एक दिल चार राहें -8

(Pyasi Padosan Ki Chudai Kahani)

प्रेम गुरु 2020-07-20 Comments

This story is part of a series:

प्यासी पड़ोसन की चुदाई कहानी में पढ़ें कि मेरी पड़ोस में रहने वाली भाभी घर में अकेली थी. उन्होंने मुझे खाने पर बुलाया. मैंने उस भाभी की चूत का मजा कैसे लिया?

मैंने उसे अपनी बांहों में जोर से भींच लिया और उसके गालों और अधरों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

लैला तो अब मेरी बांहों में सिमटी बस आह … ऊंह … करने लगी थी। हम दोनों को ही अब सुध ही नहीं थी। अब तो जो होना है कर लेने को हम दोनों का मन उतावला हो चला था।

हे लिंगदेव! आज तो सच में तेरी जय हो! मैंने तो कभी सपने भी नहीं सोचा था कि यह इतनी जल्दी मेरी बांहों में सिमट जाएगी।

प्यासी पड़ोसन बेतहाशा मुझे चूमे जा रही थी।

एक संयोग देखिये:
लैला ने हल्का संगीत लगा रखा था उसमें किसी पुराने गाने की धुन बज रही थी ‘हम जब सिमट के आपकी बांहों में आ गए।’

और फिर मैं उसे अपने सीने से लगाए उनके बेड रूम में चला आया। मैंने उसे बेड पर लेटा सा दिया।

बेडरूम में हल्की लाईट जली हुई थी। उसकी आँखें अब भी बंद थी और उसने अपनी बाहें अभी भी मेरे गले में ही डाल रखी थीं।

मैं उसके ऊपर अधलेटा सा हो गया और एक हाथ से गाउन के ऊपर से ही उसकी अब भी चूत को टटोलकर मसलने लगा। मेरा अंदाज़ा बिल्कुल सही था उसने पेंटी नहीं पहनी थी।
उसकी चूत की गर्माहट को महसूस करके मेरा लंड तो जैसे छलांगें ही लगाने लगा था।

अब मैंने अपने होंठों को उसके होंठों से लगा दिया।
लैला तो जैसे इसी इंतज़ार में थी। उसने जोर से मेरे होंठों को चूसना चालू कर दिया। उसकी साँसें बहुत तेज़ चलने लगी थी।

अब देरी करना बेमानी था, मैंने उसके गाउन की डोरी पकड़ कर खींच दी और अपने हाथ से उसके गाउन को पैरों की तरफ से ऊपर करना चालू कर दिया।
लैला थोड़ी कसमसाई; पर अब ज्यादा ऐतराज़ उसके वश में कहाँ था। उसने भी मेरे लंड को पायजामे के ऊपर से ही पकड़ कर सहलाना चालू कर दिया था।

अब तो हम दोनों ही अपनी मंजिल को पाने के लिए जैसे बेकरार और उतावले थे।

आँखों ही आँखों में इशारे हुए और फिर लैला ने झट से अपना गाउन उतार दिया और मैंने भी जल्दी से अपना कुर्ता-पायजामा और बनियान उतार फेंके। आज मैंने भी चड्डी जानबूझ कर नहीं पहनी थी। मेरा लंड तो जैसे फुफकारें ही मारने लगा था। लंड तो स्प्रिंग की तरह उछलते हुए ऐसा लग रहा था जैसे लैला को सलामी दे रहा हो।

लैला उसे हैरानी भरी नज़रों से देखे जा रही थी।
हल्की रोशनी में उसका बदन ऐसे चमक रहा था जैसे कोई संगेमरमर का सांचे में ढला कोई मुजसम्मा हो।

कपड़े फेंक कर मैं लैला के पास आ गया तो लैला ने अपने हाथों से मेरे ठुमकते लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया। जब दो जवान जिस्म जवानी की आग में जल रहे हों तो किसी तकलुफ्फ़ की जरूरत कहाँ रहती है।

