जिस्मानी रिश्तों की चाह-59

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 59)

जूजाजी 2016-08-12 Comments

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सम्पादक जूजा

मैंने आपी को आश्वस्त करते हुए कहा- अरे नहीं, अन्दर नहीं डाल रहा.. अन्दर रगड़ने से मतलब है कि आपकी चूत के होंठों को जरा सा खोल कर अन्दर नर्म गुलाबी हिस्से पर अपना लंड रगडूँगा।

आपी को अभी भी मुझ पर भरोसा नहीं हो रहा था।
उन्होंने अपनी क़मर को नीचे की तरफ खम देते हुए गाण्ड ऊपर उठा दी लेकिन गर्दन घुमा कर मेरे चेहरे पर ही नज़र जमाए रखी।

मैंने अपने लण्ड को हाथ में लिया और आपी की चूत के दोनों लबों के दरमियान रख कर लबों को खोला और चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर लण्ड को ऊपर से नीचे रगड़ने लगा।

मेरे इस तरह रगड़ने से मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अंदरूनी हिस्से को रगड़ दे रही थी और टोपी की साइड्स आपी की चूत के लबों पर रगड़ लगा रहे थे।

मैंने 4-5 बार ऐसे अपने लण्ड को रगड़ा तो आपी के मुँह से बेसाख्ता ही एक सिसकारी निकली और मुझे अंदाज़ा हो गया कि आपी को इस रगड़ से मज़ा आने लगा है।

कुछ देर आपी ऐसे ही गर्दन मेरी तरफ किए रहीं और अपनी आँखों को बंद करके दिल की गहराई से इस रगड़ को महसूस करने लगीं। अब मेरे लण्ड की रगड़ के साथ-साथ ही आपी ने अपनी चूत को भी हरकत देनी शुरू कर दी थी।

मैंने अपने लण्ड को एक जगह रोक दिया तो आपी ने आँखें खोल कर मुझे देखा और फिर शर्म और मज़े की मिली-जुली कैफियत से मुस्कुरा कर अपना मुँह फरहान की तरफ कर लिया और अपनी चूत हिला-हिला के मेरे लण्ड पर रगड़ने लगीं।ि

कुछ देर तक ऐसे ही अपना लण्ड आपी की चूत के अन्दर रगड़ने के बाद मैंने अपना लण्ड हटाया और आपी की गाण्ड के सुराख पर अपनी ज़ुबान रखते हो अपनी दो उंगलियाँ आपी की चूत में तकरीबन 1. 5 इंच तक उतार दीं और उन्हें आगे-पीछे करते हुए अपनी तीसरी उंगली भी अन्दर दाखिल कर दी।

आपी ने तक़लीफ़ के अहसास से डूबी आवाज़ में कहा- उफ्फ़ सगीर.. दर्द हो रहा है!

मैंने आपी की बात अनसुनी करते हुए अपनी उंगलियों को अन्दर-बाहर करना जारी रखा और उनकी गाण्ड के सुराख को चूसने लगा ताकि इससे तक़लीफ़ का अहसास कम हो जाए..
लेकिन आपी की तक़लीफ़ में कमी ना हुई और वो बोलीं- आआईईई सगीर.. दर्द ज्यादा बढ़ रहा है ऐसे.. निकालो उंगलियाँ उफ्फ़..

मैंने उंगलियाँ निकाल लीं और आपी से कहा- आपी ऐसा करो.. फरहान के ऊपर आ जाओ और उसका लण्ड चूसो.. वो साथ-साथ आपकी चूत के दाने(क्लिट) को भी चूसता रहेगा तो दर्द नहीं होगा।
मेरी बात सुन कर फरहान खुश होता हुआ बोला- हाँ आपी ऊपर आ जाएँ.. इससे ज्यादा मज़ा आएगा।

आपी ने एक नज़र मेरे चेहरे पर डाली और फिर फरहान को देखते हुए मुँह चढ़ा कर तंज़िया लहजे में उसकी नकल उतारते हुए बोली- आपी ऊपाल आ जाएं बाअला मज़ा आएगा.. खुशी तो देखो ज़रा इसकी.. शर्म करो कमीनो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. कोई बाज़ारी औरत नहीं हूँ।

