जिस्मानी रिश्तों की चाह -14

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 14)

जूजाजी 2016-06-28 Comments

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सम्पादक जूजा

अब तक आपने पढ़ा..
मेरे लड़ ने गर्मागर्म माल फेंकना शुरू किया तो काफ़ी सारे छींटे आपी के नाज़ुक हाथ और खूबसूरत बाज़ू पर गिरे।

‘ए.. खबीस शख्स.. यह क्या किया तुमने.. गंदे..’ उन्होंने अपना हाथ मेरे कमीज से साफ़ किया और दौड़ती हुई कमरे से निकल गई।

डेढ़ घण्टा आराम करने के बाद मैं उठा और कंप्यूटर पर ब्ल्यू फ़िल्म चालू की।
अभी लौड़ा हाथ में पकड़ा ही था कि आपी कमरे में अन्दर दाखिल हुई- ‘या खुदा.. तुम क्या पूरा दिन यही करते रहोगे?’

अब आगे..

लेकिन उनके अंदाज़ से ऐसा बिल्कुल नहीं महसूस हो रहा था कि जैसे उन्हें मुझे इस हालत में देखने से कोई प्राब्लम हो। इस वक़्त वो ऐसे ही नॉर्मल थीं.. जैसे आम हालात में होती थीं।
शायद अब वो मुझे ऐसे देखने की आदी हो गई थीं।

‘आप भी तो सारा दिन लगाती हैं.. ये करते हुए.. मैंने कभी आपको कुछ कहा है?’ ये बोलते हुए भी मैं अपने लण्ड को सहलाता रहा।
‘बकवास मत करो और चलो बाहर जाओ और मुझे कुछ टाइम दो।’
वो सामने ही सोफे पर बैठते हुए बोलीं।
लेकिन उस सोफे से कंप्यूटर स्क्रीन नहीं नज़र आती थी।

‘आप भी मेरे साथ यहाँ आ जाएँ.. दोनों देख लेते हैं ना.. मुझे बाहर भेज के आपको क्या मिलेगा?’
‘पागलों वाली बातें मत करो.. मैं तुम्हारे साथ बैठ कर नहीं देख सकती.. मैं अकेली ही देखूंगी।’

यह बोल कर वो कुछ सेकेंड्स रुकीं और फिर शैतानी के से अंदाज़ में कहा- मैंने कुछ काम भी करना होता है।

‘ओह.. होऊऊओ..’ मैं आपी की इस जुर्रत पर वाकयी हैरान हुआ और हैरतजदा अंदाज़ में उनकी आँखों में देखा.. तो उनके चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई और हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उन्होंने नजरों के साथ-साथ सिर भी झुका लिया।

कुछ देर ना आपी कुछ बोलीं.. और ना मैं..
पर मैं समझ गया कि वो बाहर नहीं जाएंगी, शायद वो यहाँ बैठना चाहती हैं।
मैंने भी ज़ाहिरी तौर पर उन्हें नज़र अंदाज़ किया और मूवी देखते हुए अपने लण्ड को हिलाने लगा और कुछ ही देर बाद फिल्म में इतना खो गया कि आपी का ध्यान ही नहीं रहा।

तकरीबन 10 मिनट बाद मैंने सिर घुमा कर आपी की तरफ देखा तो उनकी नजरें मेरे लण्ड पर ही जमी हुई थीं और बहुत इत्मीनान से मेरी हर हरकत को देख रही थीं।
आपी की आँखों में लाल-लाल डोरे बन चुके थे और आँखें ऐसी हो रही थीं.. जैसे नशे में हों।

उन्होंने मेरी नज़र को अपने चेहरे पर महसूस करके नज़र उठाई और मुझे कहा- सामने देखो.. और अपना काम करते रहो.. मेरी तरफ मत देखो..

मैं उनके इस अंदाज़ पर मुस्कुरा दिया और फिर मूवी के तरफ ध्यान देने लगा.. कुछ-कुछ देर बाद में आपी की तरफ देख लेता था।

आपी कभी अपने एक दूध को दबोच देती थीं.. कभी अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को हाथ से रगड़ देती थीं.. लेकिन इस बात का ध्यान रखने की कोशिश कर रही थीं कि मैं ना देख सकूँ।

और अपनी इस कोशिश में कुछ हद तक कामयाब भी थीं। वैसे भी आपी मुसलसल नहीं हाथ चला रही थीं.. बस कुछ-कुछ देर बाद ही हरकत करती थीं।

कुछ ही देर बाद मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हो गया.. मुझे महसूस हो रहा था कि मेरे पूरे जिस्म से कोई चीज़ बह-बह कर मेरे लण्ड में जमा हो रही है।

