गर्मागर्म चाची ने चूत के बाद गांड मरवाने की हामी भरी

(Garmagarm Chachi Ne Chut ke Bad Gand Marvane Ki Hami Bhari)

हैलो दोस्तो, मेरा नाम शादाब है और मैं दिल्ली में रहता हूँ। आज मैं आपको अपनी नफ़ीसा चाची की बात बताने जा रहा हूँ कि कैसे उसने मुझे अपने हुस्न के जलवे लुटाये और मुझे एक लड़के से मर्द बनाया।
तो पढ़िये और मज़े लीजिये।

सन 2003 तक हम लखनऊ में रहते थे, हमारा गोश्त का कारोबार था। हम सब का लखनऊ में पुश्तैनी मकान है, बहुत बड़ा है। सब परिवार उसमे एक साथ ही रहता है। अब जब कारोबार ही गोश्त का हो तो घर में हर वक़्त गोश्त ही पकता और खाया जाता था, जिस वजह से घर में सब के सब बहुत ही गोरे चिट्टे, हसीन और लंबे चौड़े थे।

मैं घर में सबसे छोटा था और सबका प्यारा भी था। तब मैं छोटा था, मेरे चाचू की शादी हुई तो नफ़ीसा मेरी चाची बन कर हमारे घर आई। तब चाचू 28 के और चाची 18 साल की थी, मगर 18 साल में भी वो कोई दुबली पतली नहीं थी, खैर मोटी भी नहीं थी।

मुझे याद है, जब मैंने उन्हें पहले बार देखा था, गहरे लाल रंग का सूट पहने, गोरे बदन पे बहुत जँच रहा था।
उस वक़्त तो मुझे समझ नहीं थी, मगर अब समझ आई कि भरवां बदन, गोल और बड़े बूब्स, सपाट पेट, और उसके नीचे ये चौड़ी कमर।
शादी के अगले दिन चाची बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी, यह बात अब समझ में आई कि सुहागरात को चाचू ने खूब बजाई होगी तभी कुँवारी चूत अगले दिन सूज गई होगी।

मगर जो बात मेरे साथ हुई, उस पर आते हैं।
शादी के बाद धीरे धीरे चाची मुझसे बहुत प्यार करने लगी। चाची मुझे अपने बच्चों की तरह ही प्यार करती, मुझे बहुत चूमती, अपने सीने से लिपटा लेती, बेशक छोटा था, मगर उसके बड़े बड़े बूब्स की नर्मी को महसूस तो कर सकता था।

चाची मुझे बहुत प्यार करती, मैं भी अक्सर उनके आस पास ही डोलता रहता।
अब मैं भी बड़ा हो रहा था, हायर सेकेन्डरी पास कर चुका था और मुझे भी चाची के गदराए बदन को देखना, उनसे बातें करते रहना बहुत अच्छा लगता था।

ऐसे ही एक दिन जब मैं चाची के कमरे में गया तो देखा के चाची शायद नहा कर बाथरूम से निकली थी, बाल गीले, बदन पर सिर्फ तौलिया बांधे वो बाथरूम से निकली, मैं पलटने लगा तो चाची ने मुझे आवाज़ लगाई- अरे शादाब, क्या हुआ, कहाँ चले?
मैंने पलट कर देखा, चाची अपनी अलमारी से कपड़े निकाल रही थी।

मांसल भरे हुये कंधे, नीचे ये मोटी मोटी जांघें, जिन पर एक भी बाल नहीं था, और नीचे गोल पिंडलियाँ।
सच में वो तो कोई हूर लग रही थी।
मैं वही दरवाजे के पास खड़ा उन्हें देखता रहा।

उन्होंने अलमारी से अपना ब्रा पेंटी और सलवार कमीज़ निकाला और बेड पे रखा और बिना कोई शर्म किए जब मेरे सामने ही अपना तौलिया खोला तो मैंने अपना मुँह शर्म से घूमा लिया। मगर मुझे पता चल रहा था कि उसने अपनी पेंटी पहनी, फिर सलवार पहनी फिर मुझे बुलाया- अरे शोना, शर्माता क्यों है रे, इधर आ ज़रा!