मुझे कोई ज्यादा जहमत करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। लैला ने बेड पर अपनी कमनीय काया को पसार दिया था। पूरा कमरा ही उसके जवान जिश्म की खुसबू से महक उठा था।

अब मैंने एक नज़र उसकी चूत पर डाली।
हे भगवान्! पतली सुडौल जांघें जाँघों के बीच हल्के ट्रिम किये काले रंग के रेशम जैसे बालों से लकदक चूत ऐसे लग रही थी जैसे शहद का छाता हो।
और … उसके ऊपर सपाट पेट और गहरी नाभि; और दो रसीले गोल अनार जैसे उरोज और उनकी घाटी के बीच मंगलसूत्र।
गोल और चौड़े नितम्ब … आह …

मैं तो ठीक से उसकी चूत का दीदार भी नहीं कर पाया था कि लैला ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया।
लगता था लैला मेरे से भी ज्यादा जल्दी में थी। मेरा लंड अभी भी उसने हाथ में पकड़ रखा था जैसे उसे डर हो जरा सा ढीला छोड़ते ही वह कहीं ओर फिसल जाएगा।

अब मैं उसके ऊपर आ गया।
लैला ने अपनी जांघें खोलते हुए मेरे लंड को अपनी चूत पर घिसना चालू आकर दिया। उसकी चूत तो पहले से ही पनियाई हुई थी। किसी लुब्रिकेंट या तेल-क्रीम के जरूरत ही नहीं थी।

उसने मेरे लंड के सुपारे को जैसे ही अपनी चूत के मुहाने से लगाया मैंने एक तेज धक्का लगाया दिया। आधा लंड एक ही झटके में चूत की दीवारों को रोंदता हुआ अन्दर चला गया।
“उईईईइ … मम … माँ …” लैला की एक हल्की चीख पूरे कमरे में गूँज उठी “ध … धीरे … प्लीज!”

अब रहम की गुन्जाइस करना बेमानी था।
मैंने दो-तीन धक्कों के साथ अपना पूरा लंड उसकी चूत में घोंप दिया।
लैला तो बस आई … उईई … आह … करती ही रह गई।

अब मैंने उसे कसकर बांहों में दबोच लिया और उस प्यासी पड़ोसन के होंठों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

थोड़ी देर बाद लैला कुछ संयत हो गई थी। मैंने हल्के-हल्के धक्के लगाने चालू कर दिए। ऐसा लग रहा था चूत तो जैसे सदियों से किसी अदद लंड की प्यासी थी। मेरा अनुभव कहता है यह चूत ज्यादा नहीं चुदी है। उसके पेट और जाँघों पर जरा भी चर्बी नहीं थी। चूत की कसावट को देखकर तो कतई ऐसा नहीं लग रहा था कि उसने इसी चूत से एक बच्चे को जन्म दिया होगा।

हे लिंग देव! सुहाना नामक वह फित्नाकार फुलझड़ी की चूत भी ठीक ऐसी ही होगी।
काश! कभी उसकी चूत को चोदने का नहीं तो कम से कम एकबार तसल्ली से देखने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा आ जाए।

यह पुरुष मानसिकता भी कितनी विचित्र है कि कभी संतुष्ट ही नहीं होती। जब कोई मनचाही चीज सर्वसुलभ हो जाए तो फिर दूसरी चीज की ओर मन दौड़ने लगता है।

मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था; अचानक लैला ने मेरा होंठों को अपने दांतों से जोर से काट लिया।
ओह … अब मुझे ध्यान आया मेरी बांहों में सुहाना नहीं लैला है। मैं दनादन धक्के लगा कर प्यासी पड़ोसन की चुदाई करने लगा।