मुझे अंदाज़ा हो गया था कि आपी को लण्ड से निकलते हुए पानी को देखना बहुत पसन्द है। मैंने कुर्सी को आपी की तरफ घुमा दिया और बहुत तेज-तेज अपने हाथ से लण्ड को रगड़ने लगा।

अब आपी मेरे बिल्कुल सामने थीं।

आपी समझ गईं थीं कि मेरी मंज़िल अब क़रीब ही है। मेरे रुख़ फेरने पर बिगड़ने के बजाए वो और ज्यादा तवज्जो से मेरे लण्ड को देखने लगी थीं।

उनकी आँखों में बिल्कुल ऐसी खुशी थी जो किसी बच्चे की आँख में उस वक़्त होती है.. जब उससे मन पसन्द चीज़ मिलने वाली हो। आपी की आँखें नहीं झपक रही थीं.. बस एकटक वो मेरे लण्ड पर नज़र जमाए हुए थीं और सोफे से कुछ इंच उठी हुई थीं।

मैं आपी के चेहरे के बदलते रंग देख रहा था। मेरे हाथ की हरकत में बहुत तेजी आ चुकी थी.. मेरे जिस्म से लहरें लण्ड में इकठ्ठी होती जा रही थीं.. और तभी एकदम से मेरा लण्ड फट पड़ा..

‘आआआहह आअपीईईई ईईईईई.. उफफफ..फफ्फ़..’

मैं आज ऐसा डिसचार्ज हुआ था कि मेरी पहली पिचकारी तकरीबन 4 फीट तक गई थी और आज मेरे लण्ड ने पानी भी नॉर्मल से बहुत ज्यादा छोड़ा था। मैं 6-7 मिनट तक आँखें बन्द किए निढाल सा पड़ा रहा।

फिर अचानक मैंने एक हाथ अपने कंधे पर महसूस किया- सगीर.. तुम ठीक तो हो ना.. क्या हुआ..???
आपी की फिक्रमंद आवाज़ मुझे सुनाई दी।

‘जी आपी.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. ऐसा होता है, ये नॉर्मल है..’

मैंने आँखें खोल कर देखा तो आपी एक हाथ मेरे कंधे पर रखे हुए थीं और दूसरे हाथ में पानी का गिलास पकड़े हुए मेरे सामने खड़ी थीं।
‘लो पानी पियो और ठहर-ठहर कर घूँट-घूँट पीना।’

आपी ने मुझे पानी का गिलास दिया और फिर वापस मुड़ गईं।

मैंने फिर आँखें बंद कर लीं और एक घूँट पानी पीकर थोड़ी देर रुका.. फिर दूसरा घूँट ले ही रहा था कि मुझे अपने लण्ड पर ऊँगलियाँ महसूस हुईं।

मैंने आँखें खोल कर देखा तो आपी मेरी टाँगों के सामने अपने घुटने ज़मीन पर टेके बैठी थीं और उन्होंने लेफ्ट हैण्ड की दो ऊँगलियों में मेरे नरम हुए लण्ड की टोपी थाम रखी थी।
उन्होंने खींच कर मेरे लण्ड को सीधा किया और दूसरे हाथ में पकड़े टिश्यू पेपर से मेरे लण्ड पर लगे पानी को साफ करते हुए फिक्रमंद लहजे में बोलीं- कितनी ही मूवीज में.. मैंने कितने ही लड़कों को डिसचार्ज होते देखा है.. लेकिन इतनी कमज़ोरी तो किसी को नहीं होती.. तुम अपनी सेहत का भी कुछ ख़याल करो।

ये कह कर आपी ने हाथ में पकड़े गंदे टिश्यूस को कंप्यूटर टेबल के नीचे पड़े डस्टबिन में फेंका और पैकेट में से 5-6 टिश्यू और निकाले और फिर से मेरे लण्ड और मेरी जाँघों पर लगी मेरी गाढ़ी सफ़ेद मनी को साफ करने लगीं।

मैं पानी का गिलास हाथ में पकड़े आपी को देखने लगा.. कितना मासूम और पाकीज़ा लग रहा था मेरी आपी का चेहरा.. कितनी मुहब्बत थी उनकी नजरों में.. मेरे लिए ममता भरी मुहब्बत.. कोई लस्ट नाम की चीज़ नहीं थी उनकी आँखों में.. सिर्फ़ प्यार था.. ऐसा प्यार जो सिर्फ़ बड़ी बहन अपने छोटे भाई से करती है।

