एक बजे के बाद मैं बुरी तरह रंगा हुआ और पूरा गीला बदन लिए हुए घर लौटा !

मेरे को उस हालत में रंग और बाल्टी लिए घर में घुसते देख कर बुआ ने रसोई से ऊँची आवाज़ में ही कह दिया कि मैं कमरे को गन्दा नहीं करूँ और सीधा बाथरूम में जा कर नहा लूँ।

बुआ बहुत ही शक्की मिजाज़ की है इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए मैं उनके कहे अनुसार बाथरूम जाता हूँ या नहीं वह मेरे पीछे पीछे खुद भी वहीं बाथरूम में आ गई !

क्योंकि मैं तो होली के ही मूड में था इसलिए बुआ को देखते ही मैंने पलट कर बुआ को गले से लगा कर होली की मुबारक दी तथा उन के पूरे चेहरे पर गुलाल लगाया और उनके बदन को बाल्टी में रखे हुए नीले रंग से उन्हें पूरा भिगो दिया।

आकस्मिक रंग लगाने की मेरी इस हरकत से वह मेरे पर झल्ला उठीं और मुझे बहुत ही बुरी तरह डांटते हुए अपनी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट को बाथरूम में ही उतार कर, पैंटी और ब्रा में ही अपना हाथ मुँह धोया तथा मुझे नहाने का आदेश देकर बाथरूम से बाहर चली गई।

उनके उस गुस्से के रूप को देख कर मैं घबरा गया और बाथरूम का दरवाज़ा बंद किये बिना, जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार कर नहाने बैठ गया।

अभी आधा ही नहाया था कि बुआ फिर बाथरूम में आ गई और कहने लगी कि मेरी गर्दन के पीछे और पीठ पर बहुत रंग लगा हुआ था और क्योंकि वह रंग मुझ से उतर नहीं रहा था, इसलिए वह उसे अच्छी तरह रगड़ कर उतार देती हैं।

मैं बिल्कुल नंगा था और मुझे शर्म भी आ रही थी लेकिन बुआ मेरे लाख मना करने पर भी पैंटी और ब्रा में ही बिल्कुल बेझिझक मुझे नहलाती रही।

जब मैं नहा चुका और खड़ा होकर अपना बदन को पोंछने लगा तब बुआ मेरी परवाह किये बिना ही अपनी पैंटी और ब्रा उतार कर नहाने बैठ गई।

बदन पोंछने के बाद जैसे ही मैं तौलिया बाँध कर कमरे में जाने लगा तभी बुआ ने आवाज़ लगा कर कहा कि उसकी गर्दन के पीछे और पीठ पर जो रंग मैंने लगाया था उसे मैं ही रगड़ कर छुड़ा दूँ !

मेरे मन में बुआ को कुछ देर और नंगा देखने की इच्छा जाग उठी थी, इसलिए उस इच्छा को पूरा करने की मंशा से मेरे पास बुआ की आज्ञा मानने के इलावा और कोई चारा नहीं था। मैंने बुआ के पीछे से जाकर उसकी गर्दन से रंग छुड़ाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा, तभी बुआ ने कहा- तौलिया गीला हो जायेगा, उसे उतार कर पानी में आना !पहली बार किसी औरत के नंगे बदन को देख कर मेरे लौड़े में जान आ गई थी और वह तन कर खड़ा हो चुका था। मैंने तौलिया उतार कर खूंटी पर टांग दिया और किसी तरह अपने पर काबू करते हुए बुआ के कहने के अनुसार बुआ की गर्दन और पीठ का रंग उतारने लगा।

एक बार तो कंधे पर साबुन लगाते समय वह मेरे हाथ से फिसल कर नीचे की ओर सरक गया। जब मैं उसे पकड़ने के लिए लपका तो साबुन तो छिटक दूर जा गिरा और बुआ की चूची मेरे हाथ में आ गई, और मेरा तना हुआ लौड़ा बुआ की गर्दन से जा टकराया।इसके लिए मैंने बुआ से माफ़ी मांगी लेकिन उसने कोई प्रतिक्रया नहीं दी। इसके बाद मैं बुआ को नहाते हुए छोड़, तौलिए से अपने हाथ पोंछता हुआ नंगा ही बाथरूम से बाहर बैडरूम में चला गया।

लगभग दस मिनट के बाद बुआ ने मुझे आवाज़ देकर तौलिया देने को कहा। मैं बैड से तौलिया उठा कर उन्हें देने के लिए बाथरूम में गया तो बुआ मेरे इन्तज़ार में दरवाज़े की ओर मुँह कर के खड़ी थी। मैंने उन्हें तौलिया दिया और कमरे में वापिस जाने के बजाये वहीं खड़े रह कर बुआ के बहुत ही मनमोहक बदन को देखता रहा !

