कोई बचा ले मुझे-2

कोई बचा ले मुझे-1
विपिन घायल हो कर मेरे ऊपर चढ़ा जा रहा था. अपने आप को मेरे बदन पर सेट कर रहा था. मैंने मस्ती में अपनी आँखें मूंद ली थी. अन्ततः वो मेरी दोनों टांगों के मध्य फ़िट हो गया था. उसका भारी सा लण्ड मेरी चूत पर दबाव डालने लगा था. मेरी चूत ने अपना मुँह खोल लिया और मुँह फ़ाड़ कर लण्ड के सुपाड़े को पकड़ लिया. एक मीठी सी गुदगुदी उठी और लण्ड भीतर समाता चला गया. मेरे मन को एक मीठी सी ठण्डक मिली. इतने दिनों से लण्ड की चाहत में तड़पती रही थी और अब अचानक ही जैसे मन चाही बात बन गई. उसकी शराब से भरी महक मुझे नहीं भा रही थी पर चुदना तो था ही ना. जाने साधारण अवस्था में वो मुझे चोदता या नहीं, पर नशे में टुन्न उसे भला बुरा कुछ नहीं सूझ रहा था, बस जानवर की तरह उसे चूत नजर आ रही थी, सो लण्ड घुसा घुसा कर उसे चोद रहा था.

मैं भी अपने पूर्ण मन से और तन से उसका साथ देने लगी थी. उसका लण्ड अब पूरा अन्दर तक घुस कर बहुत वासनापूर्ण उत्तेजना दे रहा था. मेरी चूत अपने आप ही ऊपर नीचे चलने लगी थी और आनन्द भोगने में लगी थी. अचानक मेरे सीने में दर्द सा उठा, उसने मेरी चूचियाँ बहुत जोर से दबा दी थी. मेरी यौवन-कलिका लण्ड से घिस घिस कर मेरे तन को सुखमय बना रही थी. मैं उसे जोर से जकड़ कर उसकी जवानी भोग लेना चहती थी. उसकी कमर मेरी चूत पर जोर जोर से पड़ रही थी. मेरी चूत पिटी जा रही थी. मुझे गुदगुदी जोर से उठने लगी. चूत जैसे लण्ड को पूरा खा जाना चाहती हो… मेरा जिस्म अकड़ने सा लगा. मेरा तन जैसे सारी नसों को खींचने लगा… और मैं एक दम जोर से झड़ गई. मेरी चूत में लहरें सी उठने लगी.
‘भोंसड़ी की, झड़ गई साली… मेरा तो निकला ही नहीं…!’ उसकी बात को समझ कर मैंने गाण्ड मराने के उसे धकेल दिया और उल्टी हो कर लेट गई.
‘साली छिनाल, गाण्ड मरानी है क्या? वो जैसे गुर्राया.
‘भैया जी, बाकी की हसरत मेरी गाण्ड में निकाल दो, मेरी तबियत भी भी हरी हो जायेगी.’
‘छीः मैं गाण्ड नहीं मारता… भोसड़ी की आई है बड़ी गाण्ड मराने वाली!’
‘गाण्डू है मेरा देवर, भाभी की इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकता?’
‘मां की लौड़ी, मुझे कह रही है, भेन दी फ़ुद्दी, गाण्ड फ़ट के हाथ में आ जायेगी!’
‘ओह्हो, बड़ी डींगे मार रहे हो, और भड़वे, गाण्ड नहीं चोदी जा रही है?’

वो गुर्रा कर और उछल कर मेरी पीठ पर सवार हो गया.
‘तेरी मां की चूत… अब तो लण्ड का पानी तो निकाल के रहूँगा…’

उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में दबा दिया. मैं दर्द से कराह उठी. उसका लण्ड मेरी गाण्ड फ़ाड़ता हुआ आधा अन्दर बैठ गया. उसने फिर जानवरों की तरह मेरे सीने को मसलते हुये दूसरा धक्का मारा. मेरे मुख से चीख सी निकल गई. पर मैं बहुत संतुष्ट थी कि आज मेरी जम कर चुदाई हो रही है. मैंने ईश्वर का धन्यवाद किया कि मेरे मन की मुराद पुरी हो रही थी. थोड़ी दर्द से भरी और थोड़ी से मस्ती भरी!!!

