चरित्र बदलाव-3

(Didi Chudai Story: Charitra Badlav- Part 3)

This story is part of a series:

अन्तर्वासना के पाठकों को एक बार फिर से मेरा प्यार और नमस्कार! मैं अपनी कहानी आगे बढ़ाता हूँ.

सुबह नीचे आने के बाद मुझे बहुत ग्लानि महसूस हो रही थी कि मैंने अपनी बहन के साथ सेक्स किया मगर मुझे रह-रह कर उसकी उसकी मस्त चूचियों की चुसाई और उसकी चूत की खुशबू भी याद आती. मैं फिर अपने कमरे में वापिस चला गया. तभी दीदी मेरे कमरे में आई तो मैं वहाँ से उठ कर जाने लगा. तभी उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये जिससे मेरी बची हुई शर्म भी चली गई और मैं भी उनके होंठ चूसने लगा.

पाँच मिनट तक एक-दूसरे के होंठ चूसने के बाद दीदी उठी और वहाँ से जाने लगी तो मैंने उन्हें पकड़ लिया तो वो मुझसे बिल्कुल चिपक गई जैसे एक साँप चन्दन के पेड़ से चिपकता हैं और मैं फिर से उनके होंठो का रसपान करने लगा.

मगर फिर मम्मी की आवाज़ आई और दीदी नीचे चली गई.

उसके बाद शादी की वजह से मैं और दीदी दो दिनों तक सही से एक-दूसरे से बात भी नहीं कर पाये. खैर किसी तरह शादी निपट गई और चित्रा भी अपने घर चली गई. अब दीदी सुबह ही अपनी जॉब पर निकल जाती और शाम को लेट आती इसलिए मेरे लिए उनके पास कोई वक़्त नहीं बचता था और रविवार को सभी घर पर होते थे.

शनिवार था, मेरी कॉलेज की छुट्टी थी इसलिए मैं घर पर अपने कमरे में बैठा था तभी मम्मी की आवाज़ आई.

मैं नीचे गया तो मम्मी ने एक फ़ाइल मुझे देते हुए मुझे कहा- स्वाति यह फ़ाइल भूल गई है, उसका फोन आया है, तू जाकर यह फ़ाइल उसे उसके ऑफिस में दे आ.

मैंने फ़ाइल उठाई और ऑफिस चल दिया. दीदी का ऑफिस काफी दूर था इसलिए मैं कार ले गया. मैं ऑफिस पहुंचा तो चपरासी ने कहा- मैडम बॉस के साथ मीटिंग में हैं! आप इंतज़ार कीजिये.

मगर मुझे घर जाने कि जल्दी थी इसलिए मैं स्वाति के बॉस के कैबिन की तरफ बढ़ गया. मैंने कैबिन का दरवाजा खोलना चाहा तो दरवाजा नहीं खुला, शायद दरवाजा अंदर से बंद था. मैंने खिड़की से झांक कर देखा तो मैं दंग रह गया क्योंकि अंदर दीदी बॉस की बाहों में थी और उनके तन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ पेंटी थी और उनका बॉस उनके चूचे चूस रहा था.

दीदी के बॉस का नाम श्यामलाल था और उनकी उम्र 48 थी मगर फिर भी वो काफी जवान दिख रहा था. यह देख कर मेरी आँखों से आंसू आ गए और मैं वापिस दीदी के कैबिन में आ गया.

थोड़ी देर के बाद दीदी वापिस अपने कैबिन में आई, मुझे देख कर बोली- तू इतनी जल्दी कैसे आ गया?
मैंने कहा- मैं कार से आया हूँ.
उनके पीछे उनका बॉस श्यामलाल आया और चपरासी से तीन चाय कह कर मुझे और दीदी को अपने कैबिन में बुलाया.

हम सब बैठ कर बात कर रहे थे. तभी कंपनी का मैंनेजर अब्दुल आया और कोई फ़ाइल दीदी के बॉस को दी और फिर मुझे देख कर चला गया.

चाय पीने के बाद मैं कंपनी के गेट से निकला तो मुझे याद आया कि मैं अपनी चाभी तो दीदी के बॉस के कमरे में छोड़ आया. मैं चाभी लेने के लिए वापिस मुडा और दीदी के बॉस के कमरे की तरफ बढ़ा. मैंने दरवाजा खोलना चाहा तो दरवाजा फिर से बंद था.

मुझे समझते देर न लगी और मैंने खिड़की से झाँका तो मैंने जो सोचा था उससे ज्यादा देखने को मिला. दीदी का बॉस श्यामलाल और कंपनी का मैंनेजर अब्दुल दोनों मेरी बहन को बड़ी बेदर्दी से चोद रहे थे और मैं कुछ नहीं कर पा रहा था. मगर मैं अंदर भी नहीं जा सकता था और मैं वहाँ खड़ा रह कर देख भी नहीं सकता था क्योंकि मेरी कार की चाभी अंदर थी. फिर मैंने अपना मोबाइल निकाला और दीदी की उसके बॉस और कंपनी के मैंनेजर के साथ फोटो खींच लिए.

तभी मैंनेजर उठा और कपड़े पहनने लगा मुझे लगा कि शायद दीदी का चुदाई कार्यक्रम खत्म हो गया. मगर दीदी का बॉस रुक नहीं रहा था और दीदी की चूत का भोसड़ा बनाने में लगा था. श्यामलाल अपना जोशीला लंड दीदी की चूत से निकालने को ही तैयार ही नहीं था.