मैं चुपचाप चाची की तरफ मुड़ा, वो मेरी तरफ पीठ करके खड़ी थी। उस पर काली सलवार, ऊपर से बिलकुल नंगी, भरी हुई पीठ, नीचे सलवार में से झाँकते बड़े बड़े चूतड़, कंधे और पीठ पर बिखरी पानी की नन्ही नन्ही बूंदें।

‘मेरा एक काम तो करदे शादु…’ चाची बड़े प्यार से बोली।
‘जी…?’ मैंने हकलाते हुये कहा।
‘मेरी ब्रा तो पकड़ा दे…’ वो बोली।

उनकी ब्रा बेड पर पड़ी थी, जब ब्रा को मैंने हाथ में पकड़ा तो मेरे तन मन में झनझनाहट सी हुई, सोचा कि इस ब्रा के बड़े बड़े कप्स में चाची के बड़े बड़े बूब्स कैद होते होंगे।
चाची ने मेरी तरफ पीठ ही करके रखी। पर उनको ब्रा पकड़ते वक़्त मैंने साइड उनका बड़ा सारा बूबा और उस पर छोटा सा भूरा निप्पल ज़रूर देख लिया।

चाची ने ब्रा पहनी और उसके स्ट्रैप खींच कर मुझे पकड़ाये। मैंने हुक लगा दी तो चाची मेरी तरफ घूमी।
दूध जैसे गोरे उसके चूचे, ब्रा में कैद हो चुके थे, एक बड़ा सा क्लीवेज ब्रा के ऊपर से झांक रहा था। मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई, और मैं तो टकटकी लगा कर चाची के चूचे ही घूरता रह गया।

चाची ने बिना किसी शर्म के मेरे सामने ही अपनी कमीज़ पहनी और मटकती हुई जा कर ड्रेससिंग टेबल के सामने खड़ी हो कर अपने बाल बनाने लगी।

मैं तो उसके कमरे से बाहर ही आ गया और सीधा बाथरूम में गया, पैंट खोल कर देखा, नई नई उगी झांटों में छुपी लुल्ली अकड़ कर लंड बन चुकी थी।
पर समझ में नहीं आ रहा था कि इस पत्थर को मोम कैसे बनाऊँ।
कितनी देर मैं बाथरूम में ही खड़ा रहा, काफी देर बाद धीरे धीरे लंड अपने आप, नर्म हो कर फिर से लुल्ली बन गया।

मगर अब आलम यह था कि मैं हर वक़्त चाची के आस पास रहता, मैं चाची को और अधिक नंगी देखना चाहता था।
फिर चाची की शादी के डेढ़ साल बाद उनकी एक बेटी हुई। मैं अक्सर नन्ही सी परी से खेलने के बहाने चाची के पास ही रहता।

और एक दिन जब चाची ने परी को दूध पिलाने के लिए अपनी कमीज़ ऊपर उठाई तो पहली बार मैंने चाची के चूचे सामने से देखे। दूध से गोरे और दूध से भरे।
चाची ने मुझे देखा और पूछा- क्या देख रहा है, पिएगा?

मैंने हाँ में सर हिला दिया।
चाची ने दूसरी तरफ से भी अपनी कमीज़ ऊपर उठाई और अपना दूसरा बूब बाहर निकाल दिया- ले, पी ले!
चाची ने तो कह दिया मगर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी, तो चाची ने खुद ही मेरा सर अपनी तरफ खींच कर अपने चूचे से लगा दिया।
मैंने भी निप्पल मुंह में लिया और चूसने लगा।
जितना मैं चूसता उतना भर भर के दूध चाची के बोबे से आता, मैं न सिर्फ चूस रहा था, पर दोनों हाथों में उसका बोबा पकड़ के दबा कर मज़े भी ले रहा था।
मुझे नहीं पता चला के मेरी पैंट में मेरा लंड कब तन के लोहा हो गया।

