जिस्मानी रिश्तों की चाह -61

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 61)

जूजाजी 2016-08-14 Comments

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सम्पादक जूजा

आपी मेरे ऊपर थी कि तभी आपी धीमी आवाज़ में बोलीं- सगीर, मुझे नीचे लेटा दो..
आपी के झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा ऊपर हुआ और आपी की चूत में लण्ड का हल्का सा दबाव कायम रखते हुए ही उनके साथ ही घूम गया।
मैंने इतना ख्याल रख कि लण्ड ज्यादा अन्दर भी ना जाए और चूत से निकले भी नहीं।

अब आपी अपनी आँखें बंद किए ज़मीन पर कमर के बल सीधी लेटी थीं, उनके घुटने मुड़े हुए थे.. लेकिन पाँव ज़मीन पर ही रखे हुए थे।

मैं अब आपी के ऊपर आ चुका था और उनकी टाँगों के दरमियान में लेटा हुआ सा था। मेरी टाँगें पीछे की जानिब सीधी थीं और मेरा पूरा वज़न मेरे हाथों पर था और हाथ आपी की बगल के पास ज़मीन पर टिके हुए थे।

लेकिन मैं इस पोजीशन में बहुत अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था.. मैं अपने घुटने मोड़ कर आगे लाने की कोशिश करता तो मुझे पता था कि मेरा लण्ड आपी की चूत से बाहर निकल आएगा और मैं ये नहीं चाहता था, मैंने आपी को पुकारा- आपीयईई..
उन्होंने आँखें खोले बगैर ही कहा- हूँम्म..

‘आपी थोड़ी टाँगें और खोलो और पाँव ज़मीन से उठा लो।’

मैंने ये कहा तो आपी ने अपने पाँव हवा में उठा लिए और घुटनों को मज़ीद मोड़ते हुए जितनी टाँगें खोल सकती थीं.. खोल दीं।

मैं बारी-बारी से अपने दोनों घुटनों को मोड़ते हुआ आगे लाया और आपी की रानों के नीचे से गुजार कर आगे कर लिए।

अब मेरे हाथों से वज़न खत्म हो गया था.. मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और आपी के सीने के उभारों पर रख दिए और आहिस्तगी से उन्हें दबाते हुए मसलने लगा।

कुछ देर बाद आपी ने आँखें खोलीं.. उनकी आँखें लज्जत और शहवात के नशे से बोझिल सी हो रही थीं।
मैंने आपी की आँखों में देखते-देखते ही अपने लण्ड को थोड़ा आगे की तरफ दबाया.. तो आपी के मुँह से एक सिसकी निकल गई और उनके चेहरे पर हल्की सी तक़लीफ़ के आसार नज़र आने लगे।

आपी ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को कार्पेट में गड़ा दिया और पूरी ताक़त से कार्पेट को जकड़ लिया।

मैंने आँखों ही आँखों में सवाल किया कि आपी क्या तुम तैयार हो?
और आपी की आँखों ने ‘हाँ’ में जवाब दिया।

मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड का दबाव आपी की चूत पर बढ़ाना शुरू किया.. तो उनके चेहरे पर तक़लीफ़ का तवस्सुर बढ़ने लगा और चेहरे का गुलाबीपन तक़लीफ़ के अहसास से लाली में तब्दील होने लगा।

मैंने दबाव बढ़ाते ही अपने ऊपरी जिस्म को झुकाया और आपी की आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ आपी के होंठों के क़रीब ले गया।
मेरे लण्ड की नोक पर अब आपी की चूत के पर्दे की सख्ती.. वज़या महसूस हो रही थी।

आपी की साँसें भी बहुत तेज हो चुकी थीं और दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी।
आपी के जिस्म में हल्की सी लरज़ कायम थी।

मैंने अपने हाथ आपी के सीने के उभारों से उठा लिए और उनके चेहरे को मज़बूती से अपने हाथों में थाम कर आपी के होंठों को अपने होंठों में सख्ती से जकड़ा और उसी वक़्त अपने लण्ड को ज़रा ताक़त से झटका दिया और मेरा लण्ड आपी की चूत के पर्दे को फाड़ता हुआ अन्दर दाखिल हो गया।