आपी का अंदाज़ देख कर मैं मुस्कुरा दिया.. लेकिन फरहान ने बुरा सा मुँह बनाया और खराब मूड में कहा- आपी..!! भाई कुछ भी कहते रहें.. आप उन्हें कुछ नहीं कहती हैं.. मैं कुछ बोलूँ तो आप नाराज़ हो जाती हैं।

आपी ने फरहान की ऐसी शक्ल देख कर हँसते हुए उसके गाल पर हल्की सी चपत लगाई और अपनी टाँगें उसके चेहरे के दोनों तरफ़ रखते हुए बोलीं- पगले मजाक़ कर रही थी तुमसे.. हर बात पर इतने बगलोल ना हो जाया करो।

फिर वे अपनी चूत फरहान के मुँह पर टिकाते हुए झुकीं और उसका लण्ड अपने मुँह में भर लिया।

फरहान ने अभी भी बुरा सा मुँह बना रखा था.. लेकिन जैसे ही आपी की चूत फरहान के मुँह के पास आई तो उनकी चूत की महक ने फरहान का मूड फिर से हरा-भरा कर दिया और एक नए जोश से उसने आपी की चूत के दाने को अपने मुँह में ले लिया।

मैंने आपी की चूत की तरफ हाथ बढ़ाया और फिर से उनकी गाण्ड के सुराख को चूसते हुए चूत में पहले 2 और फिर 3 उंगलियाँ डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा और मेरे आइडिया का रिज़ल्ट पॉज़िटिव ही रहा.. मतलब आपी को अब इतनी तक़लीफ़ नहीं हो रही थी.. या यूँ कहना चाहिए कि आपी के मज़े का अहसास उनकी तकलीफ़ के अहसास पर ग़ालिब आ गया था और कुछ ही देर बाद आपी की चूत मेरी 3 उंगलियों को सहने के क़ाबिल हो गई थीं,अब वो मेरी उंगलियों के साथ-साथ ही अपनी चूत को भी हरकत देने लगीं।

अब पोजीशन ये थी कि आपी फरहान का लण्ड चूसते हुए अपनी चूत को भी हरकत दे रही थीं। फरहान के मुँह में आपी की चूत का दाना था.. जिसे वो बहुत मजे और स्वाद से चूस रहा था। मेरी 3 उंगलियाँ आपी की चूत में डेढ़ दो इंच गहराई तक अन्दर-बाहर हो रही थीं और मैं आपी की गाण्ड के सुराख पर कभी अपनी ज़ुबान फिराता.. तो कभी उसे चूसने लगता।

हम अपने-अपने काम में दिल से मसरूफ़ थे कि तभी एक नए ख्याल ने मेरे दिमाग में झटका सा दिया। मैं अपनी जगह से उठ कर अलमारी के पास गया और डिल्डो निकाल लिया।
यह वही भूरे रंग का डिल्डो था जिसकी मोटाई बिल्कुल मेरे लण्ड जितनी ही थी और लंबाई तकरीबन 12 इंच थी, इसके दोनों तरफ लण्ड की टोपी बनी हुई थी।

मैंने डिल्डो निकाला और मेज़ से तेल की बोतल उठा कर वापस आ रहा था.. तो आपी की नज़र उस डिल्डो पर पड़ी और उन्होंने फरहान के लण्ड को मुँह में ही रखे हुए आँखें फाड़ कर मुझे देखा।

मैंने मुस्कुरा कर आपी को आँख मारी और डिल्डो की टोपी को आपी की आँखों के सामने लहराते हुए कहा- मेरी प्यारी बहना जी.. क्या तुम इसके लिए तैयार हो?
आपी ने फरहान के लण्ड को अपने मुँह से निकाला लेकिन हाथ में पकड़े-पकड़े ही कहा- तुम्हारा दिमाग खराब हुआ है क्या सगीर..! ये इतना बड़ा है.. ये तो मैं कभी भी नहीं डालने दूँगी।

मैंने आपी के पीछे आते हुए कहा- कुछ नहीं होता यार आपी.. रिलैक्स.. मैं ये पूरा थोड़ी ना अन्दर घुसाने लगूंगा..