पता तब चला जब चाची ने पेंट के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ के दबाया और पूछा- यह क्यों अकड़ रहा है?
मैं एकदम से चौंका।
‘इसको भी कुछ चाहिए क्या?’ चाची ने फिर पूछा।

मैं कुछ न बोल सका तो चाची ने अपनी सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत पे हाथ फेर कर बोली- ये चाहिये इसे!
मैं तो शर्मा गया क्योंकि मुझ पर तो नई नई जवानी चढ़ी थी मगर वो एक मुकम्मल औरत थी।
‘वो, चाची आप न बहुत सुंदर हो!’ मैंने धीरे से कहा।
‘तू भी बहुत प्यारा है, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, अगर मेरी शादी तेरे चाचू से न हुई होती तो मैं तुझसे ही करती।’

मतलब एक नौजवान औरत, मेरे सामने आधी नंगी हालत में बैठी मुझसे शादी की बात कर रही थी, यानि कि ये तो सेक्स का खुला न्योता था मुझे।
मगर तब मैं उसका ये न्योता कबूल नहीं कर पाया क्योंकि कोई बच्चा वहाँ आ गया।
दोनों चूचे बाहर ही थे, एक को परी पी रही थी, मगर दूसरे से टप टप दूध की बूंदें टपक रही थी।

तभी न जाने क्या हुआ, हमने अपना बिज़नस दिल्ली में शिफ्ट कर लिया और मैं अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया, मगर चाची और बाकी कुनबा सारा वहीं लखनऊ में ही रह गया।

कभी कभी हम जाते थे लखनऊ, जब भी जाते और मेरी चाची से मुलाक़ात होती।

ऐसे ही वक़्त बीतता गया। उसके बाद मैं भी अपनी पढ़ाई में बिज़ी हो गया, मगर फोन पर हमारी बातचीत होती रहती थी और धीरे धीरे फोन पर हम एक दूसरे से बहुत ही खुल गए।
हर एक गंदी से गंदी बात हमने फोन पे एक दूसरे से करी।
वक़्त के साथ एक एक करके चाची ने चार बच्चों को जन्म दिया।

अपनी पढ़ाई पूरी करके मैंने भी अपना पुश्तैनी काम संभाल लिया, काम को खूब अच्छे से चलाया, फिर मेरी भी शादी की बातें घर में होने लगी।
अब्बा ने तो कह दिया- एक बार लखनऊ चला जा, कुनबे में बहुत से हसीन लड़कियाँ हैं, अगर कोई पसंद आई तो बता देना उसी से निकाह पढ़वा देंगे।
मैं लखनऊ को चल पड़ा।
लखनऊ पहुँच कर मैं सीधा घर नहीं गया, वैसे भी मैं बहुत सालों बाद लखनऊ आया था, पहले मैं पुराना लखनऊ शहर घूमने निकल गया।
अमीनाबाद में जाकर पेट पूजा की, लाजवाब खाने, कवाब, कुल्फी, पान और लेमन सोडा भी पिया।
जब लेमन सोडा पी रहा था तो उस दुकान पे स्कूल की कुछ लड़कियाँ आई और उन्होंने भी लेमन सोडा पिया। उनमें से एक लड़की बहुत ही सुंदर, दूध जैसी गोरी, गुलाबी गाल, कंटीली आँखें, और बहुत ही पर्फेक्ट फिगर।
शायद 11वीं या 12वीं क्लास में पढ़ती होगी।

एक बार तो दिल में आया, अगर इस लड़की से सुंदर कोई लड़की कुनबे में मिली तो ठीक वर्ना इसी से शादी करूंगा, चाहे कोई भी हो।
चलो, घूम फिर के शाम को मैं घर पहुँचा, घर में सबने मेरा बहुत गर्मजोशी से इस्तकबाल किया। अब तो मैं भी पूरा बांका जवान हो गया था और चुदाई भी बहुत बार कर चुका था।
रास्ते में सोच भी रहा था कि अगर इस बार चाची से सेटिंग हुई तो पक्का उसको चोद कर आऊँगा।

