चूत शृंगार-1

(Choot Ka Shringaar-1)

This story is part of a series:

जाने क्या सोच कर मेरे माता-पिता ने मेरा नाम कमला रख़ दिया था, यों तो कमला लक्ष्मी का नाम है, पर मुझे सदा धन की कमी रही है, भाग्य ने कभी साथ नहीं दिया, गर्भ में बच्चा आते ही पति का देहान्त हो गया और बच्चा पैदा हुआ तो मरा हुआ! जिस औरत का न पति हो, न बच्चा और जो भाई के टुकड़ों पर पल रही हो, उसे आप अभागिन नहीं तो और क्या कहेंगे?

भाई के डर से ऐसे कपड़े पहनती थी कि कोई अंग ना दिखाई दे। बस शरीर बन्द-गोभी बन कर रह गया था।

यह जीवन भी कोई जीवन है! उस औरत के जीवन को आप क्या कहेंगे जिसका बदन कोई मर्द ना देखे और वो खुद ही को शीशे में देखे और खुद ही अपने बदन को सहलाए। दिन भर कोई मर्द दिखाई नहीं देता था, तो किसको याद कर चूत में उंगली लेती, अपने मम्मे खुद दबाती और खुद अपनी उंगली अपनी चूत में डालती और सिसकती।

यह सब कितने दिन चलता? आखिर दिल ने हार मान ली।

काम वाली बाई ने कहा- बहन, मेरे दूध से मेरे बेटे का पेट नहीं भरता।

तो मैंने तुरन्त कहा- मैं पिला देती हूँ।
छोटे से बच्चे से अपने मम्मे चुसवाने में कोई ममता नहीं थी, वो तो मेरी हवस बोल रही थी।
बात यहीं खत्म नहीं हुई।

बाई का दूसरा बेटा आया वो 5 साल का था, तो मैंने उसको भी कहा ‘दूध पीयेगा?’ उसकी माँ की तरफ देखा तो उसने कहा- बहन बहुत शरारती है, देखना कहीं मम्मे न काट ले!

माँ ने मन्जूरी दे दी, तब क्या था! मैं तो मम्मे कटवाने को तरस रही थी! आप इसे पागलपन कहो तो कहो, मैं अपनी फड़कती चूत को देखूँ या आपके तानों के बारे में सोचूँ!

रोज चुसवाने लगी मैं अपने दूध, धीरे-धीरे खुलने लगी पहले ब्लाउज से मम्मा निकाल कर चुसवाती थी, अब ब्लाउज खोल कर पूरे मम्मे निकाल के चुसवाने लगी। बस मुझसे यही गलती हुई और एक दिन पकड़ी गई।

कमल भैया ने रंगे हाथों पकड़ लिया। मैं सारे कपड़े उतार कर और बड़े-बड़े मम्मे सजा कर बच्चे से चुसवा रही थी और ‘सी सी’ कर के मजा ले रही थी कि अचानक मेरा भाई कमल आ टपका।

मैंने तन ढकने के लिए इधर-उधर देखा तो कोई कपड़ा दिखाई नहीं दिया। जाने मम्मे चुसवाने में मैं कब इतनी मस्त हो गई कि मुझे पता ही नहीं चला कि मैं मम्मे चुसवाते-चुसवाते अपने कपड़े दूसरे कमरे में छोड़ आई।

कमल को देखते ही मैं झट से खड़ी हो गई और इधर-उधर अपने कपड़े ढूंढने लगी। इधर-उधर नहीं मिला तो झुक कर पलंग के नीचे देखा। वहाँ भी नहीं मिला तो भाग कर दूसरे कमरे में गई।

कमल भैया ने तो उस दिन खूब मम्मे देखे होंगे, बैठी थी तो चूसते हुए मम्मे देखे, खड़ी थी तो भरे-भरे मम्मे देखे, इधर-उधर देखा, तो हिलते हुए मम्मे देखे, झुकी तो लटके हुए मम्मे देखे, भागी तो उछलते हुए मम्मे देखे।

ऐसे हर तरह से मम्मे देख कर भैया चले गए। वो अपने दफ्तर की एक फाइल भूल गए थे। जल्दी में थे सो बिना कुछ कहे लौट गए। मैं मन ही मन डरती रही कि भैया क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में। साथ ही मन ही मन सफाई देने के बहाने ढूंढती रही और शाम को भैया के घर आने से पहले मैंने एक अच्छा सा बहाना ढूंढ ही लिया।

शाम को जब भैया घर आए तो कहने लगे- तुमसे कुछ बात करनी है।

मेरी तो जान ही निकल गई, मैंने तुरंत टोका और कहा- मुझे भी कुछ कहना है, पहले मेरी बात सुनो। मैंने अपनी मनघड़न्त कहानी सुनाई।

मैंने कहा- मेरा बच्चा तो मरा हुआ पैदा हुआ, पर मेरा दूध उतर आया था। अब जब छाती दूध से भर जाती है तो बहुत दर्द करती है। इसलिए छोटे बच्चे को दूध पिला कर हल्का कर लेती हूँ।

भैया ने पूछा- डाक्टर से दवा क्यों नहीं लेती?

तो फ़ौरन जो सूझा, कह दिया- मुझे किसी ने बताया था कि डाक्टर की दवा से दूध तो सूख ही जाएगा, पर मम्मों की नाड़ियाँ भी सूख जाएँगी।

भैया ने घबरा कर बोला- ना बाबा, ऐसी दवा तो बिल्कुल न लेना।

उसका जवाब सुन कर मैंने चैन की साँस ली कि चलो अब बात खत्म हुई। अब तो मैं बेधड़क होकर चुसवाऊँगी!
फ़िर भैया बोले- बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ।

मैंने सोचा कि अब क्या मुसीबत है यार! मामला तो सुलझ गया था, फिर भी प्यार से बोली- बोलो ना भैया, क्या बात है?