आपी ने इसी तरह अपनी गाण्ड उठाए और चूत को फरहान के मुँह से लगाए गर्दन घुमा कर मुझे देखा और परेशानी से कहा- लेकिन सगीर इससे बहुत दर्द तो होगा ना?

मैंने अपनी 3 उंगलियों को आपस में जोड़ कर डिल्डो की नोक पर रखा और आपी को दिखाते हुए कहा- ये देखो आपी.. ये मेरी 3 उंगलियों से थोड़ा सा ही ज्यादा मोटा है.. और आप मेरी 3 उंगलियाँ अपनी चूत में ले चुकी हो.. इतना दर्द नहीं होगा.. और अगर हुआ तो मुझे बता देना.. मैं इसे बाहर निकाल लूँगा।

अपनी बात कह कर मैंने डिल्डो के हेड पर बहुत सारा तेल लगाया और कुछ तेल अपनी उंगली पर लगा कर आपी की चूत की अंदरूनी दीवारों पर भी लगा दिया।
अब डिल्डो को हेड से ज़रा पीछे से पकड़ कर मैंने एक बार आपी को देखा।

वो मेरे हाथ में पकड़े डिल्डो को देख रही थीं और उनकी आँखों में फ़िक्र मंदी के आसार साफ पढ़े जा सकते थे।

मैं कुछ देर डिल्डो को ऐसे ही थामे हुए आपी के चेहरे पर नज़र जमाए रहा.. तो उन्होंने मेरी नजरों को महसूस करके मेरी तरफ देखा। आपी से नज़र मिलने पर मैंने आँखों से ही ऐसे इशारा किया.. जैसे कहा हो कि ‘फ़िक्र ना करो.. मैं हूँ ना..’

फिर आहिस्तगी से आपी की चूत के लबों के दरमियान डिल्डो का हेड रख कर उससे लकीर में फेरा.. जिससे आपी की चूत के दोनों लब जुदा हो गए और हेड डायरेक्ट चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर टच होने लगा।

मैंने 3-4 बार ऐसे ही डाइडो के हेड को चूत के अन्दर ऊपर से नीचे तक फेरा और फिर उसकी नोक को चूत के निचले हिस्से में सुराख पर रख कर हल्का सा दबाव दिया।

आपी की चूत उनके अपने ही जूस से चिकनी हो रही थी और मैंने काफ़ी सारा आयिल भी चूत के अन्दर और डिल्डो के हेड पर लगा दिया था.. जिसकी वजह से पहले ही हल्के से दबाव से डिल्डो का हेड जो तकरीबन डेढ़ इंच लंबाई लिए हुए था.. एक झटके से अन्दर उतर गया।

उसके अन्दर जाने से आपी के जिस्म को भी एक झटका लगा और उन्होंने सिर को झटका देते हुए.. आँखें बंद करके एक सिसकारी भरी- उम्म्म्म सगीर..

मैं चंद सेकेंड ऐसे ही रुका और फिर डिल्डो को मज़ीद आधा इंच अन्दर धकेल कर आहिस्ता-आहिस्ता उसे हिलाने लगा।

आपी ने अपने सिर को ढलका कर अपना रुखसार (गाल) फरहान के लण्ड पर टिका दिया और आँखें बंद किए लंबी-लंबी सांसें लेकर बोलीं- उफ्फ़ सगीर.. बहुत मज़ा आ रहा है।
‘देखा मैं कह रहा था ना.. कुछ नहीं होगा.. आप ऐसे ही टेन्शन ले रही थीं।’

इतने मे मैंने फरहान को आपी की चूत का दाना चूसने का इशारा किया और डिल्डो को अन्दर-बाहर करते हुए आहिस्ता-आहिस्ता और गहराई में ढकेलने लगा।