आपी का प्यार देख कर मेरी आँखों में भी नमी आ गई। वो इतनी ज्यादा तवज्जो से सफाई कर रही थीं कि कहीं कोई क़तरा चिपका ना रह जाए। आपी ने मेरे लण्ड के नीचे बॉल्स को पकड़ा और उनकी सफाई करते हो ऐसे हँसी जैसे किसी ने गुदगुदी कर दी हो।

‘ही..हहहे.. ये कितने प्यारे से हैं ना.. मासूम से.. छू छू छुउऊउउ..’ ये कहते हुए आपी ने मेरे बॉल्स को नीचे से हथेली में लिया और नर्मी से इस अंदाज़ में हाथ को हरकत देने लगीं.. जैसे कोई चीज़ तौल रही हों।

फिर नर्मी से दूसरे हाथ की ऊँगलियों से मेरे बॉल्स की सिलवटों को सहलाने लगीं।

‘इन पर क्यों बाल उग आते हैं?’ आपी ने मेरे बॉल्स पर बालों को महसूस करते हुए बुरा सा मुँह बना कर गायब दिमागी की सी हालत में अपने आपसे कहा।

मेरे बॉल्स पर आपी के हाथ का रदे-ए-अमल फौरी हुआ और मेरे सोए लण्ड में जान पड़ने लगी।
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‘नहीं.. बिल्कुल भी नहीं..’ ये कहते हुए आपी ऐसे पीछे हटीं और खड़ी हो गईं जैसे उन्हें करंट लगा हो।
‘फ़ौरन.. फ़ौरन उठो.. और अपना ट्राउज़र पहनो.. क्यों अपनी सेहत के दुश्मन हुए हो?’

आपी ने लेफ्ट हैण्ड क़मर पर रखा और सीधे हाथ की ऊँगली का इशारा मेरे ट्राउज़र की तरफ करते हुए हुक्मिया लहजे में कहा और इसके बाद वे कमरे से बाहर निकल गईं।

मैं बस ट्राउज़र पहन कर कुर्सी पर बैठा ही था कि आपी दोबारा कमरे में दाखिल हुईं.. उनके हाथ में दूध का गिलास था। उन्होंने दूध का गिलास टेबल पर रखा.. मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरा और मुस्कुराते हुए मुहब्बत भरी नज़र से कुछ सेकेंड्स मुझे देखा.. फिर मेरे माथे को चूमते हो कहा- मेरा सोहना भाई.. चलो दूध पी लो फ़ौरन..

मुझे हुकुम देती हुईं वे सोफे पर जा बैठीं।

कुछ देर तक हम इधर-उधर की बातें करते रहे, मेरी पढ़ाई के बारे में कुछ बातें हुईं.. उसके बाद आपी ने अचानक ही मुझसे पूछा- तुम्हारे और फरहान के दरमियान ये सब कैसे शुरू हुआ?

मैंने कहा- आपी अगर मैंने सब तफ़सील से बताना शुरू किया.. तो 2-3 घंटे लग जाएंगे.. आपको खास-खास बातें बता देता हूँ।
‘नहीं.. मुझे ए से जेड तक सुनाओ.. चाहे 5-6 घन्टे ही क्यूँ ना लग जाएं।’

उन्होंने गर्दन को राईट-लेफ्ट हरकत देते हो ज़िद्दी अंदाज़ में कहा।
‘उम्म्म्म.. ओके.. मैं कोशिश करूँगा कि कोई बात भूलूं नहीं.. ये सब जब शुरू हुआ उस वक्त मेरी उम्र..’

मैंने आपी को शुरू से अपनी पूरी दास्तान सुनाना शुरू की। आपी ने दोनों पाँव ऊपर सोफे पर रखे और टाँगों को आपस में क्रॉस करके दोनों हाथों को जोड़ कर अपनी गोद में रखते हो बैठीं और पूरी तवज्जो से मेरी बात सुनने लगीं।

जैसे-जैसे दास्तान आगे बढ़ती जा रही थी आपी की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। वो कभी टाँगों को आपस में भींचती थीं तो कभी अपनी दोनों रानों को एक-दूसरे से रगड़ देती थीं.. शायद उनकी बेचैनी की वजह ये थी कि वो मेरे सामने अपनी टाँगों के दरमियान सहला नहीं पा रही थीं।

उनके गोरे गाल सेक्स की चाहत से गुलाबी हो गए.. आँखों में नशा सा छा गया था और आँखों में लाली भी आ गई थी। मेरा लण्ड भी फुल टाइट हो चुका था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद बेसाख्ता ही मेरा हाथ लण्ड तक चला जाता था और मैं ट्राउज़र के ऊपर से ही लण्ड को पकड़ कर भींच देता था।

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यह वाकिया जारी है।
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