आपी के जिस्म ने एक शदीद झटका खाया और बेसाख्ता ही उनके हाथ कार्पेट से उठे और मेरी कमर पर आए और आपी ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गड़ा दिए।

आपी तक़लीफ़ को बर्दाश्त करने और अपनी चीख को रोकने में तो कामयाब हो गई थीं.. लेकिन तकलीफ़ की शिद्दत का अहसास उनके चेहरे से साफ ज़ाहिर था।
उन्होंने अपनी आँखों को सख्ती से भींच रखा था, इसके बावजूद उनके गाल आंसुओं से तर हो गए थे।

मैंने आपी के होंठों से अपने होंठ उठा लिए और अपने जिस्म को सख्त रखते हुए आपी के चेहरे पर ही नजरें जमाई रखीं।
मेरा लण्ड तकरीबन 4 इंच से थोड़ा ज्यादा ही आपी की चूत में उतर चुका था लेकिन अभी क़रीब 2 इंच बाक़ी था।

मैं थोड़ी देर आपी के चेहरे का जायज़ा लेता रहा और जब उनका चेहरा और आँखों का भींचना थोड़ा रिलैक्स हुआ.. तो मैंने एक झटका और मार कर अपना लण्ड आपी की चूत में जड़ तक उतार दिया।

मेरे पहले झटके के लिए तो आपी जहनी तौर पर तैयार थीं.. उन्होंने पर्दे के फटने की शदीद तक़लीफ़ को ज़रा मुश्किल से लेकिन सहन कर ही लिया था.. लेकिन मेरा ये झटका उनके लिए अचानक था..

इस झटके की तक़लीफ़ से बेसाख्ता उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया और मैंने अपना चेहरा उनसे बचाते हुए फ़ौरन ही साइड पर कर लिया।
आपी के मुँह से घुटी-घुटी आवाज़ निकली ‘आआअ क्ककखह..’
उनका मुँह मेरे कंधे से टकराया और उन्होंने अपने दाँत मेरे कंधे में गड़ा दिए।

आपी को तो जो तक़लीफ़ हो रही थी.. वो तो थी ही.. लेकिन उनके दाँत मेरे कंधे में गड़े थे और नाख़ून कमर में घुस से गए थे.. जिससे मुझे भी अज़ीयत तो बहुत हो रही थी.. लेकिन उस तक़लीफ़ पर लज़्ज़त का अहसास बहुत भारी था।

वो लज़्ज़त एक अजीब ही लज़्ज़त थी जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.. ब्यान नहीं किया जा सकता।

आपी की चूत अन्दर से इतनी गर्म हो रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने किसी तंदूर में अपना लण्ड डाला हुआ हो।
उनकी चूत ने मेरे लण्ड को हर तरफ से बहुत मज़बूती से जकड़ रखा था।

चंद लम्हें मज़ीद इसी तरह गुज़र गए.. अब आपी के दाँतों की गिरफ्त और नाख़ुनों की जकड़न.. दोनों ही ढीली पड़ गई थीं।
मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड को क़रीब दो इंच पीछे की तरफ खींचा और इतनी ही आहिस्तगी से फिर अन्दर को ढकेल दिया।

मेरी आपी के मुँह से हल्की सी ‘आह..’ खारिज हुई.. लेकिन इस ‘आह..’ में तक़लीफ़ का तवस्सुर नहीं.. बल्कि मजे का अहसास था।
उन्होंने आहिस्तगी से अपना सिर वापस ज़मीन पर टिका दिया.. उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।

मैंने अबकी बार फिर उसी तरह आहिस्तगी और नर्मी से लण्ड को क़रीब 3 इंच तक बाहर खींचा और फिर दोबारा अन्दर धकेल दिया.. और लगातार यही अमल करना जारी रखा.. लेकिन अपनी स्पीड को बढ़ने ना दिया।

मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो आपी अपने जिस्म को ज़रा ढील देतीं और जब मैं वापस लण्ड अन्दर पेलता तो उनके जिस्म में मामूली सा तनाव पैदा होता, आपी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती.. उनका मुँह थोड़ा सा खुलता और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह..’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।

मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड आपी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार आपी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज करतीं।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैंने 12-13 बार लण्ड अन्दर-बाहर किया और फिर पूरा लण्ड अन्दर जड़ तक उतार कर रुक गया और अपने चेहरे पर शरारती सी मुस्कान सजाए.. नजरें आपी के चेहरे पर जमा दीं।

आपी कुछ देर तक इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर होने का इन्तजार करती रहीं और कोई हरकत ना होने पर उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं।

आपी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से हटा लीं और चेहरा दूसरी तरफ करके दोबारा आँखें बंद कर लीं।

आपी की इस अदा को देख कर मैं शरारत से बा-आवाज़ हंस दिया.. तो आपी ने आँखें खोले बिना ही मासनोई गुस्से और शर्म से पूर लहजे में कहा- क्या है कमीने.. अपना काम करो ना.. मेरी तरफ क्या देख रहे हो।

मैं आपी की बात सुन कर एक बार फिर हँसा और कहा- अच्छा मेरी तरफ देखो तो सही ना.. अब क्यों शर्मा रही हो.. अब तो..
मैंने अपना जुमला अधूरा ही छोड़ दिया..

आपी की हालत में कोई तब्दीली नहीं हुई।
मैंने कुछ देर इन्तजार किया और फिर शरारत और संजीदगी के दरमियान के लहजे में कहा- क्या हुआ आपी.. अगर अच्छा नहीं लग रहा.. तो निकाल लूँ बाहर?

आपी ने अपनी टाँगों को मज़ीद ऊपर उठाया और मेरे कूल्हों से थोड़ा ऊपर कमर पर अपने पाँव क्रॉस करके मेरी कमर को जकड़ लिया और अपने दोनों बाजुओं को मेरी गर्दन में डाल कर मुझे नीचे अपने चेहरे की तरफ खींचा और अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाते हुए बोलीं- अब निकाल कर तो देखो ज़रा.. मैं तुम्हारी बोटी-बोटी नहीं नोंच लूँगी।

अपनी बात कहते ही आपी ने मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया और मेरा निचला होंठ चूसने लगीं।

मेरी बर्दाश्त भी अब जवाब देती जा रही थी। आपी ने होंठ चूसना शुरू किए.. तो मैंने अपने हाथों से उनके चेहरे को नर्मी से थामा और आहिस्ता आहिस्ता अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

यह मेरी ज़िंदगी में पहला मौका था कि मैं किसी चूत की नर्मी व गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था.. अजीब सी लज़्ज़त थी.. अजीब सा सुरूर था..
पता नहीं हर चूत में ही ये सुरूर… ये लज़्ज़त छुपी होती है या इसका सुरूर इसलिए बहुत ज्यादा था कि ये कोई आम चूत नहीं.. बल्कि मेरी सग़ी बहन की चूत थी.. और बहन भी ऐसी कि जो इंतहाई हसीन थी, जिसे देख कर लड़कियाँ भी रश्क से ‘वाह..’ कह उठें।

अब आपी की तक़लीफ़ तकरीबन ना होने के बराबर रह गई थी और वो मुकम्मल तौर पर इस लज़्ज़त में डूबी चुकी थीं। हर झटके पर आपी के मुँह से खारिज होती लज़्ज़त भरी सिसकी.. इसका सबूत था।

मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ाया.. जिससे मेरा मज़ा तो डबल हुआ ही.. लेकिन आपी भी माशूर हो उठीं, उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और खामोशी और नशे से भरी नजरों से मेरी आँखों में देखते हुए अपने हाथ से मेरा सीधा हाथ पकड़ा.. जो कि उनके गाल पर रखा हुआ था।

अपने उस हाथ को उठा कर अपने सीने के उभार पर रखते हुए बोलीं- आह.. सगीर.. इन्हें भी दबाओ न.. लेकिन नर्मी से..
मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा और आपी की आँखों में देखते हुए ही मुस्कुरा कर अपने हाथ से आपी के निप्पल को चुटकी में पकड़ते हुए कहा- आपी मज़ा आ रहा है.. अब तक़लीफ़ तो नहीं हो रही ना..