डिल्डो अब तकरीबन ढाई इंच तक अन्दर जा रहा था.. मैं इतनी गहराई मेंटेंन रखते हुए आपी की चूत में डिल्डो अन्दर-बाहर करता रहा।

कुछ देर बाद मैंने डिल्डो को मज़ीद गहराई में उतारने के लिए थोड़ा दबाव दिया.. तो आपी ने तड़फ कर एक झटका लिया और सिर उठा लिया।
फिर मेरी तरफ गर्दन घुमा कर मेरी आँखों में देखती हुई सिसक कर बोलीं- बस सगीर.. और ज्यादा अन्दर मत करो.. बहुत दर्द होता है.. बस इतना ही अन्दर डाले आगे-पीछे करते रहो।

मैं समझ गया था कि अब आपी की चूत का परदा सामने आ गया है और डिल्डो वहाँ ही टच हुआ था.. जिससे आपी को दर्द हुआ।
मैं खुद भी आपी की चूत के पर्दे को डिल्डो से फाड़ना नहीं चाहता था। बल्कि मैं चाहता था कि मेरी बहन की चूत का परदा मेरे लण्ड की ताकत से फटे.. मेरी बहन का कुंवारापन मेरे लण्ड की वहशत से खत्म हो।

मैंने आपी की बात सुन कर मुस्कुरा कर उन्हें देखा और कहा- अच्छा जी.. तो इसका मतलब है.. हमारी बहना जी को इससे बहुत मज़ा आ रहा है।

आपी ने मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- हाँ.. सगीर.. उम्म्म्म मम.. यह बहुत अलग सा मज़ा है.. बहुत हसीन अहसास है.. आह..
मैंने लोहा गर्म देखा तो कहा- तो आपी मुझे डालने दो ना अपना लण्ड.. उससे और ज्यादा मज़ा मिलेगा।
‘नहीं सगीर.. वो अलग चीज़ है.. तुम्हें नहीं पता क्या.. उससे मैं प्रेग्नेंट भी हो सकती हूँ।’

‘कुछ नहीं होता आपी.. मैं कंडोम लगा लूँगा ना..’
‘नहीं ना सगीर.. मुझे पता है कंडोम भी हमेशा सेफ नहीं होता।’

‘मैं छूटने लगूंगा.. तो लण्ड बाहर निकाल लूँगा ना..’
‘अच्छा और अगर तुमने एक सेकेंड के लिए भी अपना कंट्रोल खो दिया तो फिर?’
‘आपी मैं सुबह गोलियाँ ला दूँगा.. प्रेग्नेन्सी रोकने की.. आप वो खा लेना..’

मेरे बहस करने से आपी के अंदाज़ में थोड़ी झुंझलाहट पैदा हो गई थी.. उन्होंने कहा- बस नहीं ना सगीर.. खामखाँ ज़िद मत करो।
आपी किसी तरह भी नहीं मान रही थीं.. तो मैंने अपने आपको समझाया कि शायद अभी वक्त ही नहीं आया है।

इन सब बातों के दौरान मेरे हाथ की हरकत भी रुक गई थी और फरहान ने भी आपी की चूत से मुँह हटा लिया था और हमारी बातें सुन रहा था कि शायद कोई बात बन ही जाए।

लेकिन बात ना बनते देख कर उसने बेचारगी से मुझे देखा.. तो मैंने उसे वापस चूत का दाना चूसने का इशारा किया और उदास सा चेहरा लिए हार मान कर आपी से कहा- अच्छा छोड़ें इसको.. आप अभी अपना मज़ा खराब नहीं करो।

फरहान ने फिर से चूत से मुँह लगा दिया था.. तो मैंने भी अपने हाथ को हरकत देनी शुरू कर दी और आपी की चूत में डिल्डो अन्दर बाहर करने लगा और आपी ने भी फिर से अपना सिर झुकाया और फरहान का लण्ड चूसने लगीं।

लेकिन मेरा जेहन वहाँ ही अटका हुआ था कि मैं कैसे चोदूँ आपी को।
ये ही सोचते-सोचते मैंने चंद सेकेंड्स में अपने जेहन में प्लान तरतीब दिया और अमल करने का फ़ैसला करते हुए फरहान को इशारा किया कि वो डिल्डो को पकड़े।

