गाँव की मस्तीखोर भाभियाँ-2

(Gaanv Ki Mastikhor Bhabhiyan Part-2)

जलगाँव बॉय 2016-07-30 Comments

This story is part of a series:

पिछले भाग से आगे..

भाभी बोलीं- जरा मेरे देवर का पेट भर दे.. अपनी गोद में लेकर!
सुन कर बाकी औरतें हंस पड़ीं।
मैं तो हैरान रह गया।

तभी रसीली की आवाज आई- आओ भैया इधर..
मैं शर्मा रहा था..
तो उसने मुझसे बोला- शर्माने की क्या बात है.. तुम्हारे भैया भी तो रोज ही पीते हैं.. अगर एक दिन तूने पी लिया तो खत्म थोड़ी ही होगा.. बहुत आता है इनमें।

मैं धीरे-धीरे आगे बढ़कर उसके पास गया।
वो पैरों को मोड़कर बैठ गईं और अपनी गोद में मेरा सर रखने को बोला।

मैंने वैसा ही किया.. क्योंकि अब मेरे पास कोई चारा नहीं था।
मेरे निक्कर में से बार-बार मेरा टोपा दिख रहा था।

मैं जैसे ही उनकी गोद में लेटा.. उसने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालू कर दिए।

एक.. दो.. तीन.. करके सभी बटन खोल दिए और ब्लाउज को दूर हटा कर अपने एक हाथ में बोबे को पकड़ा, अपने निप्पल को खुद दबाया.. तो जैसे एक फव्वारे की तरह दूध की धार मेरे पूरे चेहरे को भिगो गई.. मुझे बहुत ही मजा आया।

मैंने भी निप्पल को दो उंगली में लेकर दबाया.. तो फिर से वैसे ही दूध की पिचकारी उड़ती हुई मेरे चेहरे को भिगोने लगी।

अब मैंने अपना मुँह निप्पल के सामने रख दिया और उसे फिर से दबाने लगा.. तो मेरे मुँह में उसके शरीर का अमृत जाने लगा और उसका टेस्ट.. वाह क्या मीठा था.. एकदम मीठा..

तो मैं वैसे ही निप्पल को दबाने लगा और दूध पीने लगा।

बाद में उसने अपना निप्पल धीरे से मेरे मुँह में दे दिया और सिसिया कर बोली- ले.. अब चूस इसे..
मैं भी उसे चूसने लगा।

मैंने सोचा कि ऐसे ही पूरी जिंदगी दूध ही पीता रहूँ.. मेरे मुँह में दूध की धार भर रही थी। जैसे ही थन को मसकता.. पूरी धार मेरे मुँह में आ जाती।
मुझे रसीली भाभी का दूध पीने में बहुत ही मजा आ रहा था और वो भी अपनी दो उंगलियों में निप्पल लेकर दबातीं.. जिससे और दूध मेरे मुँह में आ जाता।

थोड़ी देर दूध पीने के बाद जब वो बोबे में खत्म हो गया.. तो मैंने भाभी को वो बताया।

उन्होंने दूसरी तरफ होने का बोला और दूसरा बोबा मेरे मुँह में दे दिया।

दूसरे बोबे से दूध पीते वक्त मेरी हिम्मत बढ़ी तो मैं अपने हाथों से दूसरे बोबे की निप्पल अपनी दो उंगली में लेकर दबा देता.. जिससे रसीली भाभी की एक मादक आवाज आती थी ‘आह्ह्ह.. आआह्ह..’