लैला कभी अपनी चूत का संकोचन करती कभी मेरे धक्कों के साथ अपनी कमर और नितम्बों को थोड़ा ऊपर करती। मैं सच कहता हूँ इन अनुभवी औरतों को चोदने में जो मज़ा आता है वह कमसिन और अनुभवहीन लड़कियों को चोदने में कहाँ।
ऐसी अनुभवी औरतें काम-क्रिया में पूर्ण सहयोग देती है बिना कोई ना-नुकुर और नखरों के।

मेरा एक हाथ उसके सिर के नीचे था और दूसरे हाथ से मैं उसके उरोजों को दबा और मसल रहा था। उसके उरोजों के कंगूरे तो फूलकर छोटे अंगूर के दाने जैसे हो चले थे।

मैंने उसके स्तनाग्र (चुचूक) को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा। लैला तो कामातुर होकर उछलने ही लगी थी। मुझे लगता है लैला के लिए यह नया अनुभव था और वह रोमांच के अतिरेक में डूबी आह … उंह … करती सिसकारियां लेने लगी थी।

जैसे ही मैंने अपनी दांतों से उस अंगूर के दाने (उरोजों की फुनगियाँ) को दबाया लैला के मुंह से एक सिसकारी सी निकली और उसका बदन अकड़ने सा लगा। उसकी चूत संकोचन सा करने लगी और वह अपने नितम्बों को जोर-जोर से उछालने लगी। और फिर उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर के ऊपर लपेट से लिए।

“उईईईईइ म्म..मा … आ … आआ …” लैला ने अपने पैरों से मेरी कमर को जकड़ लिया।

ऐसा करने से मुझे धक्के लगाने में थोड़ी परेशानी सी होने लगी तो मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए।
और फिर ‘आह’ करते हुए अचानक लैला का बदन ढीला सा पड़ने लगा। उसने अपने पैर भी फिर से पसार दिए और मेरी कमर की गिरफ्त भी ढीली कर दी। वह तो बस लम्बी-लम्बी साँसें लेती हुई प्रेम मिलन का पूर्णानंद अनुभव कर रही थी। लगता है उसका ओर्गाश्म हो गया था।

दोस्तो! ये पल किसी भी स्त्री के लिए बहुत संवेदनशील होते हैं। अब तो लैला शांत हुई लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थीं। मैंने हल्के धक्कों के साथ उसके गालों, होंठों, गले, उरोजों और उनकी घाटी को चूमना और चाटना चालू रखा।

थोड़ी देर बाद लैला ने आँखें खोली। उसकी गहरी साँसें और आँखों में दौड़ती लालिमा उसके संतुष्ट होने का सबूत थी। मुझे अपनी ओर देखता पाकर उसने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।

मैं अब अपने घुटने मोड़ कर ऊपर होते हुए उकङू होकर उसके ऊपर बैठ गया। मेरे दोनों पैर उसके नितम्बों और कमर के दोनों ओर थे। अब मैंने दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़ ली और इसी अवस्था में ही धक्के लगाने लगा।
अब तो उसकी चूत भी दिखने लगी थी। धक्कों के साथ जैसे से ही मेरा लंड चूत के अन्दर जाता उसके लाल रंग के पपोटे भी अन्दर की ओर धंस से जाते और जब लंड थोड़ा बाहर आता तो उसकी गुलाबी लीबिया (अंदरूनी होंठ) साफ़ नज़र आने लगती।

याल्ला … उसके पतली कमर और सपाट पेट को देखकर मैं रोमांच से भर उठा। मुझे तो उसे देखकर उसके कुंवारी होने का धोखा ही होने लगा। सबसे हैरानी वाली बात तो यह थी कि उसके पेट पर स्ट्रेच मार्क्स भी नहीं थे। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि सुहाना नामक वह चुलबुली फुलझड़ी इसी पेट के अन्दर 9 महीने रही होगी।

हे भगवान … सुहाना नामक फुलझड़ी का पेट, कमर और नाभि भी बिल्कुल ऐसी ही होगी। आह … उसकी चूत या पिक्की पर भी हल्के रेशमी मुलायम बालों की केशर क्यारी बनी होगी। काश कभी उसके बदन को सहलाने और चूमने का मौक़ा मिल जाए तो किसी और नए जन्म का इंतज़ार ही ख़त्म हो जाए।

