रश्मि और रणजीत-5

फारूख खान 2014-10-08 Comments

This story is part of a series:

रश्मि जो डॉक्टर नेहा से कहना चाहती थी वो नहीं कह पाई।
वो सोचने लगी कि कोई बात नहीं.. जब भी कोई उचित समय रहेगा तो मैं बता दूँगी क्योंकि नेहा ही एक ऐसी सहेली थी, जिससे वो अपने दिल की सभी बातें साझा करती थी।

घर पर आने के बाद रश्मि गुसलखाने में जाकर फ्रेश हुई और चाय बनाने लगी।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई वो चाय को वहीं मेज पर रख कर दरवाजा खोला।

उसके पापा आए थे, वो भी नशे में धुत..
रश्मि एक तरफ हो गई और रण्जीत शराब के नशे में धुत अपने कमरे में चला गया।

उस समय ममता घर पर नहीं थी।

रश्मि भी अपने कमरे में चली गई।

थोड़ी देर बाद वो अपने पापा के कमरे में यह पूछने के लिए आई कि खाना लगा दूँ या मम्मी के आने के बाद खायेंगे।

जब वो उनके रूम में गई थी तो वो बिस्तर पर बिल्कुल नंगा अधलेटा हुआ था।

यह देखते ही रश्मि को एक झटका लगा, वो तुरंत वापस बाहर आ गई, पर पता नहीं उसे क्या हुआ।

उसने अपने पापा को इस अवस्था में देखने की इच्छा करते हुए फिर से कमरे में झाँका।

अब भी उसी स्थिति में दृश्य था, एक हाथ से रणजीत अपने लंड को खुज़ला रहा था।

यह देखते ही रश्मि का पारा गर्म हो गया। उसके मन में जो लड़की अभी तक सोई हुई थी, वो जाग गई।

उसके ललाट पर पसीने की कुछ बूंदें भी थीं। उसका मन घबराया हुआ था, पहले उसने सोचा कि यहाँ से चली जाऊँ, पर वो नहीं गई।

थोड़ी देर यूँ ही रहने के थोड़ी देर बाद ममता आ गई।
दरवाजे पर दस्तक देते हुए ममता आ गई, ममता ने आते ही रश्मि से कहा- ले प्रसाद खा.. मंदिर गई थी… खाना बन गया?

‘हाँ.. मम्मी रोटी और सब्जी बना ली है, बस सलाद काट लेती हूँ.. पापा भी आ गए हैं सो रहे हैं।’

ममता अपने कमरे में गई, रणजीत को इस स्थिति में देखते ही उसका दिमाग़ खराब हो गया।

वो बड़बड़ाने लगी- अरे बाप रे.. एकदम पागल है, कभी भी नहीं सोचते कि घर में एक जवान बेटी है, कुछ तो शर्म करनी चाहिए।

उसने झकझोर कर रणजीत को उठाया, जैसे ही झकझोरा कि उसने उसे खींच लिया और एक चुम्बन दे दिया।

ममता- यह क्या है.. कुछ तो शर्म करो?

रणजीत- आज मूड है मेरी जान.. प्लीज़ आ जाओ।

ममता- छि.. अभी नहीं.. मंदिर से आई हूँ और हाँ दस बज रहे हैं… खाना खाते हैं उठिए।

रणजीत- खा लेंगे यार..!

ममता- लीजिए प्रसाद खाइए।

रणजीत- मेरा प्रसाद तो ये है।

उसके ममता के एक मम्मे को दबा दिया।
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ममता- उई माँ… क्या करते हो.. चलो उठो और तैयार हो जाओ।

रणजीत मायूस मन से उठ गया और गुसलखाने में चला गया।

ममता भी साड़ी बदल करके नाइटी पहन ली।

थोड़ी देर बाद दोनों खाने की मेज पर आ गए।
रश्मि पहले से ही खाना खा रही थी पर आज खाने की मेज पर रणजीत और रश्मि में कोई भेद था, तभी दोनों एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे थे और ना ही एक-दूसरे से आँख मिला रहे थे।