फरहान ने कुछ ना समझने के अंदाज़ में मुझे देखा और डिल्डो को पकड़ लिया। मैंने इशारों-इशारों में फरहान को समझाया कि डिल्डो को ज्यादा अन्दर ना करे और इसी रिदम से.. जैसे मैं अन्दर-बाहर कर रहा हूँ.. ऐसे ही करता रहे।

फरहान मेरी बात को समझ गया और उसी तरह आहिस्ता-आहिस्ता डिल्डो आपी की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।

मैं अपनी जगह से उठा और आपी के पीछे अपनी पोजीशन सैट करके ऐसे बैठा कि मेरा जिस्म आपी के जिस्म से टच ना हो।
मैं अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर आपी की चूत के क़रीब लाया और फरहान को इशारा किया कि वो 3 बार ऐसे ही अन्दर-बाहर करे और चौथी बार इसी रिदम में डिल्डो बाहर निकाल कर ऊपर कर ले।

फरहान को अब अंदाज़ा हो गया था कि मैं क्या करने लगा हूँ और उसकी आँखों में जोश सा भर गया था।
उसने मेरी बात समझ कर आँखों से इशारा किया कि वो तैयार है!

मैंने अपनी पोजीशन को सैट किया और अपना लण्ड आपी की चूत के जितने नज़दीक ले जा सकता था.. ले आया।
लेकिन इस बात का ख्याल रखा कि लण्ड आपी की चूत से टच ना हो.. फिर मैंने हाथ के इशारे से फरहान को रेडी का इशारा किया और खुद भी लण्ड अन्दर डालने के लिए तैयार हो गया।

जैसे मैंने फरहान को समझाया था उसी तरह उसने 3 बार इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर किया और चौथी बार में लण्ड बाहर निकाल कर ऊपर उठा लिया।

जैसे ही फरहान ने डिल्डो बाहर निकाला मैंने एक सेकेंड लगाए बगैर अपना लण्ड अन्दर ढकेल दिया।

आपी उस वक़्त एक लम्हे को ठिठक कर रुकीं और फिर से लण्ड चूसने लगीं। आपी को इस तब्दीली का पता नहीं चला था और वो ये ही समझी थीं कि डिल्डो गलती से बाहर निकल गया था.. जो मैंने दोबारा अन्दर डाल दिया है।

आपी की चूत में मेरा लण्ड दो इंच चला गया था, मैं कोशिश कर रहा था कि डिल्डो वाला रिदम कायम रखते हुए ही अपना लण्ड अन्दर-बाहर करता रहूँ।

बहुत अजीब सी सिचुयेशन थी.. मेरा लण्ड चूत के अन्दर था.. लेकिन मैं मज़े को फील नहीं कर पा रहा था और वो बात ही नहीं थी जो चूत में लण्ड डालने से होनी चाहिए थी। शायद इसकी वजह यह थी कि मैंने आपी की मर्ज़ी के बगैर उनकी चूत में लण्ड डाला था।

शायद आपी की नाराज़गी का डर था.. या अपनी सग़ी बहन की चूत में लण्ड डालने से गिल्टी का अहसास था.. या शायद मेरी पोजीशन ऐसी थी कि मैं अकड़ा हुआ था और कोशिश यह थी कि मेरा जिस्म आपी से टच ना हो.. और रिदम भी कायम रहे।

इसलिए मैं अपना बैलेन्स बनाए रखने की कोशिश कर रहा था। बरहराल पता नहीं क्या बात थी कि मुझे रत्ती भर भी मज़ा नहीं फील हो रहा था।

मैंने 4-5 बार ही अपने लण्ड को आपी की चूत में अन्दर-बाहर किया था कि एकदम मेरा बैलेन्स बिगड़ गया और मैंने अपने आपको आपी पर गिरने से बचाते हुए हाथ सामने किए.. जो सीधे आपी के कूल्हों पर पड़े और कूल्हे नीचे दब गए और इसी झटके की वजह से मेरा लण्ड भी झटके से आगे बढ़ा और आपी की चूत के पर्दे पर मामूली सा दबाव डाल कर रुक गया।

आपी ने मेरे हाथों को झटके से अपने कूल्हों पर पड़ते और अपने परदा-ए-बकरत पर लण्ड के दबाव को महसूस किया.. तो सिर उठा कर तक़लीफ़ से कराहते हुए कहा- उफ्फ़.. आराम से करो नाआआ.. जंगलीईइ.. सारा अन्दर डालोगे क्या?

