उफ़्फ़ तूफ़ानी रात वे-2

लेखिका : नेहा वर्मा

मुझे अब मालूम हो गया था कि राजू अब सरिता को नहीं बल्कि मुझे पसन्द करने लगा था। वो शाम को अपने गाँव जा रही थी पर राजू उसे छोड़ने नहीं गया था।

मैंने उसे कुछ नहीं कहा। शाम को भोजन करके मेरे पति तो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने बैठक में चले गये। उन्हें मौसम से कुछ लेना देना नहीं था। बाहर ठण्डी हवायें चल रही थी, बरसात होने को थी, सावन का महीना मन को गुदगुदा रहा था, ऐसे मौसम में भला कौन नहीं चुदना चाहेगा। मैंने राजू के कमरे में से उसे बुला लिया। उसके हाथ में तेल की बोतल थी। वो अपने शरीर की मालिश कर रहा था।

मैंने भी उसका हाथ पकड़ा और ब्लाऊज खोल कर तेल लगाने को कहा। उसने जल्दी से मेरी चूचियों पर तेल मल दिया। फिर मैंने उसका हाथ अपने पेटीकोट में डाल दिया।

“क्या कर रही हो भाभी…? भैया अन्दर हैं !”

“जल्दी कर !” मेरी सांस फ़ूलने लगी थी।

उसने जल्दी से मेरी गाण्ड पर तेल मल दिया और एक अंगुली को तेल लगा कर मेरी गाण्ड में भी पिरो दिया।

मैंने उसे खींचा और तीसरी मंजिल की छत पर आ गई। काली घटा अन्धेरे को और बढ़ा रही थी। मै तो राजू से अब खुल ही चुकी थी। उससे चुदने की चाह भी बढ़ने लगी। मैंने अपने ब्लाऊज को सामने से खोल दिया और अपनी नंगी छातियों को उघाड़ कर ठण्डी हवा का आनन्द लेने लगी। राजू मुझे बड़ी गहरी और वासना की नजर से घूर रहा था। तभी मैंने जोश में अपना पेटीकोट भी ऊंचा कर लिया और कमर तक उठा लिया। ठण्डी हवा नीचे मेरे तन में लगने लगी।

“भाभी, इसे नीचे कर लो…”

“क्या फ़रक पड़ता है, इतनी ऊंची दीवारें है, कोई नहीं देखेगा… तू भी पाजामे में से निकाल ले अपना लण्ड … मजा लेकर देख…”

राजू ने अपने हाथ मेरे चूतड़ों की तरफ़ बढ़ा दिये और अब वह वहाँ पर सहलाने लगा था। मेरी गाण्ड तो वैसे भी चिकनी और चमकदार थी। तभी उसके हाथों में वही तेल की शीशी आ गई और मेरी चिकनी गाण्ड पर वो मलने लगा। मैंने उसे मतलबी निगाहों से देखा।

“कितनी चिकनी करेगा रे?”

मेरी गाण्ड को वो थपथपाता हुआ बोला,”भाभी, आप तो माल हो माल… मलाईदार माल…”

“ऐ, चुप … मुझे माल कहता है…”

“सच भाभी … तुम्हारा टाईट बदन, कठोर चूचियां … मस्त चिकनी चूत और ये कठोर चूतड़ … सरिता में ये सब कहां था…”

“ओह … वो तो पचास लोगों से चुदवा चुकी है… मुझे तो वो एक मिला है वो भी हाथ ही नहीं लगाता है…” मैंने अपनी तारीफ़ खुद ही कर दी।

“मेरी भाभी … बस … आप तो अब मेरी हो गई… अब देखना आपको मैं कैसे बजाता हूँ…”

तभी उसका हाथ मेरे चूतड़ों की दरार में घुस गया और कुछ टटोलने लगा, मैं तो जैसे उछल ही पड़ी। उसकी एक अंगुली मेरी गाण्ड में घुस गई। अब वो उसे मेरी गाण्ड में घुमाने लगा। मेरी गोरी चिकनी गाण्ड में एक झुरझुरी सी आ गई।

“कर दी ना मेरी गाण्ड में अंगुली…”

उसने गाण्ड में हाथ मारते हुये कहा,”अभी तो देखो इसे कैसे मारता हूँ।”

“चल हट … गाण्ड ऐसे थोड़े ही मारते हैं?”