यह देख कर भाभी भी उधर बैठे-बैठे अपने बोबे दबा देती थीं।
शायद उन्हें भी सेक्स करने का मन कर रहा था।

दूसरी सब औरतें अपने काम में से टाइम निकाल कर हमें देख लिया करती थीं।

तभी रसीली भाभी के दूसरे बोबे में भी दूध खत्म हो गया।
जब मैंने बताया तो वो बोलीं- अभी आधा लीटर पी गए.. अब तो खत्म होगा ही।

उनके ऐसा बोलने से सभी औरतें हँस पड़ीं।

उसकी बात भी सही थी। मैं आधा लीटर तो पी ही गया होऊँगा और मेरा पेट भी भर गया था। लगता था शायद शाम तक मुझे खाना ही नहीं पड़ेगा।

तभी रसीली भाभी बोलीं- देवर जी भूखे तो नहीं न अब.. वरना और भी हैं.. चाहो तो और दूध का इंतजाम कर देती हूँ।
मैं बोला- नहीं भाभी.. बस मेरा पेट पूरा भर गया है।

अभी भी मैं रसीली भाभी का बोबा चूस रहा था। तो रसीली भाभी बोलीं- रूपा.. लगता है ये मेरे बोबे ऐसे नहीं छोड़ेगा.. तुम इसे मेरे घर लेकर आना.. उसको पूरा भोजन और चोदन करा दूँगी।

रूपा भाभी हँस कर बोलीं- हाँ वो ठीक रहेगा.. लेकिन अभी तो हमारा मेहमान है।

फिर मैं दूध पीते-पीते रसीली भाभी के पेटीकोट के नाड़े पर अपना हाथ ले जाने लगा.. जिसे देख कर वो बोलीं- अभी नहीं.. घर आना आराम से करेंगे।

मैंने बोला- सिर्फ एक बार मुझे तुम्हारी ‘वो’ देखनी है।
रसीली भाभी बोलीं- वो मतलब..
मैं- मतलब आपकी चूत..

रसीली भाभी- अभी देख के क्या करोगे.. इधर तो कुछ होने वाला नहीं है।
मैं- हो भले कुछ ना.. लेकिन पता तो चलेगा कि पूरी दुनिया जिसमें समा चुकी है.. वो चीज कैसे होती है।

वो यह सुन कर हँस-हँस कर पागल हो गईं और मेरी भाभी को बोलीं- देख रूपा ये क्या बोल रहा है.. इसे मेरी चूत देखनी है.. और बोलता है कि मुझे वो देखना है.. जिसमें पूरी दुनिया समा चुकी है।

यह सुनकर वो और दूसरी अब औरतें हँसने लगीं।

रूपा भाभी- हाँ.. तो बता दे न.. वो भी क्या याद करेगा और रोज तेरे नाम की मुठ मारता रहेगा।
रसीली भाभी- अरे मेरे होते हुए क्यों मुठ मारेगा बेचारा.. कल ले आना मेरे घर.. धक्के ही लगवा दूँगी।

रूपा भाभी- ठीक है.. लेकिन अभी का तो कुछ कर..
रसीली भाभी- हाँ अभी तो मैं उसे मेरी मुनिया के दर्शन करा देती हूँ.. ताकि उसके मुन्ने को पता चले कि कल उसे कौन से ठिकाने पर जाना है और अभी मैं उसका केला चूस कर रस भी पी लेती हूँ.. गुफा में कल प्रवेश करवाऊँगी।

ऐसा बोल कर उन्होंने अपना पेटीकोट कमर तक ऊंचा कर दिया और अपनी रेड कलर की जालीदार पैंटी उतारने ही वाली थीं कि..
मैं- रहने दो.. मैं उतारूँगा।
रसीली भाभी- हाँ भाई, तू उतार ले।

उनके ऐसा बोलते ही मैंने अपना हाथ उनकी चूत पर रख दिया और उनकी चूत का उभार महसूस करने लगा।
पहली बार मैं किसी औरत की चूत छू रहा था.. चूत का उभार भी क्या गजब था.. जैसे बड़ापाव हो।

चूत के बीच में एक लकीर जैसा था.. और दोनों साइड एकदम चिकने गोलाईदार होंठ थे। मुझे तो जन्नत जैसा अनुभव लग रहा था।

मैंने साइड में से उंगली डालकर उनकी पैंटी को खींचकर उनकी लकीर को महसूस किया.. वो तो बस मेरे सामने ही देख रही थीं और मैं उनकी चूत की दुनिया में जैसे डूब गया था।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

रसीली भाभी बोलीं- ऐसे ही चड्डी के ऊपर से ही देखोगे या उतारकर भी देखना है?
मैं जैसे होश में आया- हाँ भाभी जी..