आपी ने भी मुस्कुरा कर कहा- बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है सगीर.. मेरा दिल चाह रहा है.. वक़्त बस यहाँ ही थम जाए और तुम हमेशा इसी तरह अपना लण्ड मेरी चूत में ऐसे ही अन्दर-बाहर करते रहो!

मैंने कहा- फ़िक्र ना करो आपी.. मैं हूँ ना अपनी बहना के लिए.. जब भी कहोगी.. मैं हमेशा तुम्हारे लिए हाज़िर रहूँगा।
‘सगीर मैंने कभी सोचा भी नहीं था.. कि मेरा कुंवारापन खत्म करने वाला लण्ड.. मेरी चूत की सैर करने वाला पहला हथियार मेरे भाई.. मेरे अपने सगे भाई का होगा..’
आपी ने यह बात कही लेकिन उनके लहजे में कोई पछतावा या शर्मिंदगी बिल्कुल नहीं थी।

मैंने आपी की बात सुन कर कहा- आपी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी.. कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो.. मेरी प्यारी सी आपी की चूत हो..

मेरे अपने मुँह से ये अल्फ़ाज़ अदा हुए तो मुझ पर इसका असर भी बड़ा शदीद ही हुआ और मैंने जैसे अपना होश खोकर बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिए।

मेरे इन तेज झटकों की वजह से आपी के मुँह से ज़रा तेज सिसकारियाँ निकलीं और वो अपने जिस्म को ज़रा अकड़ा कर घुटी-घुटी आवाज़ में बोलीं- आह नहीं सगीर.. प्लीज़ आहहीस.. आहिस्ता.. अफ दर्द होता है.. आह.. आहिस्ता करो प्लीज़..

मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि आपी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया.. मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।

मैं रुका तो आपी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा- सगीर इन्हें चूसो.. इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है।

मैंने आपी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर से मेरे झटके शुरू हो गए और उस वक़्त मुझे ये पता चला कि जब आपका लण्ड किसी गरम चूत में हो तो कंट्रोल अपने हाथ में रखना तकरीबन नामुमकिन हो जाता है।

मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा.. मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज होने लगी। अब आपी भी मेरे झटकों को फुल एंजाय कर रही थीं.. शायद उनकी मामूली तक़लीफ़ पर चूत का मज़ा और निप्पल चूसे जाने का मज़ा ग़ालिब आ गया था।

या शायद वो मेरे मज़े के लिए अपनी तक़लीफ़ को बर्दाश्त कर रही थीं.. इसलिए वो अब मुझे तेज झटकों से मना भी नहीं कर रही थीं।

लेकिन अब आपी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक आपी की चूत में दाखिल होता.. तो सामने से आपी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह..’ निकल जाती।

मैं अब अपनी मंज़िल के बहुत क़रीब पहुँच चुका था, लम्हा बा लम्हा मेरे झटकों में बहुत तेजी आती जा रही थी लेकिन मैं अपनी बहन से पहले डिसचार्ज होना नहीं चाहता था.. मैंने बहुत ज्यादा मुश्किल से अपने जेहन को कंट्रोल करने की कोशिश की और बस एक सेकेंड के लिए मेरा जेहन मेरे कंट्रोल में आया और मैंने यकायक अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

आपी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- रुक क्यों गए हो.. प्लीज़ सगीर अन्दर डालो ना वापस.. मैं झड़ने वाली हूँ.. डालोऊऊ नाआअ..

आपी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि आपी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है.. जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए।

अभी मेरे मज़ीद 6-7 झटके ही हुए थे कि आपी का जिस्म पूरा अकड़ गया और उन्होंने मेरे सिर को अपनी पूरी ताक़त से अपने उभार पर दबा दिया और अब मुझे बहुत वज़या महसूस होने लगा कि आपी की चूत मेरे लण्ड को भींच रही है और फिर छोड़ रही है..