थोड़ी देर बाद चाची से भी मिला, आज भी वो बहुत ही सुंदर, सेक्सी लग रही थी। काफी मोटी भी हो गई थी, मगर उतनी ही गोरी और बेदाग स्किन।
वैसे ही बैठे बैठे मैंने जान बूझ कर बचपन की बातें छेड़ ली, चाची भी मेरा मतलब समझ चुकी थी, मगर उसने भी कोई देरी नहीं की लाईन पे आने में… सिर्फ 10 मिनट की बातचीत के बाद यह साफ हो गया कि चाची मुझ से चुदने को पूरी तरह से तैयार है।

मैंने उन्हें अपने लखनऊ आने का मतलब और रास्ते में मिली उस लड़की के बारे में भी बताया।
अभी हम बातें कर ही रहे थे कि स्कूल का बस्ता उठाए वही खूबसूरत लड़की घर में घुसी। तब पता चला कि वो तो मेरी चाची की ही बेटी थी, जिसके हिस्से का दूध मैंने भी चाची के मोटे मोटे चूचे चूस चूस कर पिया था।

मैंने चाची को अपने दिल की बात बता दी।
चाची बोली- अगर मेरी बेटी से शादी करना चाहते हो तो, मेरी एक छोटी सी शर्त है।
‘क्या?’ मैंने खुश हो कर पूछा।

‘तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, शुरु से ही मैं तुम्हें पसंद करती हूँ, और अब जब तुम पूरे जवान हो गए हो तो मेरे दिल में भी ये ख़्वाहिश है कि एक बार मैं अपनी जाती जवानी तुम पर लुटा दूँ और तुम्हारी इस नई नई चढ़ी जवानी का पहला जाम मैं पीऊँ, एक बार, सिर्फ एक बार, मेरे दिल की इच्छा है, तुम पूरी कर दो तो परी तुम्हारी!’ चाची ने कहा।

भला मुझे क्या ऐतराज हो सकता था, मेरी भी शुरु से ही चाची को चोदने की इच्छा थी, मैंने हाँ कर दी।
रात को ही प्रोग्राम बना लिया।
करीब साढ़े 12 बजे मैं चुप चाप चाची के कमरे में गया, चाचा शराब के नशे में टुन्न हो कर नीचे फर्श पे ही लेटा सो रहा था। परी दूसरे कमरे में थी।
हल्की रोशनी में मैंने देखा चाची बेड पर पड़ी जाग रही थी।

मैं बेड के पास गया तो चाची ने मेरा हाथ पकड़ के खींच लिया। पहले मैं बिस्तर पे लेटना चाहता था, मगर जब चाची ने अपनी ओर खींचा तो सीधा चाची के ऊपर ही लेट गया।
नर्म रज़ाई जैसा चाची का बदन…
ऊपर लेते ही चाची ने मेरा चेहरा पकड़ा और मेरे होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगी।
मैंने अपने होंठ उसके होंठो से आज़ाद करवाए और पूछा- अरे इतनी बेताबी, मेरी जान, सब्र करो!

तो चाची बोली- सब्र ही तो नहीं होता, वो देख मरदूद रोज़ रात को दारू पी के आ जाता है, 3 महीने हो गए साले ने हाथ तक नहीं लगाया, मैं तो तड़प रही थी कि कोई भी आए और आकर खा जाए मुझे, आज जितनी ताक़त तुम में है, सारी मुझ पे लगा दो, मेरी सालों की प्यास बुझा दो!
चाची ने कहा और फिर से मेरे चेहरे को यहाँ वहाँ चूमने लगी।