ऐसा बोलकर मैंने उनकी पैंटी नीचे सरकाई और उतार फेंकी।

हे भगवान.. अब समझ में आया कि सभी मर्द चूत के पीछे क्यों भागते हैं.. शायद मैं भी उन लोगों की दुनिया में आ गया था।

उनकी चूत एकदम साफ़ थी.. मुझे मालूम था कि औरतों को भी झांटें होती हैं।

लेकिन फिर भी मैंने भोला बनकर रसीली भाभी से पूछा- भाभी जी मैंने सुना था कि औरतों की भी झांटें होती हैं लेकिन आपकी तो नहीं हैं?

वो हँसकर बोलीं- हाँ होती है न.. लेकिन मैंने आज साफ़ की थीं.. शायद मेरे पति से ज्यादा लकी तुम हो.. जो उनसे पहले तुमने मेरी बिना झांटों वाली चूत देख ली।

बस मैं तो उनकी चूत पर हाथ फेरने लगा और चूत का हर एक कोना देखने लगा। मैं अच्छे से देखना चाहता था.. तो मैंने उनकी ऊपर से लेकर नीचे तक चूत को महसूस किया.. जैसे मैंने चूत की दोनों गोलाईयाँ खोलीं.. बीच में दो होंठ जैसे खुलने लगे।

मैंने अंजान बनकर रसीली भाभी से पूछा- भाभी जी ये बीच में लटका हुआ क्या है?
रसीली भाभी- उसे चूत का दाना कहते हैं।

मैं आश्चर्य से बोला- क्या इसे ही दाना कहते हैं?
रसीली भाभी- हाँ मेरे राजा.. इसको चूसने से औरत को होंठ चुसाने से भी ज्यादा मजा आता है।
मैं- तो क्या मैं इसे अभी चूस लूँ?

रसीली भाभी- नहीं.. अभी सिर्फ देखो.. कल घर आकर जो करना हो सो कर लेना.. मैं मना नहीं करूँगी.. इधर सब आते-जाते रहते हैं।
मैं- ठीक है.. लेकिन मेरे इस केले का तो कुछ कर दो।

रसीली भाभी- ठीक है.. मैं अभी ही इसका रस निकाल देती हूँ।
मैं- तो देर किस बात की है.. ले लो तुम मेरा केला..

ऐसा बोलते ही उन्होंने मेरी निक्कर नीचे उतार दी और मेरा फड़फड़ाता हुआ लण्ड हाथ में पकड़ लिया।
ये मेरा पहली बार था.. इसीलिए बहुत गुदगुदी हो रही थी।

रसीली भाभी ने मेरे टोपे की चमड़ी को ऊपर-नीचे किया।
पहली बार में किसी और से मुठ मरवा रहा था.. वो भी किसी औरत से.. मेरा लण्ड काबू में नहीं था।

मैंने उनसे बोला- जल्दी करो भाभी.. मुझसे रहा नहीं जाता।

रसीली भाभी बोलीं- रुको भी.. इतनी भी क्या जल्दी है.. अभी तो सिर्फ हाथ ही लगाया है.. जब मुँह में लूँगी.. तो क्या होगा।
मैंने अंजान बनते हुए कहा- क्या इसे भी मुँह में लिया जाता है?
रसीली भाभी- हाँ..