तभी गेट खुला, मैं छुप गया और फ़िर एकदम फ़ुर्ती से सीधा अंदर घुस गया. दीदी और उसका बॉस मुझे देख कर हैरान रह गए.

अब दीदी मुझे तरह-तरह के कारण देने लगी मगर मैंने बिना कुछ कहे चाभी उठाई और बाहर आ गया और दीदी के कैबिन में जाकर बैठ गया.

तभी दीदी और उसके बॉस श्यामलाल कपड़े पहन कर दीदी के कैबिन में आ गए और फिर दोनों मिल कर तरह-तरह के कारण देने लगे.

दीदी के बॉस बहुत ज्यादा घबराए हुए थे शायद उन्हे यह नहीं पता था कि यह चुदाई का कार्यक्रम मैं और स्वाति पहले ही खेल चुके हैं. श्यामलाल ने कहा- तुम यह बात किसी को मत बताना. मैं वायदा करता हूँ कि इसके बदले में तुम जो मांगोगे वो मैं तुम्हें दे दूंगा.

मगर मैंने कहा- मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए जब जरूरत होगी तब मांग लूँगा.

यह कह कर मैं वहाँ से चल दिया, दीदी भी मेरे पीछे आने लगी, शायद श्यामलाल ने दीदी की छुट्टी कर दी थी.

मैं और दीदी कार में बैठे और हम घर कि तरफ चल दिये मगर दीदी शांत बैठी थी. मैंने एक सुनसान जगह पर कार रोक दी और दीदी के गालों पर एक चुंबन दिया और कहा- आपको घबराने या शर्माने की कोई जरूरत नहीं, मैं जानता हूँ इस उम्र में ऐसा हो जाता है.

मैंने इतना कहा तो दीदी की आँखों से आँसू निकल आए और फिर हम दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर लिया. उसके बाद दीदी ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये. दस मिनट तक दीदी ने अपने होंठ मेरे होंठो से नहीं हटाए.

फिर हम दोनों घर की तरफ चल दिये, मगर घर का दरवाजा बंद था. मैंने डुप्लिकेट चाभी से दरवाजा खोला और और फिर हम अंदर आ गए. फिर मैंने मम्मी को फोन किया तो मम्मी ने कहा कि वो चार घंटे बाद आएंगी.

यह सुनने के बाद मेरी खुशी का ठिकाना न रहा क्योंकि आज मेरे पास वो मौका था जो मुझे कई दिनों से नहीं मिल रहा था.

मैं दीदी के कमरे की तरफ बढ़ा तो देखा कि दीदी कपड़े बदल रही थी. आज मुझे दरवाजा बंद करने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि घर पर कोई नहीं था.

दीदी ने उस वक़्त सफ़ेद टी-शर्ट और जीन्स पहन रखी थी. मैं जैसे ही अंदर घुसा तो दीदी ने कहा- मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी.
मैं थोड़ा घबरा गया और मैंने कहा- दीदी दीदी!!!
तो दीदी बोली- मैंने तुमसे कहा था कि अकेले में मुझे दीदी नहीं डार्लिंग बोला करो.

दीदी कुछ और बोलती इससे पहले मैंने उसका मुंह बंद करने के लिए अपने होंठ उनके होंठो पर रख दिये और टी-शर्ट के ऊपर से ही उनके चूचे मसलने लगा तो दीदी मचल उठी.

इतने में दीदी ने मेरी भी टी-शर्ट और पैंट उतार दी. इससे मैं भी और जोश में आ गया और मैंने भी उनकी टी-शर्ट और जीन्स निकाल दी और पेंटी के ऊपर से ही उनकी चूत रगड़ने लगा जिससे वो झड़ गई और उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया. मैंने देर ना करते हुए उनकी पेंटी उतारी और उनकी चूत का पानी पीने लगा.

फिर मैंने उनकी ब्रा भी निकाल फेंकी और हम दोनों एक-दूसरे के सामने नंगे खड़े थे. मैंने उन्हें बाहों में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और वो मेरा लंड चूसने लगी फिर मैंने उनको घोड़ी बनने के लिए कहा.

मैंने पहले उनकी गांड में उंगली डाली तो उनकी गांड ज्यादा कसी नहीं थी. शायद उसके बॉस श्यामलाल पहले भी उसकी गांड मार चुके थे इसलिए मैंने ज़ोर का धक्का लगा दिया जिससे मेरा लगभग आधा लंड स्वाति की गांड में समा गया और वो चिल्ला उठी.

फिर मैं धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगा तो उन्हें भी मजा आने लगा और वो भी मेरा साथ देने लगी. मैंने बीस मिनट तक उनकी गांड मारी फिर मैंने पानी छोड़ दिया और निढाल होकर बिस्तर पर लेट गया.

हम दोनों बाथरूम में जाकर एक दूसरे को साफ करने लगे और फिर कपड़े पहन लिए.

अब मैं कभी भी दीदी के साथ सेक्स के मजे ले सकता था.
एक लड़का जो थोड़ा शर्मीला था उसका चरित्र अपनी फ़ुफ़ेरी बहन और सगी बहन के साथ सेक्स करने के बाद बदल चुका था क्योंकि जिस बहन की वो इज्जत करता था वो बहन अब उसकी तथाकथित बन चुकी थी.
आगे मेरी ज़िंदगी में कैसे-कैसे मोड़ आए यह मैं अगली कहानी में बताऊँगा और आप मुझे मेल करके बताइये आपको यहाँ तक की मेरी कहानी कैसी लगी.
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