कलयुग का कमीना बाप-11

(Kalyug Ka Kameena Baap- Part 11)

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पापा मेरी चूत को कुछ देर चाटने के बाद ऊपर उठे और मेरे बूब्स को मसलते हुए मेरी गर्दन को चूमने लगे, मेरी आँखें मस्ती से बंद होने लगी।
“पिंकी…” अचानक पापा की आवाज़ से मेरी आँख खुली।
“जी पापा?” मैं काँपते स्वर में बोली।

“आज मुझे रिया को चोदने का मन कर रहा है, प्लीज एक बार मुझे उसे चोदने दो। फिर कभी किसी दूसरी लड़की को नहीं चोदूँगा।”
मैं पापा को देखने लगी, वो मेरी आँखों में झाँकते हुए मेरे बूब्स दबाते रहे।

“लेकिन… पापा…”
“प्लीज पिंकी… मान जाओ!”
“ओ के… पापा… लेकिन सिर्फ एक बार!” मैं थोड़ा उदास होते हुए बोली।
“लेकिन रिया मुझसे तभी चुदेगी जब तुम उसके पापा से चुदोगी। प्लीज मेरी ख़ुशी के लिए एक बार मल्होत्रा अंकल से प्यार कर लो।”

मैं उस वक़्त पापा की बाँहों में मस्ती में डूबी हुई थी फिर भी उनका प्रस्ताव मुझे बुरा लगा लेकिन मैं उन्हें खोना नहीं चाहती थी… सिर्फ एक बार ही की तो बात है। यह सोचकर मैं पापा से अलग हुयी और मल्होत्रा अंकल के पास चली गई।

रिया मुझे अपनी ओर आती देख अपने पापा के ऊपर से उठी और मुस्कुराती हुई मेरे पापा की ओर बढ़ गई।

मल्होत्रा अंकल बिस्तर पर उठ बैठे और मुझे देखते हुए अपने लंड को सहलाने लगे, मैं उनके पास बगल में जाकर बैठ गयी।
“इसे मुंह में लो पिंकी…” वो लंड हिला कर बोले।
मैं झिझक के साथ उनके विशाल लंड को देखती रही।

अचानक अंकल ने मुझे गरदन से पकड़ा और अपने लंड पर झुका लिए फिर एक हाथ से अपना लंड पकड़कर मेरे होंठों पर रगड़ने लगे। फिर अपने लंड के सुपारे से मेरे होठों को खोलने लगे लेकिन वो नाक़ाम रहे।
अचानक उन्होंने मेरा गर्दन दबा दिया मैं चीखी… उसी वक़्त अंकल ने मेरे खुले मुंह में अपना लंड घुसा दिया। मुझे न चाहते हुए भी उनका लंड चूसना पड़ा, मैं धीरे धीरे उनका लंड चूसने लगी।
तभी अचानक अंकल उठे और घुटनों के बल बिस्तर पर खड़े हो गये, फिर मुझे अपनी टाँगों के बीच खींच लिया, मैं उनकी टाँगों के नीचे पीठ के बल लेटी हुई थी। उन्होंने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम कर ऊपर उठाया और अपना मोटा लंड मेरे मुंह में डाल कर मेरा मुंह में पेलने लगे।

मल्होत्रा अंकल का लंड मेरे गले तक पहुँच रहा था, मेरी साँस घुटती हुई सी महसूस हुई लेकिन उन्हें परवाह नहीं थी। मैं उन्हें जोर का धक्का देकर आगे धकेलने की कोशिश करने लगी लेकिन मैं नीचे लेटी होने की वजह से मेरी शक्ति कम हो गयी थी।

कुछ देर मेरा मुंह चोदने के बाद उन्होंने अपना गीला लंड बाहर निकाला, फिर मेरी कमर को पकड़ कर मेरी गांड अपनी ओर कर लिया।
“पिंकी डॉगी बन जाओ!” वो मेरी गांड सहलाते हुए बोले।

मैंने यह सोचकर राहत की साँस ली कि अब वो मेरी चूत चोदकर जल्दी से मुझे छुट्टी देंगे, मैं बिना देर किये बिस्तर पर हाथों और घुटनों के बल हो गयी।
अंकल मेरे आगे आये और मेरे नितम्बों को चाटने लगे फिर मेरी गांड में थूक दिए और अपनी एक उंगली गांड के छेद में घुसा कर अंदर बाहर करने लगे।
मेरे मुंह से दर्द भरी सिसकारी निकल गई।

अचानक मुझे मेरी गांड के छेद पर अंकल के लंड का अहसास हुआ। मैंने पलट कर उन्हें देखा, वो मुस्कुराये और इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती, उन्होंने पूरी ताक़त से अपना लंड मेरी गांड में पेल दिया।
“आ… ई…!” मैं गला फाड़ कर चीखी।