मैंने अपनी गाण्ड के छेद को ढीला छोड़ दिया और लस्त सी बिस्तर पर पसर गई. वो मेरी गाण्ड चोदता रहा और फिर उसने अपना लण्ड बाहर निकाल कर अपना सारा वीर्य मेरे गाण्ड के गोलों पर निकाल दिया. वो कितनी देर तक मुझे नोचता खसोटता रहा, मुझे नहीं मालूम था, मैं तो नींद के आगोश में जा चुकी थी. मेरे मन में संतुष्टि का आलम था. आत्म विभोर सी मैं गहरी नींद में खो गई.

सवेरे मेरी आँख खुली तो विपिन नंग धड़ंग मेरे से लिपटा हुआ पड़ा था. मैंने भी सोचा कि ऐसे ही पड़े रहो ताकि उसे याद रहे कि उसने अपनी भाभी को चोदा है. ताकि आगे का रास्ता मेरा सदा के लिये खुल जाये. मैं उसकी बाहों में नंगी ही पड़ी रही. कुछ ही देर में वो भी उठ गया और आश्चर्य से सब कुछ आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर देखने लगा. वीर्य के निशान और भाभी को नंगा देख कर उसे सब कुछ याद हो आया.

वो जल्दी से उठ गया और अपने आप को ठीक किया. उसने मुझे ध्यान से देखा और मुझ पर झुक गया. मेरे अंग प्रत्यंग को निहारने लगा. उसका लण्ड फिर से खड़ा होने लगा. उसके चेहरे पर फिर से वासना का भाव उभर आया. मैं धीरे से उठी और मैंने अपना चेहरा छिपा लिया. अब मैं शर्माने का अभिनय करने लगी.

‘ऐसे मत देखो देवर जी! आपने देखो ये क्या कर दिया?’

मेरे निर्वस्त्र शरीर के अंगो को वासनामयी दृष्टि से निहारता हुआ बोला- भाभी, आप इतनी सुन्दर है, यह तो होना ही था!’ उसकी नजरें अभी भी मेरी चूत पर ही टिकी हुई थी. मैं कुछ कहती, उसका लण्ड कड़ा होने लगा. सामने यूँ तन कर खड़ा हो गया कि मेरा दिल भी एक बार फिर डोल उठा.

‘इसे तो नीचे करो… वर्ना मुझे लग रहा है कि यह तो मेरे जिस्म में फिर से घुस जायेगा.’

मैंने जान कर के उसका लण्ड पकड़ कर नीचे करने लगी. विपिन मुस्करा उठा और उसने मुझे फिर से धक्का दे कर बिस्तर पर लेटा दिया. वो उछल कर मेरी पीठ पर सवार हो गया.

‘भाभी, पहले गुड-मॉर्निंग तो कर लें!’ वो मेरे चूतड़ों के नीचे मेरी टांगों पर बैठ गया. उसका लम्बा लण्ड मेरी चूतड़ो के गोलों पर स्पर्श करने लगा.

‘विपिन, चुप हो जा, बड़ा आया गुड मॉर्निंग करने वाला!’

‘इतनी प्यारी और सलोनी गाण्ड का उदघाटन तो करना ही पड़ेगा, भाभी, कर दूँ उदघाटन?’

मैं शरमा उठी. मेरी गाण्ड चुदने वाली थी, यह सोच कर ही मेरा दिल फिर से खुशी के मारे उछलने लगा था. बस आँखें बंद किये मैं इन्तज़ार कर रही थी कि कब उसका प्यारा लण्ड मेरी गाण्ड का उद्धार कर दे. मेरी चूतड़ की दरार में जैसे खुजली सी मचने लगी.

तभी चूतड़ों के मध्य मुझे नर्म से लण्ड के सुपाड़े का अनुभव हुआ. आह्ह्ह… तो एक बार फिर शुरुआत हो गई है. उसका लण्ड मेरी दोनों चूतड़ों के बीच घुसने लगा. मैंने अपने पांव और खोल दिये और उसका नरम सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद को छू गया. छेद एक बार तो अन्दर बाहर लप लप हुआ और फिर मैंने उसे ढीला कर दिया.