“तो भाभी … ऐसे ही तो मारते है ना?” मेरे चूतड़ पर हाथ मारते हुये वो बोला।

“उह… तुम तो अनाड़ी हो… जहां अंगुली डाली थी ना… वहाँ अपना लण्ड घुसेड़ दो तो गाण्ड मारना कहा जायेगा।”

“ऐ भाभी, मेरा लण्ड पकड़ ना … मजा आता है, फिर इसे जहा आप चाहो वहाँ घुसेड़ लेना।”

मैंने उसका लण्ड पजामा नीचे करके पकड़ लिया। अन्धेरे में वो साफ़ नहीं दिखा पर बहुत कड़क हो रहा था। बून्दा-बांदी शुरु हो गई थी। मेरी पीठ पर पानी की बूंदें मीठी सी जलन पैदा कर रही थी। मैंने दीवार पर अपने दोनों हाथ लगा दिये और टांगें पसार दी। कुछ कुछ घोड़ी सी बन गई थी। मैंने उसे बड़ी आशा भरी निगाहों से देखा और मेरे देखते ही राजू जैसे सब कुछ समझ गया।

“क्या दीवार गिराने का इरादा है…?”

“राजू … अब चल ना …!”

वो मेरी पीठ से चिपक गया और उसने अपना लम्बा लण्ड मेरी गाण्ड पर दबा दिया। तेल भरी गाण्ड में लण्ड ऐसे फ़िसल गया जैसे कोई दरवाजा पहले से खुला हो। मेरे दिल में एक मीठी सी टीस उठी। ऐसा लगा कि कोई गरम लोहा मेरी गाण्ड में ठोक दिया हो।

“ऐ राजू, धीरे से, ये तो अभी कंवारी है, देख लग ना जाये !” यह कहानी आप मोबाइल पर पढ़ना चाहें तो एम डॉट अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ सकते हैं।

पर राजू तो जोश में था, लण्ड अन्दर ठूंसता चला गया, लण्ड भी सरसराता हुआ बेखौफ़ अन्दर उतरता चला गया।

“लव यू भाभी, कंवारी गाण्ड का मजा तो गजब का होता होगा !” उसने भी अपनी दोनों टांगें फ़ैला ली और मेरे चूतड़ों के बराबर आ गया। उसने अपना एक हाथ मेरी कमर में लपेटा और दूसरा हाथ मेरी भारी सी चूचियों पर रखा और मुझे यूँ दबा लिया जैसे कोई कसाई बकरे को दबा लेता है।

बरसात तेज हो चली थी। उसकी मोटी मोटी बूंदें तड़ तड़ सी मेरी पीठ पर लग रही थी। मुझे तभी ध्यान आया कि मैं तो पूरी नंगी हूँ, उसने जाने कब मेरा पेटीकोट उतार दिया था। ब्लाऊज तो मैंने स्वयं ही उतार दिया था। मुझे एकाएक शरम सी आने लगी थी। मेरी शरम छुपाने में मेरा साथ यह अंधेरा दे रहा था। मैं खुल कर गाण्ड मरवाने लगी। वो बड़ी अदा से अपने शरीर को मोड़ कर लगभग कुत्ते की स्टाईल में अपना लण्ड अन्दर-बाहर करके चोद रहा था। तड़पती हुई बिजलियाँ, राजू के भीगे हुए चमकते बदन को और चमका रही थी थी। हम दोनों ही बिल्कुल नंगे रति क्रिया में लगे हुये थे।

“गीली गीली भीगी हुई भाभी को चोदने में कितना मजा आ रहा है।”

“हाय राजू, बस ऐसे ही मुझे गीली करके चोदा कर, कितना आनन्द आ रहा है !”