यह कह कर आपी ने पीछे देखा तो मेरी पोजीशन देख कर उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं और उन्हें अंदाज़ा हुआ कि जिसस दबाव को उन्होंने अपनी चूत के पर्दे पर महसूस किया.. वो डिल्डो नहीं बल्कि उनके अपने सगे भाई का लण्ड था..
तो वो तड़फ कर चिल्ला के बोलीं- नहीं.. सगीर.. खबीस मैंने तुम्हें मना किया था.. बाहर निकालोओ जल्दीई..

यह कह कर आपी उठने के लिए ज़ोर लगाने लगीं.. लेकिन मेरे हाथों ने आपी के कूल्हों को दबा रखा था और मेरा पूरा वज़न आपी पर था.. जिसकी वजह से वो उठने में कामयाब ना हो सकीं।

मैंने अपना वज़न आपी के ऊपर से हटाते हुए कहा- कुछ नहीं होता आपी.. देखो आपको कितना ज्यादा मज़ा आ रहा था!
आपी ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा- नहीं सगीर.. इसे फ़ौरन निकालो और मुझे उठने दो.. नहीं तो मैं तुम्हें ज़िंदगी भर माफ़ नहीं करूँगी.. याद रखना।
यह कहते ही उन्होंने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया।

यह हक़ीक़त है कि मैं अपनी बहन की आँखों में कभी आँसू नहीं देख सकता हूँ.. सेक्स या हँसी-मज़ाक़ अपनी जगह.. लेकिन आपी की आँखें नम देख कर मेरा दिल बंद होने लगता है।

आपी अभी जिस तरह फूट कर रोई थीं.. मैं दंग रह गया। आपी को इस तरह रोता देख कर मेरी हवस ही गुम हो गई।
मैंने तड़फ कर अपना लण्ड आपी की चूत से बाहर खींचा.. तो वे फ़ौरन फरहान के ऊपर से उठ कर साइड पर बैठ गईं।

‘अच्छा आपी प्लीज़ रोओ मत.. मैं कुछ नहीं कर रहा प्लीज़ आपी.. चुप हो जाओ..’
मैं यह कह कर आगे बढ़ा और आपी को अपनी बाँहों में ले लिया।

आपी ने एक झटका मारा और मुझे धक्का दे कर मेरी बाँहों के हलक़े से निकल गईं और शदीद रोते हुए कहा- सगीर मैंने मना किया था ना तुम्हें.. क्यों मुझे इस तरह ज़लील करते हो.. मैं खुद ये करना चाहती हूँ.. लेकिन मैं इसके लिए अभी तैयार नहीं हूँ।

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ.. इतनी शिद्दत से आपी को रोते हुए मैंने पहले कभी नहीं देखा था.. मेरी समझ में कुछ ना आया.. तो मैंने आपी को बाँहों में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा- आपी आई लव यू.. मैं आप से बहुत मुहब्बत करता हूँ.. मैं कभी ये नहीं चाहता कि आपको कोई तक़लीफ़ दूँ या आप की मर्ज़ी के खिलाफ कुछ करूँ.. बस पता नहीं क्या हो गया था मुझे.. प्लीज़ आपी माफ़ कर दो मुझे।

यह कह कर मैंने आपी को फिर बाँहों में लेना चाहा.. तो उन्होंने चिल्ला कर गुस्से से कहा- नहींईईई नाआअ सगीर.. दूर रहो मुझसे..

आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।
वाकिया मुसलसल जारी है।
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