फ़ुलवा

सफ़ेद चादर

अब वक़्त आ गया है बदलने का… सुहाग के बिस्तर पर सफ़ेद की जगह लाल चादर बिछाने का वक़्त आ गया है. पुरुषों की सोच बदलने का वक़्त आ गया है! बेटा तुम सफ़ेद चादर बिछाना चाहते तो पहले मुझे बताओ कि क्या तुम वर्जिन हो? साबित करोगे?

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मेरी अन्तर्वासना नहीं जाती… मैं क्या करूँ?

अन्तर्वासना कोई पाप नहीं… अगर पाप होती तो तुम न होते, पाप होती तो ऋषि मुनि ज्ञानी न होते! जिससे यह संसार चलता है उसे तुम पाप कहोगे?
अन्तर्वासना का पहला काम है तुम्हें जीवन देना! तुम्हें भी तो इसी से जीवन मिला है…

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नाजायज़ औलाद

अन्तर्वासना की एक भिन्न शैली की लेखिका ‘फुलवा’ की यह रचना एक लम्बे अरसे के बाद अन्तर्वासना पर प्रकाशित हो रही है… इस रचना के बारे में कुछ भी लिखना सूर्य को दिया दिखाना है, आप खुद ही जान लीजिये इसे पढ़ कर… इस कहानी में सेक्स नहीं है…

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पेट

मजदूरी करते रज्जो थकी नहीं थी क्योंकि यही उसका पेशा था। बस सड़क की सफाई करते ऊब सी गई थी। अब वह किसी बड़े काम

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फ़ुलवा

उसका पति धीरू दो बरस पहले शहर कमाने चला गया। गौने के चार माह बाद ही चार-छः जनों के साथ वह चला गया। तब से

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