बुआ की प्यास

sanjay 2007-09-13 Comments

प्रेषक : संजय शर्मा

मेरी पहली दोनों कहानियाँ मामी की प्यास और पड़ोसन विधवा भाभी को आप लोगों ने सराहा उसके लिए धन्यवाद !

मैं संजय शर्मा फिर हाजिर हूँ आपकी सेवा में एक नई सत्य कथा लेकर !

यह बात सन 1993 की है जब मेरी शादी हुए सिर्फ दो वर्ष ही हुए थे। हमारे एक बेटी हुई वो सिर्फ ढाई महीने की थी। हमारी रिश्तेदारी में एक बुआ मुंबई में रहती है उनके बड़े लड़के की शादी जनवरी के महीने में थी। घर से कोई भी जाने को तैयार नहीं था। पापा को कुछ काम था, मम्मी घर से फ्री नहीं थी छोटा भाई ज्यादा कहीं आता-जाता नहीं था, तो ड्यूटी लगी मेरी कि तुम्हें मुंबई जाना है। टिकट बुक कराने जाने लगा तो पापा बोले- अरे सुन, अपने साथ अपनी सुनीता बुआ और उसके बच्चों की भी टिकट मथुरा से मुंबई तक की जाने और वापसी की भी करवा लेना !

सुनीता बुआ हमारी बुआ की दूर के रिश्ते में देवरानी लगती हैं, इस नाते हम उन्हें भी बुआजी ही कहते हैं। फूफाजी सेना में कर्नल पद पर थे और ज्यादातर पोस्टिंग पर सुदूर सीमा पर ही रहते थे। इस कारण परिवार साथ नहीं रहता था। सुनीता बुआ के दो बच्चे थे बड़ा लड़का पांच साल का और लड़की ढाई साल की।

स्टेशन गया तो पता लगा कि उस तारीख में स्लीपर क्लास 200 वेटिंग में है। मैं वापस आ गया तो पापा बोले- अरे बेवकूफ, ऐ सी कोच में बुक करा लेता !

फिर गया और ऐ सी कोच में टिकट बुक करा कर आ गया।

नियत समय पर यहाँ से गाडी चल दी। पापा छोड़ने आए थे, आखिर तक समझाते रहे कि मथुरा से सुनीता को लेना है। गाडी में ऐ सी कोच में कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी और हमें जो सीट मिली थी वो एक फ़ैमिली केबिन था।

टिकट चेकर आया पूछने लगा- बाकी सवारियाँ कहाँ हैं?

तो मैंने उससे कहा- वो मथुरा से बैठेंगे !

गाड़ी समय पर मथुरा स्टेशन पहुँच गई। मैं गेट पर खड़ा हो गया। अपनी शादी के बाद अब देखा था पर मैंने उन्हें पहचान लिया और आवाज देकर उन्हें आराम से केबिन में लाकर बिठा दिया। गाड़ी चल दी। टिकट चेकर फिर आया और सवारी चेक करके चला गया। हमने केबिन का दरवाजा बंद कर लिया बच्चे थोड़ी देर तो खेलते रहे, फिर सोने लगे। रात के बारह बज चुके थे, बच्चे नीचे बर्थ पर ही सो गए थे।

बच्चों को एक ही बर्थ पर लिटाकर मैंने बुआजी से कहा- मैं ऊपर जाकर सो जाता हूँ, आप नीचे इस बर्थ पर सो जाओ !

तो वो बोली- नींद कहाँ आ रही है, अभी आ, थोड़ी देर बात करते हैं, फिर सो जाना !

मैं वहीं बैठ गया। कुछ देर हम बात करते रहे, फिर उन्होंने पैर उठा कर सीट पर लम्बे कर लिए। मैं उठने लगा तो बोली- क्या करेगा ऊपर जाकर ! यहीं पर अडजस्ट हो जाएँगे !

मैं भी अधलेटा सा हो गया और वो लेट गई। मेरी आँख लग गई, कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि मेरे लंड को कोई सहला रहा है। मैंने आँख खोलकर देखा तो बुआजी आँखें बंद करे लेटी हैं और पैर के अंगूठे से मेरे लंड को ऊपर से सहला रही हैं।

विश्वास नहीं हुआ कि यह हो रहा है पर प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। मैंने पूरी तरह से सीधे पैर किए तो मेरे पैर उनके उभारों के पास पहुँच गए और चुप लेट गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।

थोड़ी देर बाद वो अपने उभारों को मेरे पैर के अंगूठे पर रगड़ने लगी। उसका असर यह हुआ कि मेरा लंड अकड़ने लगा और तैयार हो गया। मुझसे नहीं रहा गया, क्योंकि एक तो रिश्ता ऐसा, उस पर यह हरकत मेरे गले नहीं उतर रही थी। सो मैं एकदम से उठकर बैठ गया।

जाग तो वो भी रही थी, तो बोली- क्या हुआ?

मैंने कहा- कुछ नहीं ! मैं ऊपर जा रहा हूँ सोने !

उस बात की प्रतिक्रिया में जो उन्होंने किया वो मेरे लिए चौंकाने वाली बात थी क्योंकि उन्होंने एकदम से मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और मेरा हाथ सीधा उनके उभारों से टकराया। गिरने से बचना चाह रहा था सो हाथ पूरा खुला हुआ था पूरी तरह से दाईं चूची से टकराया। उफ़ !