भैया बोले- तेरा जिस्म इतना सुन्दर है तो तू इस तरह के कपड़े पहन कर इसको ऐसे क्यों छुपाती है? जैसे कोई अपनी बुराई को छुपाता है।

मैं तो हैरान रह गई, भाई के मुँह से यह बात सुन कर। अरे इस साले का तो खड़ा हो गया मेरी चूचियाँ देख कर! वाह री कमला, तेरी चूचियों ने तो कमाल कर दिया।

फिर मैं थोड़ा शर्मा कर बोली- भैया, मुझे लगा आपको अच्छा नहीं लगेगा। विधवा जो ठहरी।
‘हट पगली!’ भैया बोले- तू सुन्दर लगेगी तो, मुझे बुरा लगेगा? तूने यह सोच भी कैसे लिया। चल तुझे अच्छे से ब्लाउज सिलवा कर देता हूँ।

मैंने कहा- भैया मेरे पास हैं।
तो भैया ने कहा- जा पहन कर आ।

मैंने एक खुले गले का ब्लाउज पहना और भैया के सामने आई।
भैया ने कहा- देख, कितनी सुन्दर लग रही है। ऐसे ही अपने शरीर को खराब कर रखा है।

फिर भैया मुझे बाज़ार लेकर गए और दो ब्लाउज सिलवा कर दिए। ब्लाउज क्या, ब्रा से भी छोटे। मम्मे तो क्या चूची का भी थोड़ा सा काला भाग दिखाई दे रहा था।

साला खुद मम्मे देखने के चक्कर में मुझे सबके सामने तो नंगा नहीं कर रहा। खैर, वो ब्लाउज पहन कर मुझे भी लगा कि मैं बहुत सैक्सी हूँ। काश कोई मुझे आज चोद लेता।

रात को सोते समय रोज की तरह मैंने अपने मम्मे दबाए तो भैय्या की बातें याद आईं, ‘तेरा जिस्म बहुत सुन्दर है।

बार-बार ऐसे लगे कि वो मेरे मम्मे देख रहे हैं। आँखें बन्द करूँ तो लगे वो मेरे मम्मे चूस रहा है।

बहुत समय से उसके अलावा कोई मर्द भी तो आँखों के सामने नहीं आया था। मैं सारे बंधन भूल गई और ख्यालों में उसी से चुदने लगी।

चूत में ऊँगली डाल कर सिसकारियाँ भरने लगी, “भैया चोद ले मुझे, मार ले मेरी!” और उसी को याद कर-कर के रात को अपने जिस्म की आग को ठंडा किया।

अगले दिन भैया ने कहा- खाना न बनाना, आज बाहर होटल में खायेंगे।

अरे वाह किस्मत खुल गई! पहले तो कभी नहीं कहा। एक बार मम्मे क्या देख लिए मेरी तो लाटरी निकल आई। मैंने भी दिल को मना लिया अब मुझे और तो कोई मिलेगा नहीं, अगर यह लाइन मारता है तो इसी से मरवा लूंगी, रिश्तेदारी गई माँ चुदाने। अपनी चूत का ख्याल करूँ या दुनियादारी का।

फिर लगा शायद मैं ही ज्यादा सोच रही हूँ वो तो शायद सिर्फ मेरा ख्याल रख रहा है।

खैर मैंने भैया की दिलाई हुई ब्लाउज पहनी। पहनी क्या, लगभग नंगी लग रही थी।

पीठ पर दो डोर थीं, कोई हाथ फेरे तो ऊपर गरदन से लेकर नीचे नितम्बों तक सहला सकता था।

सामने गला इतना खुला था कि थोड़ा झटका लगे तो चूची उछल कर बाहर आ जाए। नीचे से ब्लाउज इतना कम कि पूरी कमर दोनों हाथों से सहला लो।
कोई भी दमदार मर्द मुझे देख कर गर्म हो जाता। खैर, मुझे क्या मैं तो खुद मर्द की नजरों को तरसी पड़ी थी।

‘कोई कहे चुम्मा दे दे तो मैं कहूँ चोद ले यार।’

भैया एक होटल में खाना खिलाने को ले गए। मैंने भैया के दिलाए हुए कपड़े तो पहने। अधनंगे बदन को मैंने पल्लू से ढक लिया।

भैया ने कहा- इतना सुन्दर ब्लाउज पहनने का क्या फायदा! अगर उसको ढक कर ही रखना है!

भैया की बात सुन कर मैंने पल्लू हटा लिया। मम्मों के दर्शन कर वो बोला- वाह, क्या रूप निखर कर आया है।

साथ वाली लाइन के आखिर में एक मर्द बैठा भी मुझ को ताड़ रहा था। मेरे देखने पर भी उसने ताड़ना बंद नहीं किया।

भैया ने ब्लाउज खुला रखने को कहा था इसलिए मैंने पल्लू से भी पूरी तरह नहीं ढका। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था कि मुझे कौन ज्यादा ताड़ रहा है, भाई या वो मर्द।

वो मर्द मुझे ज्यादा भाने लगा। सोचा, उसको आँखों में बसा लेती हूँ रात को उसी को याद करके उंगली लूंगी और चुदने का मजा लूँगी।

मैं यह सोच ही रही थी कि उसने मुझे आँख मारी।

कहानी जारी रहेगी।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top