और उस वक़्त ही मुझे पहली बार ये बात मालूम हुई कि जब लड़की डिस्चार्ज होती है.. तो उसकी चूत लण्ड को इस तरह भींचती है.. कि कभी सिकुड़ती है.. तो कभी लूज होती है।

आपी ‘आहें..’ भरते हुए डिस्चार्ज हो गईं लेकिन मैंने अपने झटकों पर कोई फ़र्क़ नहीं आने दिया और अगले चंद ही झटकों में मेरा जिस्म भी शदीद तनाव में आया.. मेरा लण्ड इतना सख्त हो गया था कि जैसे लोहा हो।

फिर जैसे मेरे पूरे बदन से लहरें सी उठ कर लण्ड में जमा होना शुरू हुईं और मेरे मुँह से एक तेज ‘आहह..’ के साथ सिर्फ़ एक जुमला निकला- अहह.. ऊऊऊऊ.. मैं गया.. आपी.. में मैं गया.. आआअ..

इसके साथ ही मेरा लण्ड फट पड़ा और झटकों-झटकों के साथ पानी की फुहार आपी की चूत के अन्दर ही बरसाने लगा।
मेरा जिस्म ढीला पड़ गया और मैं आपी के सीने के दोनों उभारों के दरमियान अपना चेहरा रखे.. आँखें बंद किए तेज-तेज साँसें लेकर अपने हवास को बहाल करने लगा।

मुझे ऐसा ही महसूस हो रहा था.. कि जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं रही है और मैं कभी उठ नहीं पाऊँगा।

मुझे अपने अन्दर इतनी ताक़त भी नहीं महसूस हो रही थी कि अपनी आँखें खोल सकूँ। मेरे जेहन में भी बस एक काला अंधेरा सा परदा छा गया था।

जब मेरे होशो-हवास बहाल हुए और मैं कुछ महसूस करने के क़ाबिल हुआ.. तो मुझे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ। मेरा लण्ड अभी भी आपी की चूत के अन्दर ही था और पूरा बैठा तो नहीं लेकिन अब ढीला सा पड़ गया था।

मेरे हाथ ढीले-ढाले से अंदाज़ में आपी के जिस्म के दोनों तरफ कार्पेट पर मुड़ी-तुड़ी हालत में पड़े थे.. मेरा बायाँ गाल आपी के सीने के दोनों उभारों के दरमियान में था।

आपी ने अपनी टाँगों को अभी भी उसी तरह मेरी कमर पर क्रॉस कर रखा था.. लेकिन उनकी गिरफ्त अब ढीली थी। आपी ने एक हाथ से मेरे गाल को अपनी हथेली में भर रखा था और दूसरा हाथ मेरे बालों में फेरते सिर सहला रही थीं।

मैंने अपनी आँखें खोलीं और काफ़ी ताक़त इकट्ठा करके अपना सिर उठाया।

मैंने आपी के चेहरे को देखा.. उनके चेहरे पर मेरे लिए गहरे सुकून और शदीद मुहब्बत के आसार थे।
आपी ने फ़िक्र मंदी से कहा- सगीर क्या हालत हो जाती है तुम्हारी.. बिल्कुल ही बेजान हो जाते हो।
‘कुछ नहीं आपी बस पहली बार है.. तो ऐसा तो होता ही है..’
‘नहीं सगीर.. तुम्हारी हालत हमेशा ही ऐसी हो जाती है..’

‘आपी आपके साथ जब से तब ऐसी हालत हो रही है ना.. क्योंकि जो-जो कुछ आपके साथ किया है मैंने.. वो सब पहली-पहली बार ही किया है ना।’
‘अच्छा बहस को छोड़ो.. अब उठो काफ़ी देर हो गई है.. कुछ ही देर में सब उठ जाएंगे।’
आपी ने ये कहा और मेरे कंधों पर हाथ रख कर उठने लगीं।

मैं सीधा हुआ तो मेरा लण्ड हल्की सी ‘पुचह..’ की आवाज़ से आपी की चूत से बाहर निकल आया.. मेरा लण्ड आपी के खून और अपनी औरत की जवानी के रस से सफ़ेद हो रहा था।

मैंने एक नज़र आपी की चूत पर डाली तो वहाँ भी मुझे कुछ ऐसा ही मंज़र नज़र आया।
अनजानी सी लज़्ज़त और जीत की खुशी मैंने अपने चेहरे पर लिए हुए आपी से कहा- आपी उठ कर ज़रा अपना हाल देखो!