क्या टाईट चूचियाँ थी !

बोली- मेरा शरीर जल रहा है, तुम यहाँ पर रहोगे तो कुछ शांति रहेगी !

पर मैं बोला- बुआ, यह गलत है !

वो बजाए कुछ कहने के फफक-फफक कर रोने लगी। मैंने उन्हें शांत कराया, फिर पूछा- क्या बात है ?

तो उन्होंने बताया- जब से यह लड़की हुई है, तब से तेरे फूफा ने उन्हें चोदना तो दूर हाथ भी नहीं लगाया है !

मुझे सारा माजरा समझने में समय नहीं लगा तो मैंने पूछा- ऐसा क्यों ?

तो बोली- एक साल से तो घर भी नहीं आए हैं !

मैं हक्का बक्का रह गया कि यह क्या कहानी है, मैंने फिर पूछा- आपको मेरे साथ करने का कैसे ख्याल आया?

तो बोली- आज दिन में चैनल पर सेक्सी सीन आ रहे थे मन तो वहीं से ख़राब था और आज ढाई साल बाद तुम्हारे लंड को इतने करीब पाकर मैंने सारी लाज शर्म भुला दी ! सुनो संजू, तुम मुझे शांत कर दो ! मैं तुम्हारा उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगी !

मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूँ !

मुझे सोचता हुआ देखकर वो बोली- जो कुछ होगा, उसे यहीं रास्ते में ही भुला देंगे। उसके बाद ना तुम याद रखना और न मैं !

इस बात के बाद मैं तैयार हो गया, मैं बोला- ठीक है ! पर यहाँ नहीं करेंगे, ऊपर वाली बर्थ पर चलो और अपने कपड़े उतारो ! मैं वहीं पर तुम्हें शांत करूँगा !

वो तैयार हो गई, मैंने अपनी गोदी में उठाकर उन्हें ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ा दिया। मैंने महसूस किया कि उन्होंने अन्दर पेंटी नहीं पहनी हुई है। उसके बाद मैंने बच्चों को देखा- आराम से सो रहे थे ! फिर ऊपर देखा तो बुआ कपड़े उतार कर लेट चुकी थी।

मैं भी एकदम ऊपर बर्थ पर पहुँच गया और अपने कपड़े उतार कर उनके बगल में लेट गया। उफ़, क्या बदन था ! नाईट लैम्प की नीली रोशनी में उनका संगमरमरी बदन चमक रहा था। मैंने धीरे-2 बदन को सहलाना शुरू ही किया था, वो तो मुझसे लिपट गई क्योकि वो तो पहले से ही भड़की हुई थी।

मैंने कहा- बुआ, मैं अपने स्टाइल से करूँगा !

तो वो बोली- बुआ नहीं, सुनीता बोलो ! और जैसे करना चाहो कर लो !

मैं झट से उठ कर एक तरफ कोने में चला गया टाँगे चौड़ी कर उनका सिर पकड़ कर अपना लण्ड उनके मुँह में डाल दिया और कहा- सुनीता डार्लिंग ! अब इस लॉलीपॉप को प्यार से चूसो !

पहले तो वो कसमसाई पर फिर उसे प्यार से धीरे-2 चूसने लगी। उन्हें और मुझे मस्ती चढ़ने लगी। मैं भी 69 की पोजीशन में आ गया उनकी चूत पहले ही रस से भरी हुई थी, बड़े प्यार से उसे चाट कर उनके अन्दर चिंगारियां भर दी।

मैं भी पिछले सात-आठ महीने से प्यासा था सो मेरा उनके मुँह में ही झड़ गया। वो एक-एक बूँद अन्दर ही पी गई। इधर उनकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया जिसे मैंने चाट कर साफ़ कर दिया। मैं एकदम से उठा और उनकी चूत को चौड़ा कर उस पर लंड के घस्से लगाने लगा। कुछ देर में ही दोनों फिर तैयार हो गए। अब चला सेक्स का तूफान जिसका अगला स्टेशन बीस मिनट बाद आया। दोनों एक साथ झड़े, मैं चूत में लण्ड डाले हुए ही करीब दस मिनट तक लेटा रहा, फिर उठ कर बगल में लेट गया। दो बज चुके थे, हम लोग कपड़े पहन कर सो गए।

सुबह गाड़ी भोपाल पहुंची तो शायद स्टाफ बदला होगा तो नया टी टी टिकट चेक करने आया, टिकट चेक करके गया।

देखा तो बुआ भी उठ गई, वो पेशाब करने गई और लौट के आई तो देखा कि बच्चे सो रहे हैं।

मेरे मन में पता नहीं क्या आया, मैंने कहा- चलो एक दिहाड़ी और लगा लें !

वो धीरे से मुस्कुरा कर बोली- मेरा तो रोम रोम तेरा कर्जदार है ! तू चाहे जब मर्जी कर ! मैंने कब मना किया है !

उसके बाद हम लोगों ने एक ट्रिप और मारी फिर नीचे आ गए। बच्चे भी उठ गए थे।

वापसी की कहानी बाद में सुनाऊंगा क्योंकि वापिसी में मैं दिल्ली न आकर उनके घर उन्हें छोड़ने के लिए चला गया और वहाँ पर जो रास-लीला हुई उसका विवरण बाद में !

आपको कहानी कैसी लगी, अवश्य बताएँ !

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