विपन का जोश देखते ही बनता था. उसने झुक कर मेरे उभार पकड़ कर दबा दिये. मेरी चूचियाँ मसल डाली उस कमबख्त ने…

उधर उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड को फ़ोड़ता हुआ अन्दर घुसने लगा. मेरी गाण्ड मस्त हो उठी. मेरे मुख से वासनामय सिसकारी फ़ूट पड़ी. उसके मुख से भी एक मोहक सी चीख निकल गई. उसका लण्ड गाण्ड में पूरा उतर गया. उसने अब अपना भार मेरे जिस्म पर डाल दिया और मुझे बुरी तरह लिपट गया.

अब वो नशे में नहीं था. पूरे होशो हवास में मुझे चोद रहा था. उसे चोदने की वास्तविक अनुभूति हो रही थी. अब जो जम कर मेरी गाण्ड चुदाई कर रहा था. मुझे आनन्द के सागर में बहा कर ले जा रहा था. उसने धीरे से मेरे कान में कहा- भाभी, भोंसड़े को चोद दूँ… बहुत जी कर रहा है…!’

विपिन तो बस मेरी गाण्ड के पीछे ही पड़ा था… जब उसने भोसड़ा चोदने की बात कही तो ‘मुझे सीधी तो होने दे… ऐसे कैसे भोंसड़े को चोदेगा?’ मैंने वासना भरी आवाज में कहा.

मैं सीधी हो गई और विपिन फिर से मेरी टांगों के बीच आ गया और उसने अपने हाथों से मेरी चूत के कपाट खोल दिये. अन्दर रस भरी चूत की गुफ़ा नजर आई, उसने अपना लौड़ा पहले तो हाथ से हिलाया और फिर मेरी गुफ़ा में घुसाता चला गया. बीच में एक दो बार उसने लण्ड बाहर खींचा और फिर पूरा पेन्दे तक उसे फ़िट कर दिया.

मैं खुशी के मारे चीख सी उठी. वो धीरे से मेरे ऊपर लेट गया और मेरे होंठों को उसने अपने होंठों से दबा लिया और रसपान करने लगा. उसके हाथ मेरे सीने को गुदगुदाते और सहलाते रहे. मुझे अब होश कहाँ! मैंने उसके चूतड़ अपने दोनों हाथों से दबा लिये और खुशी के मारे सिसकने लगी. मेरी चूत उसके लण्ड के साथ-साथ थाप देने लगी, थप थप की आवाज आने लगी, मेरी चूत पिटने लगी. दोनों की झांटें बीच बीच में कांटों की तरह चुभ कर मजा दुगना कर रही थी. उसकी लण्ड के नीचे गोलियाँ मेरी चूत के नीचे टकरा कर मेरी चूत का मीठापन बढ़ा रही थी.

कैसा सुहाना माहौल था. सुबह सवेरे अगर लौड़ा मिल जाये तो काम देव की आराधना भी हो जाती है, और फिर पूरा दिन मस्ती से गुजरता है.

दिन भर विपिन मेरे से चिपका रहा. वो कॉलेज भी नहीं गया, बस कभी मेरी गाण्ड मारता तो कभी मेरी चूत जम के चोद देता था. पति के वापस लौटने तक उसने मुझे चोद-चोद कर रण्डी बना दिया था, मेरी चूत को इण्डिया-गेट बना दिया था, मेरी गाण्ड को समन्दर बना डाला था.

पति के लौटते ही मुझे उसकी चुदाई से कुछ राहत मिली. पर कितनी!!! जैसे ही वो काम पर जाते वो मुझे चोद देता था.

हाय राम… चुदने की इच्छा तो मेरी ही थी, पर ऐसी नहीं कि वो मेरी चटनी ही बना दे…

आप बतायेंगे पाठकगण, कि मैं उससे पीछा कैसे छुड़ाऊँ? ना… ना… चुदना तो मुझे उसी से है… पर इतना नहीं…

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