“हाँ मेरी भाभी, तेल लगा कर गाण्ड चोदने में और भी मजा है … ”

उसकी बातों से मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी। वो बीच बीच में मुझे रण्डी छिनाल जैसी उपाधियाँ भी देता जा रहा था। पर वो तो प्यार जाहिर करने का, मस्ती जाहिर करने का एक तरीका था। राजू मेरी पीठ से बुरी तरह से चिपका हुआ था।

उसकी रफ़्तार इंजन के पिस्टन की तरह थी। अचानक वो और नीचे झुका और मेरी पीठ को और दबा कर उसने लण्ड निकाल कर नीचे चूत की तरफ़ सरका दिया और मेरी

चूत पर उसे घिसने लगा। चूत पर लण्ड का घर्षण ने मुझे और मस्ती में ला दिया। तभी उसने उसने कमर से उठा कर नीचे गीली खुरदरी सी छत पर लेटा दिया और मेरी दोनों टांगों के बीच में समा गया। उसका उतावला कड़क लण्ड मेरी चूत को फिर से रगड़ रहा था।

“राजा … घुसेड़ दे यार … चोद दे अब जोर से…”

“भोसड़ी की, ये ले, अब खा ले मेरा लण्ड … तेरी मां की भोसड़ी !”

और जोश में उसका लण्ड मेरी योनि को फ़ाड़ता हुआ सटाक से भीतर चला गया। मेरे अन्तःमन की ज्वाला भड़कने लगी थी… मैंने अपनी चूत को उठा कर उसके लण्ड पर दबा दिया। ठण्डे पानी की बौछारों ने और मस्ती का काम किया। तेज बरसात उस पर ऐसी चुदाई, हाय राम मर जाऊँ … उसके करारे धक्के मेरी जान निकालने पर तुले थे। सारा शरीर वासना की ज्वाला से धधक रहा था। तेज बारिश हम दोनों पर आग में घी का काम कर रही थी। उसके सटासट तेज धक्कों से मेरा पूरा जिस्म हिल रहा था। मेरे सीने की बोटियाँ जैसे राजू नोच नोच कर खा जाना चाहता था।

मेरी वासना भारी चीखें बरसात और बादलों की गर्जन में दब कर रह जाती थी। धीरे धीरे मैं चरम सीमा की ओर बढ़ रही थी। सारा जिस्म जैसे फ़ड़क उठ था। सारा रस चूत की तरफ़ भाग रहा था। मेरी पकड़ मजबूत हो गई थी। मेरे जबड़े भिंच कर कठोर हो गये थे। दांत कस गये थे और किटकिटाने लगे थे। मैं चाह कर भी अपने आप को नहीं रोक पाई।

एक चीख के साथ चरमसीमा को मैंने लांघ लिया और जोर से स्खलित होने लगी।

मेरी चूत में लहरें चलने लगी और मैं तड़पती हुई राजू से लिपट गई। मेरी गरम जवानी ने राजू को भी झड़ने पर मजबूर कर दिया और उसका वीर्य जोर से निकल गया और मेरी योनि में भरने लगा। लम्बी लम्बी सांसें लेते हुए मैं निढाल सी हो गई। बादलों की तेज गर्जन और फिर छटपटाती बिजलियों को सुन कर मैं उठ कर बैठ गई। तभी मुझे लगा कि छत के खुरदरे फ़र्श से मेरी पीठ जगह जगह से खुरच गई थी, उसमें खरोंच के लाल लाल निशान पड़ गये थे। हल्की जलन सी होने लगी थी।

मैंने जल्दी से अपना भीगा पेटीकोट किसी तरह से अपने शरीर में फ़ंसा कर पहन लिया। गीले ब्लाऊज को जैसे तैसे मैंने अपने सीने के उभारों पर खींच खींच कर सेट कर लिया। राजू भी अपना पजामा और बनियान पहन कर खड़ा हो गया था। अब बरसात का पानी मुझे ठण्डा लगने लगा था।

हम दोनों छत से नीचे आ गये और स्नान करके फ़्रेश हो गये।

अभी दस बजने में पन्द्रह मिनट शेष थे, अभी भी मेरे पति छात्रों को पढ़ाने में लगे थे।

राजू हमारे साथ बहुत दिनों तक रहा था… इस दौरान हम दोनों ने जवानी का आनन्द जी भर कर लूटा था। फिर एक दिन आया, राजू की नौकरी किसी अन्य शहर में लग गई और हम दोनो एक दूसरे से बिछुड़ गये !

इस जवानी के मद भरे रिश्ते के बाद मैंने कभी किसी अन्य पुरुष से सम्पर्क नहीं किया… बस अपने पति की होकर रह गई।

मूल कहानी – शिखा दवे

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