अंकल का लंड मेरी गांड में घुस चुका था। मुझे ऐसा लगा जैसे कोई गर्म मोटा लोहा मेरी गांड में घुसा हुआ हो। अभी मैं अपने दर्द में क़ाबू पाने की कोशिश कर ही रही थी कि अंकल ने एक और करारा धक्का मारा, मैंने चीखते हुए पापा की तरफ मदद के लिए नज़र घुमायी… लेकिन पापा के होंठों पर मुस्कान देखकर मैं हैरान रह गई।

फिर एक बाद के बाद एक कई ताबड़तोड़ धक्के मार कर अंकल ने अपना बड़ा लंड पूरा मेरी कुंवारी गांड के अंदर उतार दिया। मेरी आँखों से आंसू बह चले।

अंकल बेरहमी से मेरी गांड मार रहे थे लेकिन मेरे पापा मेरे अच्छे पापा ये देखकर मुस्कुरा रहे थे। उधर पापा ने भी रिया को कुतिया बना दिया था और उसके गांड में अपना लंड घुसा दिया था. इधर मल्होत्रा अंकल मेरे गांड में जैसे जैसे लंड पेलते वैसे वैसे मेरे पापा भी रिया की गांड मार रहे थे.

फिर हम दोनों को रिया के पापा और मेरे पापा एक ही जगह हम दोनों का मुंह कर दिया और पीछे से हम दोनों की गांड मारने लगे मुझे बहुत दर्द हो रहा था क्योंकि मेरी गांड में पहली बार लंड घुसा था लेकिन रिया को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वह कई बार गांड मरा चुकी थी और बहुत मज़े से गांड मरा रही थी. गांड मराते हुए वह इतनी सेक्सी आवाज निकाल रही थी मेरे पापा को और जोश आ रहा था.

इधर मल्होत्रा अंकल मेरी गांड पर थप्पड़ मारने लगे थे, वे मुझसे बदला ले रहे थे कि मैंने उनको शुरू में इंकार किया था इसीलिए वे पूरे गुस्से से मेरी गांड मार रहे थे, मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा था लेकिन मैं अपने पापा के लिए सब कुछ बर्दाश्त कर रही थी.
मैं तड़पती रही, रोती रही।

कुछ देर मेरी गांड के ऊपर उछलने के बाद अंकल शांत हुये।

उस दिन मैं चल भी नहीं पा रही थी, पापा सहारा देकर गाड़ी तक लाये फिर हम घर वापस आ गये।

मैं देर रात तक रोती रही। जिस पापा को मैं अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती थी… मेरे वही पापा मुझे दूसरे के सामने लिटाकर तकलीफ दे रहे थे।

उस दिन के बाद तो ये सिलसिला चल पड़ा। हर दूसरे तीसरे दिन पापा मुझे होटल ले जाते और कोई न कोई मेरे शरीर की सवारी करता। बदले में पापा भी किसी की बहन, बेटी चोद लेते थे। मैं मजबूर थी… मैं उनकी आदी हो चुकी थी, मैं उनके बगैर नहीं जी सकती थी। मैं तकलीफ सहती हुई उनकी बात मानती रही।

कभी कभी तो मेरे साथ एक से अधिक लोग चिपक जाते और अपनी गर्मी मेरे शरीर में निकालते। मैं मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत थक जाती और अपनी उस थकान को पापा के साथ बिस्तर पर निकालती… जब वो मुझे प्यार से चूमते, पुचकारते तो मैं अपना सारा दुःख भूल जाती।

धीरे धीरे मेरी ऐसी हालत हो गयी कि जिस दिन पापा मेरे साथ सेक्स नहीं करते मुझे ऐसा लगता मैं मर जाऊँगी।

एक दिन मैं अपने रूम में बैठी हुई अपनी किस्मत पर रो रही थी। उस वक़्त शाम के 7 बजे थे, पापा ऑफिस से नहीं लौटे थे। मैं अपने ख्यालों में खोयी हुयी थी कि अचानक मुझे मम्मी का ख्याल आया। पिछले 6 महीने से मेरी मम्मी से कोई बात नहीं हुई थी और उन्हें देखे हुए तो महीना हो गया था।
मम्मी खाना भी अकेले में ही ख़ाती थी।

मैं उठी और उनके रूम के तरफ बढ़ गई। उनके रूम का दरवाज़ा भिड़ा हुआ था लेकिन लॉक नहीं था, मेरे हाथ लगाते ही दरवाज़े का पट खुलता चला गया।

जैसे ही मेरी नज़र मम्मी पर पड़ी मैं शॉकड रह गई। मम्मी बिस्तर में मुंह छुपाये रो रही थी, उनके एक हाथ में व्हिस्की का गिलास था।
दरवाज़ा खुलने की आहट से मम्मी ने अपनी गर्दन घुमा कर मुझे देखा। फिर अपने आँसुओं को पौंछती हुई बोली- तू… अब क्या लेने आयी है? सब कुछ तो छीन चुकी हो मुझसे। मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करुँगी पिंकी… तुमने मेरे कोख को गाली दी है… मेरी बेटी होकर तुमने मेरे अधिकार पर डाका डाला है.