रश्मि ने अपने पापा के लिए एक प्लेट लगा ली और फिर रोटी और थोड़ी सब्जी रख दी और खुद खाने लगी।

रणजीत ने भी बिना कोई सवाल किए और बिना कोई बात किए प्लेट उठाई और खाना खाने लगा और फिर रणजीत और ममता अपने कमरे में चले गए।

उस दिन ममता और रणजीत की चुदाई जम कर हुई, ममता ने भी खूब साथ दिया, पर इधर रश्मि की जवानी में एक आग लग गई थी, आज तक जो जवान जिस्म को समझा-बुझा कर रोके हुए थी, उसमें आज आग लगी हुई थी।

वो उठी और बाथरूम में गई और सारे कपड़े खोल कर, नंगी अपने शरीर को सहलाने लगी, पर मन नहीं भरा तब वो नहाने लगी।

पानी की ठंडी धार से थोड़ी देर के लिए उसे राहत मिली।

फिर वो अपने बिस्तर पर सोने चली गई।

दूसरे दिन सीमा का फोन आया, उस समय रणजीत अपनी ड्यूटी पर था, उसने फोन रिसीव किया। सीमा काफ़ी खुश दिखाई दे रही थी, वो चहक कर बातें कर रही थी।

सीमा- हैलो जानू कैसे हो?

रणजीत- आज बहुत दिन बाद मेरी याद आई।

सीमा- अरे नहीं यार… पेपर था, वो अब क्लियर हो गया है एक खुशखबरी है, जो तुम्हें सुनाना है।

रणजीत- खुशखबरी… पर क्या.. कहीं तुम माँ तो नहीं बन गईं।

रणजीत को एक अंजान सा डर हो गया था।

सीमा- छी.. अरे नहीं यार मेरी शादी पक्की हो गई है।

रणजीत- क्या बात है… वाह यार मुबारक हो।

सीमा- इसी सिलसिले में मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ। रविवार को घर जा रही हूँ पापा ने बुलाया है, वहीं लड़के वाले भी मुझे देख लेंगे।

रणजीत- तो ठीक है… एक घंटे में मेरी ड्यूटी ऑफ हो जाएगी। तुम वहीं आ जाना जहाँ हम मिले थे।

सीमा के शरीर में एक अजीब सी गुदगुदी हो गई थी और एक हल्की सी शरम उसके गालों पर दिख रही थी।

वो बोली- ठीक है.. मैं 5.30 तक आ जाऊँगी।

रणजीत- और बताओ.. क्या चल रहा है?

सीमा- पेपर हो गया है.. बोर हो रही थी सो फोन कर लिया, आप बताओ कैसे हो। आपकी पत्नी और बेटी कैसी हैं?

रणजीत- मस्त हैं सभी अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।

सीमा- यार.. तुम्हारी बेटी के बारे में सोचते हुए दु:ख होता है। इस जवानी में और विधवा… कैसे सहन करती होगी ? मैं होती तो पागल हो जाती।

रणजीत- सब भगवान की मरजी है.. उनके आगे किसका जोर चलता है। मैं तो कहता हूँ कि दूसरी शादी कर लो.. पर तैयार ही नहीं होती और मैं क्या कर सकता हूँ। उसे अपने दु:ख से उबरने में समय लगेगा, पर अब कुछ बदलाव आ गया है। अब उसके चेहरे पर एक चमक है। लगता है उसके जीवन में बहार फिर आएगी।

सीमा- भगवान करे कि ऐसा ही हो। मैं एक बार उससे ज़रूर मिलूँगी।

रणजीत- ओके सीमा.. एक मैसेज आ रहा है.. लगता है कि कहीं बवाल हो रहा है, मिलता हूँ 5.30 पर ओके & आउट। वो पुलिसिया अंदाज में बोला।