उनका रंग बहुत ही गोरा और चिकना था, उनका चेहरा आकर्षक और नैन नक्श तीखे थे, गर्दन लंबी और जिस्म गठा हुआ था, 26 इंच की कमर बहुत ही पतली और नाभि बहुत ही आकर्षक लग रही थी ! उनकी चूचियाँ गोल तथा उठी हुई और बहुत ठोस दिख रही थी, मुझे चूचियों का साइज़ लगभग 34 लगा ! उनकी बाजु और टाँगें पतली मगर मज़बूत, तथा बहुत चिकनी लग रही थी और जांघें सुडोल और ताकतवर तथा बहुत ही लुभावनी लग रही थी, उनके चूतड़ गोल और बड़े बड़े थे तथा उनका साइज़ भी 34 तो होगा ही !

बुआ के सिर के बाल तो घने और काले थे, काँखों और जाँघों के बाल भी काले रंग के थे लेकिन बहुत ही थोड़े से थे ! उन थोड़े से काले रंग के बालों के बीच में से उनकी चूत की फांकें साफ़ नज़र आ रही थी ! उनकी चूचियों पर गहरे भूरे रंग की मोटी मोटी चुचुक देख कर मेरा मन उन चूचियों को छूने और मसलने के लिए बहुत ही विचलित हो उठा था !

बुआ ने जब बदन पोंछ कर मुझे इस तरह बुत बन कर उसे घूरते हुए देखा तो झट से बदन को तौलिए ढांपते हुए पूछा कि मैं क्या देख रहा हूँ !

तब मेरे मुँह से निकला- मैं तो एक परी को देख रहा था और अब आपने उसे ढांप ही दिया !

बुआ ने कहा क्या वह इस उम्र में भी मुझे परी लगती हैं तो मैंने जवाब में कह दिया कि वे रंग रूप और बदन से तो अभी भी एक इक्कीस-बाईस वर्ष की एक परी जैसी ही लगती हैं।

मेरे मुख से अपने रूप-रंग और जिस्म की इतनी तारीफ़ सुन कर बुआ शरमा गई और जल्दी बैडरूम में आकर कपड़े पहनने लगी।

सबसे पहले उसी तरह तौलिया बंधे बंधे ही दूसरी तरफ मुँह करके अपनी पैंटी पहनी, जब वह पैंटी को टांगों में डालने के लिए नीचे झुकी तब पीछे से तौलिया ऊपर हो गया और उसकी दोनों टांगों के बीच में से उसकी पतली फांकों वाली अनचुदी कुंवारी चूत दिखाई देने लगी। बुआ ने जल्दी से सीधा हो कर पैंटी को ऊपर खींच कर अपनी स्थान पर सेट किया और फिर मेरी ओर मुँह करके अपनी सलवार पहनी। इसके बाद उसने अपनी ब्रा उठाई और इधर उधर कुछ देख कर रुकी लेकिन फिर जाने क्या सोच कर तौलिए को उतार दिया और बाहें उठा कर ब्रा पहनने लगी। उसके नंगे वक्ष पर दो मौसम्मी जितनी बड़ी चूचियाँ बहुत ही सुन्दर लग रही थी जिन्हें देखते ही मेरा लौड़ा सलामी देने लगा। मैंने उसे टांगों के बीच में दबा कर नियंत्रण में किया और बुआ को देखने लगा।

बुआ ने आगे से ब्रा को अपनी चूचियों पर निर्धारित कर अपने हाथ पीछे करके ब्रा के हुक बंद करने लगी लेकिन वह बंद होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। जब बुआ ने मेरी ओर देख कर मुझे उन्हें बंद करने के लिए कहा तो मैंने साफ़ मना कर दिया, तब वह मेरे नज़दीक आकर पूछने लगी कि क्या मैं उसकी चूचियों देखने एवं छूने का इच्छुक हूँ?

मैंने उसकी तरफ देख कर अपने सिर को हिला कर जब पुष्टि की, तब बुआ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ब्रा के अंदर डाल दिया और एक चूची मेरी हाथों में दे दी। मैं पहले तो उसे एक सपना समझा लेकिन जब हाथों में बुआ के चूचुक का स्पर्श महसूस हुआ तब यकीन हुआ कि मैं सपने में नहीं यथार्थ में बुआ की चूचियों को पकड़े हुए था !

कुछ देर मैंने बुआ की चूचियों और चूचुक को दबाया, मसला और फिर थोड़ा अलग हो कर उनकी ब्रा के हुक को बंद कर दिया ! उसके बाद बुआ ने कमीज़ पहनी और बाल संवार कर रसोई में खाना बनाने चली गई !

कहानी जारी रहेगी।

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top