“मम्मी…” मैं भर्राये गले से बोली। मुझसे मम्मी की हालत देखी नहीं गयी, उनका सुन्दर चेहरा मुरझा गया था, आँखें ऐसी सूजी हुई थी जैसे वो सालों से सोना भूल गयी हो। मुझे ज़िन्दगी में पहली बार मम्मी के दुःख का एहसास हुआ।
“मुझे मम्मी मत कह… मैं तेरी माँ नहीं सौतन हूँ। जा चली जा यहाँ से… मुझे तुम लोगों की जरूरत नहीं है। मैं अकेली जी सकती हूँ.” वो काँपती स्वर में बोली।

मैं उन्हें बेबसी से देखती रह गयी कि मेरी मम्मी क्या से क्या हो गयी थी।

“तुम लोग यह मत समझना कि मैं अकेली हूँ, मुझसे कोई बात करने वाला नहीं है। मैं अकेली नहीं हूँ मेरे साथ ये बोतल है… यही मेरी सबसे अच्छी साथी है कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ती। तुम जाओ अपने पापा के पास… वो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा।” मम्मी की आँखों में आंसू भर आए।

“मुझे माफ़ कर दो मम्मी… मुझसे भूल हो गयी।”
‘पिंकी, पिछले 6 महीने से मैं अकेली इस कमरे में बैठी पागलों की तरह दीवारो को घूरती रही हूँ और बंद कमरे के अंदर से तुम लोगों की हंसी और ठहाके सुन सुन कर रोती रही हूं।”
“मम्मी, उन बातों को भूल जाओ… अब मैं आपको अकेली नहीं रहने दूंगी।”

“मैं जानती हूँ कि इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं, सारी गलतियाँ तुम्हारे बाप की है। उसी ने तुम्हें बहकाया होगा। मैं यह भी जानती हूँ कि वो तुम्हें बाहर कहाँ ले जाता होगा… उसने पहले मुझसे ये सब करना चाहा था पर जब मैंने इन्कार किया तो वो पापी तुम्हारे आगे पड़ गया और अपने मक़सद में कामयाब भी हो गया।”
“मम्मी…” मैं हैरानी से बोली।

“पिंकी मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम्हारे बगैर मैं बहुत अकेली हो गयी हूँ पिंकी… वादा करो तुम फिर कभी अपने पापा के पास नहीं जाओगी, हमेशा मेरे साथ राहोगी। वादा करो पिंकी…” मम्मी मेरा हाथ पकड़ के अपनी छाती में दबाती हुई बोली।
“मैं आपको छोड़ कर नहीं जाऊँगी मम्मी… मैं आपसे वादा करती हूँ।” मैं उनसे लिपटती हुई बोली।

“मैं तुम्हें लेकर यहाँ से कहीं दूर चली जाऊँगी जहाँ उस पापी आदमी का साया तक न हो। मैं तुम्हारी ख़ुशी के लिए मेहनत करूँगी… तुम्हें पढ़ाऊँगी, तुम्हारे सारे ख्वाब पूरा करूँगी… बस मुझे छोड़ कर मत जाना!”

“ठीक है मम्मी, आप जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करुँगी। अब आइये खाना खा लीजिये… पता नहीं आपने कितने दिनों से ढंग से खाना खाया है या नहीं!”
“हाँ चलो… आज मैं तुम्हें अपने हाथों से खाना खिलाऊँगी।”

मैं और मम्मी बाहर निकले और किचन में आ गई। नौकरानी खाना बनाकर घर जा चुकी थी। मम्मी खाना निकाल कर मुझे खिलाने लगी। उनके हाथों से खाते हुए मुझे मेरा बचपन याद आ गया जब मम्मी रोज सुबह शाम अपने गोद में बिठाकर खाना खिलाती थी।
मेरी आँखों से आंसू बहने लगे।

“तू क्यों रो रही है पगली… अब तुम्हें रोने की जरूरत नहीं। अब मैं तुम्हें हमेशा मुस्कुराते हुए देखना चाहती हूं!”
“आज बरसों बाद आपके हाथ से खाना खाकर मैं अपनी ख़ुशी संभाल नहीं पा रही हूँ मम्मी… मुझे बचपन के दिन याद आ रहे हैं।”

मम्मी मेरे आँसू पौंछती हुई मुझे खाना खिलाती रही, मैं भी मम्मी को अपने हाथों से खाना खिलाती रही।

खाने के बाद मैं वापस मम्मी के रूम में आ गयी और उनकी गोद में सर रख कर बातें करने लगी। बातें करते हुए कब आँख लग गयी मैं जान नहीं पायी।

अचानक पापा की जोरदार आवाज़ से मेरी आँख खुली।

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