लैला ने मुझे यह बात तो बाद में बताई थी कि सुहाना उसकी एडॉप्टेड चाइल्ड (गोद ली हुयी लड़की) है।

मेरा लंड तो जैसे निहाल ही हो गया था। कितने वर्षों के बाद इस तरह की चूत को चोदने का आनंद और मौक़ा मिला था। मुझे याद आता है ऐसा सहयोग तो नीरूबेन (याद करें अभी ना जाओ चोद के और हुई चौड़ी चने के खेत में) और सुधा (नन्दोईजी नहीं लन्दोईजी) ने ही किया था बाकी तो बस चुदाई के समय हाय-हल्ला ही करती रही थी।

“जया … मज़ा आया या नहीं?” मैंने एक हल्का धक्का लगाते हुए पूछा।
“आह … प्रेम … बस कुछ मत पूछो और ना कुछ बोलो … आह … बस आज मुझे अपनी पूर्ण समर्पिता बनाकर एक सम्पूर्ण स्त्री बना दो.” कहते हुए उसने मेरी कमर पकड़ कर फिर से मुझे अपने ऊपर खींच लिया।

अब मैंने उसके ऊपर लेट कर धक्के लगाने चालू रखे। कभी मैं उसके एक उरोज को चूसता कभी दूसरे को और फिर उनको हल्का हल्का मसलता हुआ उसके होंठों को भी चूमता जा रहा था। और कभी-कभी अपने लंड को उसकी चूत पर घिसते हुए उसके दाने (मदन मणि) को रगड़ते हुए धक्के लगा रहा था।

लैला ने फिर से अपने नितम्ब उछालने चालू कर दिए थे। मैंने आज दोपहर में ही तसल्ली से अपना पानी अपनी सानूजान की याद में समर्पित किया था तो अभी इतनी जल्दी दुबारा पानी निकालने की जल्दी में नहीं था।

लैला की चूत ने फिर से संकोचन चालू कर दिया था। मुझे लगता है वह फिर से झड़ने वाली है।
मैंने उसे कसकर उसे अपनी बांहों में भींचते हुए जोर-जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए।

मेरे 4-5 धक्कों के साथ ही लैला की साँसें फिर से बेकाबू होने लगी और मुझे लगा जैसे मेरे लंड के चारों ओर एक बार फिर से गुनगना और शहद जैसा चिपचिपा रस लग गया है।

दोस्तो! चुदाई करते समय तो वक्त का तो जैसे ख्याल ही नहीं रहता। मन करता है बस लंड को चूत में फंसाए ऐसे ही सारी जिन्दगी बिता दी जाए। पर हर चीज का एक समय और आखिरी मंजिल भी होती ही है। मुझे लगाने लगा था कि अब मेरा शेर मैदाने जंग में शहीद होने वाला है।

“जया … वो … मैंने कोंडोम नहीं लगाया है?”
“ओह … प्रेम … चिंता मत करो … अपनी इस जान को आज ऐसे ही सींच दो … तुम्हारे प्रेम की बारिश मैं अपने अन्दर महसूस करने के लिए बेकरार हूँ … आह …” कहते हुए उसने मेरे होंठों को चूम लिया।

अब तो मैं बिना किसी हिचक के उसे चोदे जा रहा था। वह भी मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्ब उछालते हुए पूरा सहयोग करने लगी थी। उसने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। अति उत्तेजना में उसने अपने पैर एक बार फिर से ऊपर उठा लिए थे।

मुझे अपनी पीठ पर कुछ चुभता सा महसूस हुआ। ओह … लगता है लैला ने उत्तेजना में अपने नाखून मेरी पीठ पर चुभो दिए थे। मैंने अपने धक्कों की गति और बढ़ा दी।