आपी उठ कर बैठीं.. एक नज़र मेरे लण्ड पर डाली और फिर अपनी टाँगों को मज़ीद खोल कर अपनी चूत को देखने लगीं।
फिर वे बोलीं- कितने ज़ालिम भाई हो तुम.. कितना सारा खून निकाल दिया अपनी बहन का!

मैंने हँस कर जवाब दिया- फ़िक्र ना करो मेरी प्यारी बहना जी.. अगली बार खून नहीं निकलेगा.. बस वो ही निकलेगा जिससे तुम्हें मज़ा आता है.. वैसे आपी मुझसे ज्यादा मज़ा तो तुमको आया है.. मैंने एक मिनट के लिए बाहर किया निकाला था.. कैसी आग लग गई थी ना?

फिर मैंने आपी की नक़ल उतारते हुए चेहरा बिगड़ा-बिगड़ा कर कहा- हायईईई.. सगीर.. निकाल क्यों लिया.. अन्दर डालो नाआअ वापस..
आपी एकदम से शर्म से लाल होती हुई चिड़ कर बोलीं- बकवास मत करो.. उस वक़्त मुझसे बिल्कुल कंट्रोल नहीं हो रहा था अच्छा..

आपी ने बात खत्म की तो मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि आपी ने एकदम शदीद परेशानी से मेरे कंधे की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा- ये क्या हुआ है सगीर?

मैंने अपने कंधे को देखा तो वहाँ से गोश्त जैसे उखड़ सा गया था जिसमें से खून रिस रहा था।

मैंने आपी की तरफ देखे बगैर अपनी कमर को घुमा कर आपी के सामने किया और कहा- जी ये आपके दाँतों से हुआ था और ज़रा कमर भी देखो.. यहाँ आपके नाखूनों ने कोई गुल खिलाया हुआ है।
‘या मेरे खुदा.. आह.. सगीर..’

आपी ने बहुत ज्यादा फ़िक्रमंदी से ये अल्फ़ाज़ कहे.. तो मैं उनकी तरफ से परेशान हो गया और पलट कर उनकी तरफ देखा.. तो आपी अपने मुँह पर हाथ रखे एकटक मेरे जख्मों को देख रही थीं।
उनके चेहरे पर शदीद परेशानी के आसार थे और फटी-फटी आँखों में आँसू आ गए थे।

मैंने आपी की हालत देखी तो फ़ौरन उनको अपने गले लगाने के लिए आगे बढ़ते हुए कहा- अरे कुछ नहीं है आपी.. छोटे-मोटे ज़ख़्म हैं.. परेशानी की क्या बात इसमें?

मैंने अपनी बात खत्म करके आपी को अपनी बाँहों में लेना चाहा.. तो उन्होंने मेरे सीने पर हाथ रख कर पीछे ढकेल दिया और रोते हुए कहा- ये.. ये मैंने क्या है.. सगीर.. कितना दर्द हो रहा होगा ना तुम्हें?

मैंने अब ज़बरदस्ती आपी को अपनी बाँहों में भरा.. उनकी कमर को सहलाते और उनके चेहरे को अपने सीने में दबाते हुए कहा- नहीं ना आपी.. कुछ भी नहीं हो रहा.. क्यों परेशान होती हो.. छोटे से ज़ख़्म हैं.. और सच्ची बात कहूँ.. तो इस छोटी सी तक़लीफ़ में भी बहुत ज्यादा लज्जत है.. और ये ज़ख़्म मुझे इसलिए आए हैं कि मेरी बहन अपनी तक़लीफ़ बर्दाश्त कर रही थी.. जो मैंने दी थी.. तो मुझे तो ये जख्म बहुत अज़ीज़ हैं.. प्लीज़ आप परेशान ना हों।

मैं इसी तरह कुछ देर आपी की कमर को सहलाता और तस्सली देता रहा.. तो उनका मूड भी बदल गया और वो रिलैक्स फील करने लगीं।

मैंने हँस कर कहा- चलो आपी अब अम्मी वगैरह भी उठने वाले होंगे.. जाओ आप अपने ज़ख़्म और खून साफ करो और मैं अपना कर लेता हूँ।