मैंने भी सोचा जब चाची इतनी गरमा गरम है तो मैं किस लिए शर्म करूँ, मैंने भी उसके दोनों बूब्स अपने हाथों में पकड़े और निचोड़ डाले, पूरा ज़ोर लगा कर दबाये, चाची ने अपनी दोनों टाँगें मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट ली।
मैं उसकी चूत पे अपना लंड घिसाने लगा, चाची ने कहा- बस कर अब सहा नहीं जाता, पहले एक बार डाल कर मुझे फारिग कर दे फिर चाहे सारी रात चूसना मुझे।

मैं उठ कर खड़ा हो गया और अपने कपड़े उतारने लगा, आधे मिनट से भी कम में चाची ने अपनी कमीज़ सलवार और ब्रा उतार कर फेंक दी।
हल्की रोशनी में भी उसका गोरा, भरी बदन जगमगा रहा था।

वो फिर से बेड पे लेट गई और मैं उसके ऊपर लेट गया, उसने खुद ही मेरा लंड पकड़ के अपनी चूत पे सेट किया, जो पानी छोड़ छोड़ कर पूरी तरह से भीगी पड़ी थी, रखते ही लंड बिना किसी रोक टोक के अंदर घुस गया।
‘आह… सी… आह!’ करते हुये चाची मुझसे लिपट गई।

मैंने अपनी कमर चलाई तो नीचे से चाची भी उछलने लगी। जब मेरी कमर चाची की कमर से टकराती तो ठप्प ठप्प की आवाज़ हुई। मैंने कहा- धीरे धीरे करो, आवाज़ हो रही है।
तो चाची बोली- डर मत, तेरे चाचा नशे से नहीं उठेंगे और परी की नींद बहुत गहरी है, एक बार सो कर उसे कुछ पता नहीं चलता, तुम चिंता मत करो, जितनी ज़ोर से कर सकते हो उतनी ज़ोर से और तेज़ तेज़ करो, कोई परवाह नहीं किसी की।

बस फिर क्या था मैंने तो तो ताबड़तोड़ अपनी स्पीड बढ़ा दी, चाची तो सच में सेक्स के लिए मरी पड़ी थी। करीब 7 इंच का मेरा लंड वो अपनी चूत के अंदर तक ले रही थी और पानी से लबालब उसकी चूत अलग से फ़च फ़च की आवाज़ कर रही थी।
सच में चाची को चोद कर तो मज़ा आ गया।

कितनी आग थी उसमें, मुझसे ज़्यादा ज़ोर तो वो नीचे से लगा रही थी, और ऊपर से ‘आह, आह, सी सी’ करके अलग से शोर मचा रखा था।
शायद 3 या 4 मिनट ही लगे होंगे के चाची उछल पड़ी, मुझे धक्का दे कर परे हटा दिया और खुद ही अपनी कमर ऊपर उठा उठा कर तड़पने लगी।
मैं खड़ा देखता रहा, करीब एक मिनट तक बुरी तरह तड़पने के बाद, वो शांत हो कर लेटी।

मैं फिर से उसके ऊपर चढ़ गया और फिर से ज़ोर ज़ोर से चाची को चोदने लगा।
गिनती के 20 घस्से भी नहीं मारे होंगे, चाची तो रोने लगी, आँखों से आँसू- शादाब, मैं मर जाऊँगी, इतना मज़ा मत दे मुझे!
मैं पीछे हटने लगा तो मुझे कंधे से पकड़ कर बोली- छोड़ मत, चोद और चोद, मगर छोड़ मत!

मतलब वो और चुदना चाहती थी, मगर जब उसका पानी झड़ता था तो उसको बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता था।
मुझे तो ये खेल ही लगा।
मैंने फिर से उसे बहुत तेज़ तेज़ और ज़ोर से चोदा और वो फिर 2 मिनट में ही झड़ गई और पहले से भी ज़्यादा तड़पी और मेरे कंधे पे काट खाया।
उसकी आँखों से आँसू बह कर उसके बालों में गुम हो रहे थे।

पहले भी मैंने बहुत सी औरतों और लड़कियों को चोद रखा था था, मगर इतनी प्यास मैंने पहले कभी किसी औरत में नहीं देखी थी।
दो बार झड़ कर चाची तो एक धराशायी पहलवान की तरह बेड पे बेजान हुई लेटी पड़ी थी।

पहले मैंने सोचा कि चलो अपना भी पानी निकाल दूँ, फिर सोचा चूत तो इसकी मार ली, अब कुछ और करता हूँ।
मैंने चाची से पूछा- चाची, गांड मरवा लोगी?
चाची बोली- आज तो तक तो नहीं मरवाई, तुझे मारनी है तो मार ले, मैं दर्द सह लूँगी अगर तुझे खुशी मिलती है तो!