और ऐसा बोल कर वो मेरे लण्ड की चमड़ी ऊपर-नीचे करने लगीं और मुठ मारने लगीं।
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।

उधर रूपा भाभी ये सब देख रही थीं.. जब मेरा ध्यान उन पर पड़ा तो मेरा शर्म से मुँह लाल हो गया।
मैं रसीली भाभी के हर एक झटके का आनन्द उठा रहा था।

रसीली भाभी के मुठ मारने से मेरी उत्तेजना और बढ़ गई थी और वीर्य की एक बून्द टोपे पर आ गई थी।
यह देखते ही रसीली भाभी ने मेरी मुठ मारना छोड़ दी।

एक बार तो मुझे लगा कि वो ऐसा मुझे क्यों आधे रास्ते में छोड़ रही हैं.. लेकिन तुरंत ही वो मेरे लण्ड पर झुक गईं.. और मेरा टोपा अपने मुँह में ले लिया।

मेरे तो जैसे होश उड़ गए और इतना मजा आने लगा कि अब मैं सातवें आसमान पर था।

धीरे-धीरे उन्होंने मेरा लण्ड पूरा मुँह में भर लिया और ‘चपर-चपर’ चूसने लगीं।
मेरी तो हालत खराब होती जा रही थी।

वो मुँह में जीभ फेरतीं.. तो कभी चप-चप करके चाटतीं।
अब तो वे जीभ से मेरे गोटे भी चूसने लगीं।
फिर से उन्होंने मेरे लण्ड को मुँह में भर लिया और जड़ तक चूसने लगीं।

अब मेरा सब्र का बाँध टूटने वाला था, मुझे लगा कि मेरा वीर्य निकलने वाला है।
मैंने रसीली भाभी को बोला- भाभी जी छोड़ दो.. अब मेरा निकलने वाला है।

लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ.. क्योंकि वे सुना-अनसुना करके मेरा लण्ड चूसती रहीं।
अब मुझे क्या था.. मैं तो बिंदास होकर लौड़ा चुसाने का आनन्द लेने लगा।

अब मेरा पूरा बदन सिकुड़ने लगा, भाभी जी को मालूम हो गया और वो और जोर से चूसने लगीं।

तभी मेरे लण्ड ने पिचकारी छोड़ दी.. वीर्य की धार सीधे उनके गले में जाने लगी।
मेरा लण्ड ऐसे 7-8 झटके मारते रहा.. लेकिन उन्होंने मेरा लण्ड नहीं छोड़ा और पूरा वीर्य पीने लगीं।

बाद में मेरे लण्ड को पूरा चाट-चाट कर साफ़ कर दिया।
अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए बोलीं- आपका पानी तो बहुत मीठा है।
मैं- होगा ही न.. पहली बार आपने चखा है।

रसीली भाभी- कैसा लगा देवर जी?
मैं- बहुत अच्छा.. ऐसा मजा मैंने पहले कभी नहीं लिया था.. आपने तो मुझे जन्नत की सैर करा दी।

रसीली भाभी- अभी सही जन्नत तो बाकी है। वैसे आपका लण्ड भी बहुत मस्त है। मेरे पति का तो सिर्फ अंगूठे जैसा है.. जब कि आप का तो पूरा डंडा है डंडा..
मैं- हाँ.. वो तो है।

मुझे अब पता चला कि पूरी दुनिया चूत में क्यों डूबी हुई है।

तभी रूपा भाभी बोलीं- चलो देवर जी.. अब बहुत मजा किया.. घर जाने में देर हो जाएगी तो कहीं सासू माँ इधर ना आ जाएँ।
रसीली भाभी भी बोलीं- जाओ मेरे राजा.. कल आना.. बाकी की जन्नत भी देख लेना।

भाभी बोलीं- चलो देवर जी बस.. मैं दो मिनट में नहा लेती हूँ.. फिर हम चलते हैं।
मैं- भाभी मुझे भी आपके साथ नहाना है।

रूपा भाभी- ठीक है.. तुम भी आ जाओ।

मित्रो.. कैसे लगा यह भाग? जल्द मेल करो.. मेरी गर्म-गर्म भाभियों का मजा तो अब दुगना हो गया होगा। अब उंगली डालना बंद करो और मेल करो प्लीज.. आपके मेल से ही मुझे कहानी लिखने में मदद मिलती है।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top