सीमा ने मुस्कुरा कर ‘बाय’ कहा और सेल काट दिया।

पास ही खड़ी रानी चटकारे ले लेकर दोनों की बातें सुन रही थी।

रानी सीमा की रूममेट थी और एक अच्छी दोस्त भी थी, दोनों में कुछ नहीं छुपा था।

हाँ, रानी अभी बिल्कुल अनछुई कली थी, उसका फिगर भी जबरदस्त था, जो भी देखे घायल हो जाए, पर रानी ने अभी तक अपने आपको बचा कर रखा था।

हाँ, यह बात और है कि उसे सेक्स में काफ़ी दिलचस्पी है। तभी सीमा और रणजीत की कहानियों को मज़े ले ले कर सुनती थी, कभी-कभी दोनों एक-दूसरे की चूचियों को दबाते रहते थे, पर कोई मर्द उसके जीवन में नहीं आया था।

अब रानी से ये जवानी संभाली नहीं जाती थी, इस समय वो बी.कॉम. के दूसरे साल की स्टूडेंट थी, वो इलाहाबाद की थी।
उसकी माँ और पापा एक बैंक में जॉब करते थे और इलाहाबाद में ही रहते थे। रानी पढ़ाई के लिए दिल्ली आई थी।

वो शहर के अनुसार अपने आपको ढाल चुकी थी, अब वो सलवार-समीज़ की जगह जीन्स और टॉप और अन्य नए फैशन के कपड़े पहनने लगी थी।
जब कभी घर जाती थी या कभी उसके माता-पिता मिलने आ जाते थे, तब वो सलवार-कमीज पहन लेती थी।

हालाँकि रानी का अभी तक किसी मर्द से मेलजोल नहीं हुआ था, पर उसे अब मन करता है कि किसी के गले लगूँ और खूब मज़े लूँ। सीमा और रणजीत के रिश्तों से वो वाकिफ़ हो चुकी थी।

उसे भी सीमा की तरह चुदवाने का ख्याल आने लगा, पर शुरू करे तो कैसे।

उसके मन की भावनाओं को सिर्फ़ सीमा ही जान चुकी थी, तभी वो आज अपने साथ रानी को भी रणजीत से मिलवाने के लिए ले जा रही थी।
शाम को 5.30 बजे सीमा और रानी शिवाजी पार्क पर आ गई थीं जहाँ दोनों रणजीत का इन्तजार कर रही थीं।

सीमा आज साड़ी में थी। वहीं रानी जीन्स और टॉप में थी।

रानी आज चुस्त जीन्स और टॉप में कयामत लग रही थी। उसकी चूचियाँ काफ़ी उठी हुई थीं और गाण्ड की तो पूछो मत.. एकदम पटाखा लग रही थी।
सीमा भी साड़ी में कयामत लग रही थी। आज कुछ ज़्यादा ही शर्मा रही थी।

उन्हें इन्तजार करते हुए एक घंटा हो गया, पर रणजीत नहीं आया। अंत में सीमा ने फोन मिलाया।

आवाज़ आई- अभी आ रहा हूँ यार.. जरा घर चला गया था। घर पर अपार्टमेंट की चाबी थी, वही लाने चला गया। अभी 15 मिनट में आ जाऊँगा… तुम कहाँ हो?

सीमा ने जवाब दिया- शिवाजी पार्क..’

‘ओके.. बस अभी आया।’
और फोन कट गया।

करीब 15 मिनट के बाद रणजीत एक बाइक से आया क्योंकि ड्यूटी ऑफ हो चुकी थी और वो एक सिविल ड्रेस में था।

आते ही सीमा से हाथ मिलाया, उसके बाद दोनों ने इधर-उधर की बात की, फिर सीमा ने रानी से परिचय कराया।

रणजीत ने पहले तो उसे ऊपर से नीचे देखा, फिर मुस्कुरा कर ‘हैलो’ कहा।
कहानी जारी रहेगी।
आपके ईमेल का इन्तजार रहेगा।

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