और … फिर … आधे घंटे की इस मैराथन का अंतिम पड़ाव आ गया। और फिर इस बार हम दोनों ने एक साथ परम मोक्ष को प्राप्त कर लिया।

मेरे लंड ने 5-6 पिचकारियाँ उसकी चूत के अन्दर उंडेल दी। लैला ने अपनी चूत को अन्दर भींचते हुए मेरा पूरा वीर्य अपने गर्भाशय में खींच लिया। और फिर मैं भी लम्बी साँसें लेता हुआ उसके ऊपर ही पसर रहा।

लैला ने अपनी दोनों बाहें मेरी कमर पर कस ली और फिर होले-होले मेरे सिर और पीठ पर अपने हाथ फिराने लगी। अब तो वह ऐसे लग रही थी जैसे बरसों से धूप में तपती रेगिस्तान की जमीन को बारिश की फुहारें ही मिल गई हों।

कोई 10-15 मिनट हम दोनों इसी अवस्था में पड़े रहे। मेरा लंड थोड़ा ढीला जरूर हो गया था पर उसकी चूत से बाहर नहीं निकला था।
हाँ … उसकी चूत से वीर्य जरूर रिसने लगा था।

मैं एक चुम्बन लेते हुए उसके ऊपर से उठ गया और बगल में ही लेट गया।

लैला भी अब उठकर बैठ गई थी। उसने झुक कर पहले तो अपनी चूत को देखा और फिर मेरी ओर देखने लगी। मुझे अपनी चूत की ओर देखते हुए पाकर उसने झट से पास पड़ा तकिया उठाकर अपनी गोद में ले लिया और अपनी चूत को छिपा लिया। कोई और मौक़ा होता तो मेरी हंसी निकल जाती पर मैंने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बंद कर ली।

फिर लैला ने पास रखा तौलिया उठाया और अपनी कमर और नितम्बों को ढांपते हुए बाथरूम की ओर जाने लगी। जिस प्रकार वह अपनी टांगें चौड़ी करके चल रही थी मुझे लगता है अब मेरा रिसता हुआ वीर्य उसकी जाँघों पर भी फ़ैलाने लगा था।

मैं अपनी किस्मत को सराह रहा था। आज का अनुभव बहुत ही विलक्षण था। कितने दिनों बाद आज पूर्ण तृप्ति मिली थी। हालांकि बेचारी गौरी ने भी मुझे खुश करने का हर संभव प्रयास किया था पर अनुभवी औरतों की बात ही कुछ अलग होती है। बिस्तर के ऊपर मसली हुई मोगरे की पत्तियाँ बिखरी पड़ी थी और गुलाबी चादर मेरे वीर्य और लैला के कामरज से रंग दे बसंती सी गई थी।

थोड़ी देर बाद लैला तौलिया लपेटे फिर से कमरे में आ गई। इस तौलिये में वह अपने उरोजों और जाँघों को ढकने की नाकाम सी कोशिश कर रही थी।

हे भगवान! रेशम सी मुलायम और स्निग्ध पीठ पर नितम्बों तक झूलती केश राशि तो जैसे कहर बरपा रही थी। उसने मुझे भी बाथरूम जाने का इशारा किया।

मैं चुपचाप फरमाबदार आशिक (आज्ञाकारी प्रेमी) बना बाथरूम चला आया। मेरा सुपारा अभी भी फूला हुआ था और लाल हो गया था। मैंने अपने लंड को पहले तो साबुन और पानी से धोया और फिर थोड़ी क्रीम उस पर लगा ली। और फिर हाथ पैर धोकर एक तौलिया कमर पर लपेट कर मैं कमरे में वापस आ गया।

मेरा अंदाजा था लैला अपने कपड़े पहन चुकी होगी। पर मेरी सोच के विपरीत वह अभी भी तौलिया लपेटे बेड पर अधलेटी सी पड़ी थी।

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प्यासी पड़ोसन की चुदाई कहानी जारी रहेगी.

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