मुझे यह अच्छा नहीं लगा मैंने फिर पूछा- लंड चूस लेती हो?
वो बोली- अरे हाँ, बड़े शौक से, मुझे तो लंड चूसना बहुत अच्छा लगता है।
‘और माल भी पी लेती हो?’ मैंने फिर पूछा।
‘तूने पिलाना है तो वो भी पी लूँगी, मुझे कोई दिक्कत नहीं!’ चाची बोली।

बस मैं तो चाची की छाती पे चढ़ बैठा, चाची ने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और मुंह में लेकर चूसने लगी। मैं अपने चूतड़ों के नीचे चाची के बड़े बड़े और नर्म नर्म बोबे महसूस कर रहा था।

कोई 3-4 मिनट चाची ने बड़े जोश और प्यार से मेरा लंड चूसा और उसके बाद मैं भी झड़ गया, माल की धारें निकली और चाची के मुंह को भर दिया, मगर वो भी क्या गजब औरत थी, सारा का सारा माल पी गई।
पहली बार मेरा माल किसी ने पिया था।

फारिग हो कर मैं भी चाची की बगल में लेट गया।
‘चाची अभी दिल नहीं भरा, अभी और चोदूँगा तुमको!’ मैंने कहा।
‘मेरे राजा, तुमने आज मुझे निहाल कर दिया, आज के बाद जब कहेगा, जहाँ कहेगा, तुझसे चुद जाऊँगी, अगर बाहर गली में खड़ी करके भी चोद देगा तो कोई गिला नहीं, आज के बाद तन बदन सब तेरी मिलकीयत है!’ चाची बोली।

‘मगर शादी मैं तुम्हारी बेटी से करूंगा!’ मैंने कहा।
‘अरे मेरी तरफ से तो चाहे कल बारात ले आ, परी सिर्फ तेरी है! चाची बोली।

मैं उठा और परी के कमरे की तरफ गया।
चाची भी उठ कर मेरे पीछे पीछे आ गई। मैं परी के बेड के पास खड़ा हो गया, वो दीन दुनिया से बेपरवाह सो रही थी। उसे नहीं पता था के उसका होने वाला शौहर और उसकी अपनी माँ दोनों अल्फ़ नंगे उसके सिरहाने खड़े हैं। परी की टी शर्ट में से उसको गोल गोल बूब्स दिख रहे थे।

मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसका एक बूब पकड़ लिया, टी शर्ट के नीचे से उसने कोई ब्रा या अंडर शर्ट नहीं पहना था, रुई की तरह नर्म और रेशम से मुलायम कुँवारे बूब्स मेरे सामने थे, मेरा तो दिल कर रहा था कि चाची से कहूँ कि शादी तक इंतज़ार नहीं होता, मुझे तो अभी इसकी दिलवा दे।

चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे कमरे से बाहर ले आई- अभी नहीं शादाब, ये तुम्हारी ही है, सुहाग रात को इसके साथ जो चाहे करना, पर आज की रात मेरी है, आज सिर्फ मेरे साथ करो, और जो चाहे जहाँ चाहे करो।
कह कर चाची बेड पे घोड़ी बन गई- तुम पूछ रहे थे न कि क्या मैं गांड मरवाती हूँ, हाँ, आओ आज मैं अपनी गांड भी मरवाऊँगी।

मैं अपने लंड को सहलाता हुआ चाची के पीछे जा खड़ा हुआ।
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