आपी ने भी हँस कर मुझे देखा और मेरे होंठों पर एक किस करके खड़ी हो गईं।
मैं भी उनके साथ खड़ा हुआ.. तो आपी दरवाज़े की तरफ बढ़ते हो बोलीं- सगीर, इन जख्मों पर एंटीसेप्टिक ज़रूर लगा लेना.. अम्मी उठने वाली होंगी.. वरना मैं ये लगा कर जाती।

मैंने कहा- अरे जाओ ना बाबा.. परेशान क्यों होती हो.. कुछ भी नहीं हुआ है मुझे.. बेफ़िक्र रहो और अपने कपड़े बाहर से उठा लो और पहन कर ही नीचे जाना।
आपी ने कहा- हाँ अब तो पहन कर ही जाऊँगी.. कोई ऐसे नंगी ही तो नहीं जाऊँगी ना?
आपी ये कह कर बाहर निकल गईं..

मैंने एक नज़र कार्पेट को देखा, गहरे रंग का होने की वजह से बहुत गौर से देखने पर मुझे वहाँ खून के चंद धब्बे नज़र आए। मैंने किसी कपड़े की तलाश में आस-पास नज़र दौड़ाई तो कोई कपड़ा ऐसा ना नज़र आया कि जिससे मैं ये साफ कर सकूँ।

मैं बाहर निकला.. तो आपी अपनी सलवार पहन चुकी थीं और अब क़मीज़ पहन रही थीं।
मैंने आपी को देख कर कहा- आपी वो कार्पेट पर खून के धब्बे हैं यार वो..
मैंने अभी इतना ही कहा था तो आपी मेरी बात काट कर बोलीं- हाँ वो मैं पहले ही देख चुकी हूँ.. तुम जाओ अपने कमरे में.. वो मैं साफ कर दूँगी।

मैंने आपी की बात सुन कर सोचा यार बहन हो तो ऐसी कि हर बात का ख़याल रहता है आपी को..
मैंने कहा- चलो ठीक है आपी.. मैं जाता हूँ.. ज़रा फ्रेश हो लूँ।

ये कह कर मैं अपने दरवाज़े पर पहुँचा तो आपी ने आवाज़ दी- सगीर बात सुनो।
मैं रुक कर आपी की तरफ घूमा.. तो वो अपने कपड़े पहन चुकी थीं।

आपी मेरे पास आईं और मेरे कंधे के ज़ख़्म पर फिर से हाथ फेरा और फिर मेरे होंठों को चूम कर शरारत से कहा- सगीर याद है.. जब तुमने मेरी टाँगों के बीच में थप्पड़ मार कर बदला लिया था.. जब मुझे मेनसिस चल रहे थे और पैड होने की वजह से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा था तुम्हारे थप्पड़ का याद है वो दिन?

मैंने कुछ ना समझ आने वाले लहजे में जवाब दिया- हाँ याद है मुझे.. क्यों वो बात क्यों याद करवा रही हो?

आपी ने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा कर काटा और बोलीं- उस दिन मैंने तुमसे कहा था कि मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है.. मैं सही टाइम पर ही बदला लूँगी.. अभी नहीं.. देखो शायद वो टाइम आ जाए और हो सकता है कि ऐसा टाइम कभी ना आए.. याद है मेरा ये जुमला..??
मैंने कहा- हाँ याद है मुझे.. कि आपने ऐसा कहा था।

आपी ने शरारत से भरी एक गहरी नज़र मेरे चेहरे पर डाली और कहा- जब मैंने तुम्हारी टाँगों के बीच में मारा था ना.. तो उस वक़्त तुमने गुस्से में मुझे गाली दी थी.. तुमने थप्पड़ खाते ही चिल्ला कर कहा था ‘बहन चोद आपीयईईई..’ बस मुझे उस गाली का बदला लेना रहता था। और वो बदला में अब लूँगी क्यों कि अब टाइम आ गया।

फिर आपी हँसते हुए बोलीं- मैं नहीं तुम खुद हो बहन चोद.. समझे?
यह बोल कर आपी सीढ़ियों की तरफ चल दीं और मैं वहीं दरवाज़े पर खड़ा बेचारा सा मुँह लेकर अपना कान खुजाने लगा।

ख्वातीन और हजरात, आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें। नीचे कमेन्ट्स भी जरूर लिखें।
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